Wednesday 11 March 2015

विधानसभा अध्यक्ष मेघवाल क्यों कर रहे हैं सरकार का बचाव

विधानसभा अध्यक्ष मेघवाल क्यों कर रहे हैं सरकार का बचाव
संविधान के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष का पद राजनीति और सरकार से ऊपर होता है। अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने के बाद सदन में उपस्थित सभी दलों के सदस्यों के हितों की रक्षा करने का दायित्व अध्यक्ष का ही होता है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष कैलाश मेघवाल विपक्षी कांग्रेस विधायकों के हितों के बजाए सत्तारुढ़ भाजपा सरकार के हितों की चिन्ता ज्यादा कर रहे हैं। गत 3 मार्च को जब कांग्रेसियों ने विधानसभा के बाहर भाजपा सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया तो पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा।
कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट ने सार्वजनिक तौर पर बताया कि पुलिस की लाठियां उनके शरीर पर भी पड़ी। पायलट ने लाठियों के निशान भी दिखाए। इसके जवाब में 11 मार्च को प्रदेश के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि 3 मार्च को हुए लाठी चार्ज की टीवी फुटेज उन्होंने देख ली है और किसी भी फुटेज में सचिन पायलट पुलिस से पिटते नजर नहीं आए हैं। कटारिया ने यह भी कहा कि पुलिस ने तो धैर्य से काम लिया, लेकिन कांग्रेसियों ने ही हालात बिगाड़े। चूंकि पायलट पर लाठियों की फुटेज नहीं है, इसलिए पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का सवाल ही नहीं उठता।
चूंकि कटारिया सरकार में बैठे हैं, इसलिए उनसे ऐसे ही बयान की उम्मीद की जाती है, लेकिन कैलाश मेघवाल तो विधानसभा के अध्यक्ष हैं। इसलिए उनसे निष्पक्षता की उम्मीद है। इस मामले में कांग्रेस के आठ विधायक अभी भी विधानसभा से निलंबित चल रहे हंै। यह माना की 200 विधायकों में से 163 भाजपा के हंै, जबकि कांग्रेस के तो 21 ही विधायक हैं। इनमें से यदि 8 विधायकों को निलंबित कर दिया जाए तो सदन में कांग्रेस की स्थिति नहीं के बराबर होगी। गत 3 मार्च को हुए लाठीचार्ज की एक फोटो मुझे भी प्राप्त हुई है। यह फोटो मैं सोशल मीडिया पर शेयर कर रहा हंू। विधानसभा अध्यक्ष मेघवाल और गृहमंत्री कटारिया इस फोटो को देखे और बताएं कि पुलिस के सख्त रवैये में कोई कसर रह गई है। इस फोटो में एक महिला पुलिस अधिकारी ने सचिन पायलट की गर्दन को पकड़ रखा है और पूरी ताकत गर्दन पर लगा रखी है। पुलिस का डंडा भी पायलट पर है। यह फोटो दर्शाता है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के साथ कैसा बर्ताव हुआ है। जब प्रदेश अध्यक्ष पर इस तरह की ज्यादती हुई है तो कांग्रेस के अन्य कार्यकर्ताओं पर हुई ज्यादती का अदंाजा लगाया जा सकता है। यह माना कि अपनी पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष पर हमले के बाद कांग्रेस के विधायकों ने विधानसभा में हंगामा किया होगा, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष मेघवाल को भी इस बात पर विचार करना चाहिए कि आखिर किन परिस्थितियों में हंगामा हुआ। विधायकों को निलंबित करने का विशेषाधिकार मेघवाल के पास ही है। मेघवाल को प्रदेश की राजनीति में दबंग राजनेता माना जाता है, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद उनकी भूमिका में बदलाव हो जाता है। इस मामले में प्रदेश के चिकित्सा मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ के बयान पर भी मेघवाल को गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए। राठौड़ ने 10 मार्च को दो टूक शब्दों में कहा कि कांग्रेस विधायकों के निलंबन का मामला सरकार से कोई संबंध नहीं रखता है।
यह विवाद तो विधानसभा अध्यक्ष और कांग्रेस के विधायकों के बीच का है। यानि राठौड़ ने सारी जिम्मेदारी मेघवाल पर डाल दी। सब जानते हैं कि जिस दल की सरकार होती है, उसी दल का विधायक विधानसभा का अध्यक्ष भी बनता है। इसके पीछे सदन में सरकार का बचाव करने का मकसद ही होता है, लेकिन इस मामला में जब राठौड़ ने सारी जिम्मेदारी अध्यक्ष पर डाल दी है तो फिर मेघवाल को भी अपने विशेषाधिकारों का उपयोग करते हुए कांग्रेस के विधायकों का निलंबन रद्द करना चाहिए। लोकतंत्र में विपक्ष का होना भी बेहद जरूरी है।

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