Saturday, 30 November 2024

संभल की मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का असर अजमेर की दरगाह के प्रकरण में भी होगा।अब मुस्लिम पक्ष भी लामबंद हुआ।ख्वाजा साहब की दरगाह में मंदिर होने का मामला गर्म हुआ।

उत्तर प्रदेश के संभल की जामा मस्जिद में हुए सर्वे के प्रकरण में 29 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने जो दिशा निर्देश दिए है उनका असर अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में मंदिर होने के प्रकरण में भी पड़ेगा। हिंदू सेना के वाद पर अजमेर के सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय उस के अधीन काम करने वाली दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व विभाग को नोटिस जारी किए हैं। हिंदू सेना के वाद में दरगाह परिसर का सर्वे करवाने की मांग की गई है। नोटिस जारी होने के बाद से ही देश भर में अजमेर दरगाह का मामला गरम हो गया है। अखबारों से लेकर राष्ट्रीय न्यूज चैनलों तक बहस हो रही है। लेकिन इस बीच संभल की जामा मस्जिद के सर्वे से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो दिशा निर्देश दिए है, उससे भी अजमेर दरगाह का मामला और आगे बढ़ गया है। आमतौर पर किसी शहर के सिविल न्यायाधीश के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट कोई दखल नहीं देता है। सिविल कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध आए प्रार्थना पत्र पर सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट व जिला न्यायालय में जाने के लिए कहता है, लेकिन संभल के प्रकरण में 29 नवंबर को सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि उसे संभल के सिविल न्यायाधीश के सर्वे वाले आदेश पर कुछ आपत्तियां है। इसके साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिए कि सर्वे की रिपोर्ट को बंद लिफाफे में ही रखा जाए और सिविल न्यायालय फिलहाल कोई आदेश पारित न करे। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकर्ता को हाईकोर्ट जाने को कहा है। एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने संभल के सिविल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। संभल के प्रकरण में जो कानूनी प्रावधान और कार्यवाही सामने आई है, वही प्रावधान और कार्यवाही अजमेर की दरगाह के प्रकरण में भी अमल में लाई जा सकती है। अजमेर के सिविल न्यायाधीश चंदेल ने अभी सिर्फ नोटिस जारी किए है। इस मामले में अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। देखना होगा कि केंद्र सरकार से जुड़े तीनों विभाग दरगाह में मंदिर होने के मामले में क्या जवाब देते हैं। इसमें दरगाह कमेटी की महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि कमेटी का नोटिस ही दरगाह के अंदर की इमारतों और अन्य स्थानों के रखरखाव का काम करता है। दरगाह से जुड़ी संपत्तियों पर अधिकार भी दरगाह कमेटी का है। ऐसे में दरगाह के अंदर मंदिर को लेकर सर्वे करवाने का दरगाह कमेटी का जवाब बहुत महत्वपूर्ण होगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अजमेर के प्रकरण को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन संभल के मामले में जो दिशा निर्देश दिए है उनका असर अजमेर के सिविल कोर्ट पर भी पड़ सकता है। संभल के मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील हुजेफ अहमदी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दरगाह और मस्जिदों में मंदिर होने के दस मामले देशभर की अदालतों में लंबित है। इन सभी में सर्वे की मांग की गई है।

मुस्लिम पक्ष लामबंद:
ख्वाजा साहब की दरगाह के प्रकरण में सिविल अदालत द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बाद अब मुस्लिम पक्ष भी लामबंद हो गया है। दरगाह के दीवान जैनुअल आबेदीन ने कहा है कि वे अपनी लीगल टीम से विमर्श कर रहे हैं। सिविल अदालत में पक्षकार बनने के लिए विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वह ख्वाजा साहब के परिवार से संबंध रखते हैं, इसलिए किसी भी अदालत को उनका पक्ष सुने बिना सर्वे के आदेश नहीं देने चाहिए। आबेदीन ने कहा कि ख्वाजा साहब का इंतकाल 1236 ईस्वी में हुआ था और तभी से इसी स्थान पर मजार बनी हुई है। दरगाह की धार्मिक रस्मों में खादिम समुदाय की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान के अध्यक्ष गुलाम किबरिया और सचिव सैयद चिश्ती ने भी सिविल अदालत में पक्षकार बनने की बात कही है। इसी दौरान एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट के अध्यक्ष और वकील सैयद शहादत अली ने भी वकीलों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ अंजुमन के पदाधिकारियों से मुलाकात की है। शहादत अली ने खादिम समुदाय को भरोसा दिलाया है कि कानूनी रूप से भरपुर मदद की जाएगी। प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत किसी भी धार्मिक स्थल में दखल नहीं दिया जा सकता है। इस विमर्श में यह बात भी कही गई कि अजमेर की सिविल अदालत ने अभी तक एक तरफा कार्यवाही की है। नोटिस जारी करने से पहले दरगाह से जुड़े मुस्लिम पक्षों के नहीं सुना गया। जहां तक दरगाह कमेटी का सवाल है तो केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली सरकारी संस्था है। इस कमेटी का दरगाह की धार्मिक परंपराओं से कोई सरोकार नहीं है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (30-11-2024)
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