25 नवंबर को राजस्थान की मेवाड़ की धरती पर जो कुछ भी हुआ उससे महाराणा प्रताप की वीरता और त्याग बलिदान को धक्का लगा है। चिंता की बात तो यह है कि महाराणा प्रताप के वंशज ही संपत्तियों को लेकर लड़ रहे हैं। जबकि महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के मान सम्मान के लिए सब कुछ त्याग दिया था। मेवाड़ के मान को बचाने के लिए प्रताप ने कभी भी आक्रमणकारी मुगल शासक अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। लेकिन इसके विपरीत अब जमीनों के टुकड़ों को लेकर प्रताप के वंशज लड़ रहे है। 25 नवंबर को विश्वराज सिंह ने मेवाड़ घराने का राजतिलक तो करवा लिया, लेकिन उन्हें उदयपुर के सिटी पैलेस में प्रवेश करने से रोक दिया गया, क्योंकि सिटी पैलेस पर विश्वराज सिंह के चाचा अरविंद सिंह का कब्जा है। अरविंद सिंह का कहना है कि उनके पास दिवंगत भगवत सिंह ने अपने जीवन काल में ही बड़े पुत्र महेंद्र सिंह को परिवार से बहिष्कृत कर दिया था। ऐसे में महेंद्र सिंह के पुत्र विश्वराज सिंह का उदयपुर के सिटी पैलेस से कोई संबंध नहीं है। मेवाड़ घराने की प्रतिष्ठा उस समय तार तार हो गई, जब विश्वराज सिंह अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ सिटी पैलेस के मुख्य द्वार के बाहर खड़े रहे और उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं मिली। समर्थकों ने सिटी पैलेस पर पथराव किया। यानी जिस मेवाड़ घराने की शान के लिए महाराणा प्रताप ने सब कुछ त्याग दिया उसे मेवाड़ घराने के सदस्य अपने ही घर में जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अरविंद सिंह और विश्वराज सिंह माने या नहीं, लेकिन 25 नवंबर को मेवाड़ घराने की शान पर जो बट्टा लगा है उसकी भरपाई होना मुश्किल है। जब संपत्तियों के विवाद अदालतों में है तो फिर पत्थरबाजी क्यों हो रही है? ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों पक्ष राजघराने की परंपराओं को भी सम्मान नहीं कर रहे हैं। परंपराओं के अनुसार बड़े पुत्र का बेटा ही घराने का प्रमुख होता है। इस नाते भगवत सिंह के बड़े पुत्र महेंद्र सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र विश्वराज सिंह का ही पगड़ी दस्तूर होना चाहिए। इस लिहाज से 25 नवंबर को सामाजिक परंपरा के अनुरूप पगड़ी दस्तूर का कार्यक्रम हुआ, लेकिन संपत्तियों पर जंग के चलते यह पगड़ी दस्तूर का कार्यक्रम उदयपुर के सिटी पैलेस में नहीं हो सका। पगड़ी के कार्यक्रम का चित्तौड़ स्थित सरकारी किले के फतह प्रकाश महल में करना पड़ा। यह कार्यक्रम भी सरकारी स्थान पर इसलिए हो सका कि विश्वराज सिंह स्वयं नाथद्वारा से भाजपा के विधायक तथा उनकी पत्नी महिमा कुमारी राजसमंद की सांसद है। चूंकि पति पत्नी सत्तारूढ़ दल से जुड़े हुए हैं, इसलिए सरकारी स्थान पर पगड़ी का दस्तूर तो हो गया, लेकिन घराने का प्रमुख बनने के बाद भी सिटी पैलेस में प्रवेश नहीं हो सका। इसे शर्मनाक ही कहा जाएगा कि राज प्रमुख बनने के बाद भी 25 नवंबर को रात दो बजे विश्वराज सिंह अपने समर्थकों के साथ उदयपुर के सिटी पैलेस के बाहर अपने समर्थकों के साथ बाहर खड़े रहे। इस से प्रमुख बनने वाली परंपरा भी पूरी नहीं हो सकी। अरविंद सिंह और उनके सुरक्षाकर्मियों ने विश्वराज सिंह को सिटी पैलेस की धूनी वाले स्थान के दर्शन तक नहीं करने दिए। जबकि घराने का प्रमुख बनने के बाद इस स्थान के दर्शन की परंपरा रही है। सिटी पैलेस में प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में देशी विदेशी पर्यटक आते हैं, लेकिन झगड़े के कारण पर्यटक भी सिटी पैलेस को देखने से वंचित हो गए। जो लोग स्वयं को महाराणा प्रताप के वंशज होने की बात कहते हैं, उन्हीं प्रताप के वंशजों की वजह से सिटी पैलेस के ऐतिहासिक धूनी स्थल पर अब पुलिस का एक इंस्पेक्टर रिसीवर नियुक्त हो गया। इससे ज्यादा शर्म और चिंता की बात मेवाड़ घराने के लिए नहीं हो सकती। अच्छा हो कि परिवार के सदस्य संपत्तियों के विवादों को आपस में बैठकर सुलझा लें, ताकि महाराणा प्रताप की वीरता और त्याग बलिदान को बट्टा न लगे।
S.P.MITTAL BLOGGER (26-11-2024)
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