Tuesday 3 March 2015

होली पर विशेष: युवतियों के गाल और पेट पर क्यों लगाया जाता है रंग

होली पर विशेष: युवतियों के गाल और पेट पर क्यों लगाया जाता है रंग
होली के पर्व को अनेक लोग अपने नजरिए से मनाते हैं, अब तो इस पर्व को हुड़दंग का मौका कहा जाता है, जबकि होली का पर्व ईश्वर भक्ति से जुड़ा हुआ है। पुराणों के अनुसार असुरराज हिरण्याकश्यप चाहता था कि सब लोग उसकी पूजा करें, जबकि उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्ता था। अपने पुत्र विष्णु भक्त प्रहलाद को मारने के लिए ही हिरण्याकश्यप ने अपनी बहन होलिका का इस्तेमाल किया, चूंकि होलिका में अग्नि सहन करने की क्षमता थी, इसलिए होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्निकुंड में बैठ गई। भगवान विष्णु की कृपा से होलिका तो अग्नि में जल गई, लेकिन प्रहलाद का बाल बांका भी नहीं हुआ। यह कहानी हमें यह प्रेरणा देती है कि जो लोग ईश्वर की भक्ति में लगे रहते हैं उनकी रक्षा अपने आप होती है। होलिका और प्रहलाद की इस कहानी के कारण ही आज हम होली का पर्व मनाते है। अनेक लोगों ने इस पर्व के उद्देश्य को ही मिटा दिया है और ऐसे लोग मौजमस्ती के लिए होली का पर्व हुड़दंग के रूप में मनाते हैं। जिन परिवारों में युवतियां हैं उन्हें होली के पर्व पर बेहद सतर्कता बरतनी चाहिए। होली के बाद हम बाजारों में देखते हैं कि युवतियों  के गाल और पेट पर विभिन्न रंग लगे होते हैं। यहां यह सवाल उठता है कि जब पुराणों के मुताबिक होली का पर्व ईश्वरीय भक्ति का है, तब युवतियों के गाल और पेट पर रंग क्यों लगाए जाते हैं? अनेक युवतियों की इच्छा के विरुद्ध देवर, जेठ, दोस्त, आस पड़ौस के युवा रिश्तों की आड़ में रंग लगाते हैं। क्या यह युवतियों के माता-पिता और सास-ससुर की जिम्मेदारी नहीं है कि वे होली के पर्व पर सतर्कता दिखाए? हो सकता है कि कई जगह युवतियां भी इस तरह का व्यवहार पसंद करती हों, लेकिन भारतीय संस्कृति में इस तरह की मौजमस्ती को स्वीकार नहीं किया जाता है। कुछ लोग भगवान कृष्ण की लीलाओं को भी होली के पर्व से जोडऩे लगे हैं। ऐसे लोग कृष्ण के चरित्र को समझ ही नहीं रहे। कृष्ण की प्रेम लीलाओं का मकसद युवतियों के पेट व गाल पर रंग लगाना नहीं बल्कि हिरण्याकश्यप जैसे राक्षसों से युवतियों की रक्षा करना है। कृष्ण ने गीता के माध्यम से दुनिया में जो ज्ञान दिया वह आज भी सार्थक है। जो जैसा कर्म करेगा, उसे वैसा ही फल मिलेगा। जो लोग होली के मौके पर मौजमस्ती के लिए युवतियों के गालों और पेट पर रंग लगाते हैं, उन्हें भगवान कृष्ण के ज्ञान को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। जहां तक रंगों का सवाल है तो हर रंग का अपना अपना अर्थ है। लाल रंग क्रोध के लिए, हरा रंग ईष्र्या, पीला रंग आनंद, गुलाबी रंग प्रेम, नीला विस्तृतता, सफेद शांति, केसरियां बलिदान और जामुनी रंग ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। जो लोग होली पर लाल और हरे रंग का उपयोग करते हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि वे क्रोध और ईष्र्या का रंग लगा रहे हैं। अच्छा हो कि होली का पर्व ईश्वरीय भक्ति के साथ शालीनता और सद्भावना के साथ मनाया जाए। इस दिन आपसी मनमुटाव और ईष्र्या को भी खत्म किया जाए। सिर्फ रंग लगाने से सद्भावना नहीं होती, बल्कि मन के मेल को साफ करने से मित्रता होती है। पिता अपने पुत्र की, माता अपने पुत्री की, दोस्त अपने मित्र की, भाई अपने बहन की, मदद तो करता ही है, लेकिन अपने दुश्मन की मदद करने की ताकत होनी चाहिए। जो लोग अपने दुश्मनों की मदद करने की क्षमता रखते हैं उनका कभी भी नुकसान नहीं हो सकता।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

No comments:

Post a Comment