Wednesday 4 March 2015

क्या बलात्कारी के इंटरव्यू का प्रसारण जायज हैं

क्या बलात्कारी के इंटरव्यू का प्रसारण जायज हैं
बीबीसी ने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई है। इस फिल्म में दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया बलात्कार काण्ड का विस्तृत विवरण है, अब इस फिल्म का विरोध इसलिए हो रहा है कि इसके रेप के आरोपी का इंटरव्यू भी है। फिल्म बनकर तैयार है और इसका प्रसारण प्रमुख न्यूज चैनल एनडीटीवी पर होना है। फिल्म में जिस प्रकार बलात्कारी का इंटरव्यू दिखाया गया है उसके विरोध में 4 मार्च को संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा हुआ। महिला सांसदों ने कहा कि यदि फिल्म की आड़ में बलात्कारी का इंटरव्यू दिखाया जाता है तो इससे दुनियाभर में भारत की बदनामी होगी। जया बच्चन ने तो यहां तक कहा कि जो बलात्कारी अपने इंटरव्यू में लड़की की गलती बता रहा है उसे मुझे सौंप देना चाहिए। मैं उसे बताऊंगी कि लड़की की गलती क्या होती है? महिला सांसदों के विरोध के बाद सरकार ने डॉक्यूमेंट्री फिल्म के प्रसारण पर रोक लगा दी। इस रोक सेे एनडीटीवी वाले खफा हो गए। इस चैनल पर अब बलात्कारी का इंटरव्यू के पक्ष में तर्क दिए जा रहे है। एनडीटीवी की ओर से यह कहा जा रहा है कि जब भारत में किसी विदेशी महिला के साथ बलात्कार होता है तो क्या उस समय दुनिया में भारत की बदनामी नहीं होती? चैनल पर ऐसे-ऐसे लोगों को पकड़कर लाया गया जो बलात्कारी के इंटरव्यू के प्रसारण के पक्षधर रहे। इसलिए यह सवाल उठा कि क्या बलात्कारी के इंटरव्यू का प्रसारण जायज है? एनडीटीवी पिछले दो दिनों से बलात्कारी के इंटरव्यू के प्रमुख अंश दिखा रहा है। इसमें बलात्कारी ने कहा कि घटना वाले दिन लड़की ने ऐसे कपड़े पहन रखे थे जिसको देखकर कोई भी जवान व्यक्ति बलात्कार के लिए उतावला हो जाए। इस बलात्कारी ने प्रवचन के अंदाज में कहा कि लड़कियों को शाम 7 बजे बाद अपने घरों से नहीं निकलना चाहिए। आरोपी ने स्वयं को बलात्कारी न मानते हुए उत्पन्न परिस्थितियों को जिम्मेदार ठहराया। सवाल उठता है कि एनडीटीवी वाले इस देश में क्या परोसना चाहते है? विदेशी महिला के साथ बलात्कार का तर्क देकर किसी बलात्कारी का इंटरव्यू दिखाना बलात्कार की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना नहीं है? वह भी तब जब आरोपी पश्चाताप करने के बजाए अपने कृत्य को जायज ठहरा रहा हो। एनडीटीवी को चाहिए कि वह कुतर्क करने के बजाए स्वयं निर्णय ले कि हम बलात्कारी के इंटरव्यू का प्रसारण नहीं करे। जहां तक केन्द्र सरकार का सवाल है तो उसे भी अपनी गलती के लिए देश से, खासकर महिलाओं से माफी मांगनी चाहिए। इंटरव्यू के प्रसारण पर रोक लगाकर सरकार ने सिर्फ अपनी गलती पर पर्दा डाला है। जिस आरोपी को न्यायालय से सजा मिली हुई हो और इस समय वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हो, उस आरोपी का इंटरव्यू एक विदेशी महिला पत्रकार ने कैसे ले लिया। इस इंटरव्यू पर दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बी.एस.बस्सी का बयान तो बेहद ही बचकाना है। बस्सी ने कहा कि इस मामलें कि जांच इंटरव्यू की अनुमति देने पर नहीं बल्कि इंटरव्यू के तथ्यों पर हो। बस्सी साहब जब इंटरव्यू लेने के बाद पूरी डॉक्यूमेंट्री ही बन गई तब आप किन तथ्यों की जांच कर रहे हो? यदि इतनी ही अक्ल थी तो इंटरव्यू के दौरान ही ये देखा जाता कि जेल में बंद बलात्कारी क्या कह रहा है। दिल्ली पुलिस ने पहले तो बिना अक्ल लगाए विदेशी पत्रकार को इंटरव्यू की अनुमति दे दी और अब इंटरव्यू के तथ्यों की जांच हो रही है। सरकार को चाहिए कि पुलिस के उन अफसरों को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया जाए, जिन्होंने इंटरव्यू की अनुमति दी। जो लोग बलात्कारी के इंटरव्यू के प्रसारण के पक्षधर है, उन्हें भारतीय संस्कृति के इस श्लोक को पढऩा चाहिए।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र देवता रमन्ते
यानि जहाँ नारी की पूजा होती है वहां देवता वास करते हैं। हमें ऐसी सामाजिक परिस्थितियों को तैयार करना चाहिए जिसमें महिलाओं खासकर मासूम बच्चियों को सुरक्षा मिल सके। सरकार को टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले इन सीरियलों पर भी रोक लगानी चाहिए जिसमें महिलाओं को भोग के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है। 4 मार्च को संसद में किरण खैर, मीनाक्षी लेखी, जया बच्चन जैसी जिन सांसदों ने बलात्कारी के इंटरव्यू पर सख्त रूख अपनाया, इसी प्रकार इन सांसदों को अश्लील, बेहुदा और बलात्कार की प्रवृत्ति को बढ़ाने वाले टीवी सीरियलों के खिलाफ भी संसद में आवाज उठानी चाहिए।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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