Monday 22 May 2017

#2600
कश्मीर मुद्दे पर विपक्ष की सर्वदलीय सभा में जवानों की शाहदत पर भी विचार हो। समस्या का हल भी बताएं। 
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22 मई को भी कश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में हमारे तीन जवान शहीद हो गए। इसमें कोई दो राय नहीं कि इन दिनों घाटी के कुछ जिलों में हालात बेहद खराब हैं। आए दिन आतंकवादियों और सुरक्षा बलों में मुठभेड़ होती हैं और उस पर पाकिस्तान की ओर से रोजाना गोलाबारी भी की जा रही है। एक ओर नरेन्द्र मोदी की सरकार तीन साल की उपलब्धियों को गिनाने में लगी हुई है तो वहीं विपक्ष ने कश्मीर मुद्दे पर सर्वदलीय सभा बुलाने की घोषणा की है। विपक्ष यह समझता है कि केन्द्र सरकार की सबसे कमजोर नस कश्मीर समस्या ही है। मोदी गत लोकसभा चुनाव में प्रचार कर रहे थे तब उन्होंने बार-बार कहा कि समस्या कश्मीर की सीमा पर नहीं, दिल्ली में है। यानि तब भी मोदी ने यूपीए सरकार पर निशाना साधा। लोकतंत्र में विपक्ष को भी किसी मुद्दे पर सर्वदलीय सभा बुलाने का अधिकार है। लेकिन ऐसी सभा का कुछ निष्कर्ष भी निकलना चाहिए। लगातार चुनाव हार रही कांग्रेस और उसके सहयोगी दल यदि सरकार की आलोचना के लिए कश्मीर मुद्दे पर सर्वदलीय सभा बुला रहे हैं तो यह न तो कश्मीर और न देशहित में होगा। असल में कश्मीर की समस्या कोई राजनीतिक समस्या नहीं है। विपक्ष भी जानता है कि कश्मीर के अलगाववादी हमारे कश्मीर को अलग करना चाहते हैं। चूंकि यूपीए के शासन में अलगाववादियों के प्रतिनिधियों को बार-बार दिल्ली बुलाकर बिरयानी खिलाई जाती रही, इसलिए घाटी में अपेक्षाकृत शान्ति रही। लेकिन एनडीए की सरकार में उन अलगाववादियों से कोई वार्ता नहीं की जा रही, जो कश्मीर की आजादी की मांग कर रहे हैं। इसलिए अलगाववादियों के नेता बौखलाए हुए हैं। केन्द्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि आजादी की मांग करने वालों से कोई वार्ता नहीं की जाएगी। अब जब विपक्ष सर्वदलीय सभा बुला रहा है, तो उसे कश्मीर पर अपनी मंशा को भी स्पष्ट करना चाहिए। विपक्ष में नेशनल कान्फ्रेंस के फारूख अब्दुल्ला भी शामिल हैं। ये वो ही फारूख अब्दुल्ला हैं, जो अलगाववादियों के समर्थक हैं। कांग्रेस, वामपंथी, टीएमसी, बसपा, सपा आदि यह स्पष्ट करें कि क्या वे फारूख अब्दुल्ला के विचारों से सहमत हैं? विपक्षी दलों को अपनी सभा के बाद यह दो टुक शब्दों में बताना चाहिए कि क्या आजादी मांगने वाले अलगाववादियों से वार्ता की जाए? सच्चाई है कि आतंकवादियों द्वारा रोजाना हमारे जवानों की हत्या करने के बाद भी केन्द्र सरकार कश्मीर में सख्ती नहीं कर रही है। यह बात विपक्षी दल भी समझते हैं। विपक्ष यह भी जानता है कि संविधान के अनुच्छेद 370 की वजह से कश्मीर के नागरिकों को पहले ही बहुत रियायतें मिली हुई हैं। इन रियायतों की वजह से ही अलगाववादियों ने चार लाख हिन्दुओं को पीट-पीट कर कश्मीर से भगा दिया। विपक्ष को अपनी सभा में इन हिन्दुओं को वापस कश्मीर में बसाने पर भी निर्णय लेना चाहिए। विपक्ष के इस आरोप में दम है कि केन्द्र की भाजपा सरकार तीन साल गुजर जाने के बाद भी एक भी हिन्दू को कश्मीर में वापस नहीं बसा सकी है। आज भी कश्मीरी हिन्दू शरणार्थी केम्पों में रह रहे हैं। अच्छा हो कि विपक्ष ऐसी कार्ययोजना बताएं, जिससे कश्मीर हमारे देश से ही जुड़ा रहे। विपक्ष को इस सभा में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को भी आमंत्रित करना चाहिए। 
(एस.पी.मित्तल) (22-05-17)
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