Friday, 8 November 2024

जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली का प्रस्ताव स्वीकृत होने के बाद क्या महाराष्ट्र झारखंड और राजस्थान, यूपी आदि के उपचुनाव में हिंदुओं के वोट इंडिया गठबंधन को मिलनी चाहिए?यह मुसलमानो का ही दबाव है कि भारत को तालिबान के कब्जे वाले अफगानिस्तान से वार्ता करनी पड़ रही है।

गत 6 नवंबर को जम्मू कश्मीर विधानसभा में अनुच्छेद 370 की बहाली वाला प्रस्ताव बहुमत के साथ स्वीकृत हो गया। भले ही इस प्रस्ताव का भाजपा ने कड़ा विरोध किया हो लेकिन कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और सत्ता के लालची कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया। इस प्रस्ताव के मंजूर होने के बाद सवाल उठता है कि क्या झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव और राजस्थान, यूपी आदि के उपचुनाव में इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों को वोट मिलने चाहिए? सब जानते हैं की अनुच्छेद 370 के प्रभावित रहते हुए ही कश्मीर घाटी से चार लाख हिंदुओं को प्रताड़ित कर भगा दिया गया। अगस्त 2019 में जब 370 को समाप्त कर दिया गया तब जम्मू कश्मीर के हालातो में तेजी से सुधार हुआ। अब जम्मू कश्मीर में इंडिया गठबंधन में शामिल नेशनल कांफ्रेंस की सरकार है। इस दल ने अपने चुनावी वादे के अनुसार के विधानसभा में 370 की बहाली वाला स्वीकृत करवा लिया है। यानी जो अनुच्छेद हिंदुओं के खिलाफ है उसी अनुच्छेद की बहाली इंडिया गठबंधन द्वारा करवाई जा रही है। इधर विधानसभा में प्रस्ताव स्वीकृत हुआ उधर झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव में 370 प्रमुख मुद्दा बन गया। अब इन दोनों राज्यों के हिंदू मतदाताओं को यह तय करना है कि क्या इंडिया गठबंधन के दलों के उम्मीदवारों को वोट दिया जाए? यदि महाराष्ट्र और झारखंड में इंडिया गठबंधन के दलों की सरकार बनती है तो फिर जम्मू कश्मीर में हिंदुओं खासकर अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों की स्थिति और कमजोर हो होगी। 370 के हटने के बाद ही जम्मू कश्मीर में स एससी वर्ग खासकर वाल्मीकि समुदाय के लोगों को आरक्षण का लाभ मिलने लगा है। महाराष्ट्र और झारखंड के आदिवासी और एससी वर्ग के लिए भी चुनाव परिणाम बहुत महत्व रखते हैं। इन दोनों राज्यों के परिणाम जम्मू कश्मीर के हालातो पर भी असर डालेंगे। इसलिए इन राज्यों के हिंदू मतदाताओं को अपना वोट का उपयोग सोच विचार कर करना चाहिए। यदि इंडिया गठबंधन के दलों की जीत होती है तो फिर जम्मू कश्मीर में हिंदू और कमजोर होंगे।

अफगानिस्तान से वार्ता:
भारत में रह रहे 25 करोड़ मुसलमान का ही दबाव है कि केंद्र सरकार को तालिबान के कब्जे वाले अफगानिस्तान से वार्ता करनी पड़ रही है। भारत के विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव जेपी सिंह ने चार और पांच नवंबर को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में वहां के रक्षा मंत्री मोहम्मद याकूब और विदेश मंत्री आमिर खान से मुलाकात की। अफगानिस्तान के मंत्रियों ने मानवीय दृष्टिकोण से मदद का आग्रह किया। वहीं भारत की ओर से व्यापार को बढ़ाने पर विमर्श हुआ। भारत ने यह वार्ता तब की है जब अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को अभी तक भी मान्यता नहीं दी गई है। आरोप लगाता रहा है कि हमारे जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान के माध्यम से अफगानिस्तान के कट्टरपंथी युवक सक्रिय है। हालांकि पाकिस्तान में अब तालिबान के लड़के ही बम विस्फोट कर रहे हैं। भारत सहित पाकिस्तान बांग्लादेश की हालातो के मद्देनजर अफगानिस्तान से वार्ता करना राजनीतिक दृष्टि से बहुत मायने रखता है। आम तौर पर उन देशों से वार्ता नहीं की जाए जानी चाहिए जिन्हें मान्यता न मिली हो। मालूम हो कि वर्ष 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था तब बड़ी मुश्किल से भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकाला गया।



S.P.MITTAL BLOGGER (08-11-2024)
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