Sunday 8 March 2015

महिलाएं भी तो संकल्प लें

महिलाएं भी तो संकल्प लें
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर 8 मार्च को गली-कूचे से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक में आयोजन हुए। सरकारी, गैर-सरकारी सभी आयोजनों में इस बात की सीख दी गई कि समाज को महिलाओं का मान सम्मान करना चाहिए। यह सही है कि घर परिवार से लेकर महिलाओं के कार्यस्थल तक उनका सम्मान होना चाहिए, लेकिन वर्तमान परिपेक्ष में यह सवाल भी उठता है कि आखिर महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान देने की आवश्यकता क्यों पड़ी?  भारतीय संस्कृति में तो महिला को सर्व शक्तिमान देवी के रूप में पूजा गया है। असल में भारतीय संस्कृति पर जो पश्चिम की संस्कृति का हमला हुआ, उसकी वजह से ही भारत में भी महिलाओं पर घरेलू हिंसा होने लगी है। आज जिस तरह से विदेशी टीवी चैनलों पर मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता परोसी जा रही है,उसकी वजह से भारतीय परिवारों में बिखराव हो रहा है। टीवी चैनलों में इस बात की होड़ लगी हुई है कि खूबसूरत लड़कियों के नंगेपन को कहा तक दिखा दिया जाए। कोई एक चैनल की बात नहीं है, सभी चैनलों पर जो धारावाहिक प्रसारित हो रहे हैं, उनमें जिस तरह से महिलाओं के चरित्र का चित्रण किया जाता है, वह बेशर्मी की हद पार कर रहे हंै। एक ओर हम महिला दिवस आयोजन कर उपदेश व प्रवचन देते हैं तो दूसरी ओर गंदे, अश्लील, बेहूदा टीवी सीरियल देखते है। अच्छा हो कि आज के अन्तर्राष्ट्रीय दिवस पर महिलाएं कम से कम इतना तो संकल्प लें कि अश्लीलता से भरे टीवी सीरियल नहीं देखेंगी। जो महिलाएं इन सीरियलों में महिलाओं के चरित्र हनन वाले किरदार निभाती हैं, उन्हें भी ऐसे किरदारों से परहेज करना चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता कि सीरियलों में महिलाएं गंदे, अश्लील और बेहूदा किरदार निभाए और फिर समाज से उम्मीद करें कि महिलाओं के साथ सद्व्यवहार होना चाहिए। महिलाओं का इस मामले में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहिए। देश की शिक्षा मंत्री इस समय महिला ही है। सब जानते हैं कि स्मृति ईरानी ने टीवी सीरियलों में काम भी किया है। यदि शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी अपने बड़े भाई और देश के पीएम नरेन्द्र मोदी से आग्रह करेंगी तो अश्लील टीवी सीरियलों पर रोक लगाई जा सकती है। दिल्ली की बहुचर्चित निर्भया बलात्कार कांड पर बनी डाक्यूमेंट्री फिल्म को इसलिए बैन कर दिया कि उसमें महिलाओं के बारे में गलतबयानी की थी। जबकि दूसरी ओर चैनलों पर प्रसारित होने वाले सीरियलों में रोजाना महिलाओं का चरित्र हनन किया जाता है। यह माना कि आधी आबादी को स्वतंत्रता भी मिलनी चाहिए। लेकिन यदि ऐसी स्वतंत्रता स्वयं के लिए घातक बन जाए तो फिर स्वतंत्रता के कोई मायने नहीं है। हर महिला अपने विवाह के समय अपने पिता के घर से बिलखते हुए विदा होती है तब वह अपनी सास से यह अपेक्षा करती है कि उसे पुत्री के समान समझा जाए। लेकिन वहीं महिला सास की भूमिका में होती है तो उसके विचारों में बदलाव आ जाता है। यदि हर महिला अपनी बहू को बेटी के समान और हर बहू अपनी सास को मां के समान समझ ले,तो सही मानिए 90 प्रतिशत समस्याओं का समाधान हो जाएगा फिर हमें पश्चिम देशों के अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की आवश्यकता भी नहीं होगी। जहां तक ग्रामीण परिवेश का सवाल है तो सरकार को हर कीमत पर बालिका शिक्षा पर जोर देना चाहिए। आजादी के 68 साल बाद भी यदि गांव की बालिकाएं अनपढ़ रहती है तो यह सामाजिक व्यवस्था पर एक दाग है। शहरी बालिकाओं के साथ-साथ ग्रामीण बच्चियों का भी शिक्षा के क्षेत्र में विकास होना चाहिए। महिला दिवस पर हमें मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर भी विचार करना चाहिए। मुस्लिम महिलाओं को भारतीय संविधान के अनुरूप अधिकार नहीं दिए जा रहे हैं, जिनकी वहज से महिलाओं की स्थिति संतोषप्रद नहीं है। मुस्लिम महिलाएं किन परिस्थितियों में जीवन जी रही हैं, यह पीडि़त महिला ही बता सकती है। समाज में महिला अधिकारों का झंडा उठाने वाली महिला नेत्रियों को मुस्लिम महिलाओं की ओर भी ध्यान देना चाहिए।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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