Sunday, 15 May 2016

अजमेर के जेएलएन अस्पताल में पांच नवजात बच्चों की मौत।

#1358

इन मौतों का जिम्मेदार कौन?
क्या सरकार के इंतजाम फेल हो गए हैं?
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15 मई को तड़के अजमेर के जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के शिशु विभाग में उस समय हंगामा हो गया, जब एक के बाद एक पांच नवजात बच्चों की मौत की खबर आती चली गई। बच्चा जननेे वाली मांओं को यह समझ में ही नहीं आया कि उनके बच्चों की मौत कैसे हो गई। एक साथ पांच नवजात बच्चों की मौत का मामला राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए मुसीबत बनेगा, क्योंकि पिछले दिनों ही जयपुर के एक सरकारी विमंदित गृह में 12 बच्चों की मौत हो गई थी। सवाल उठता है कि क्या सरकार के इंतजाम फेल हो गए हैं? 15 मई को जिन बच्चों की मौत हुई, उन्हें आसपास के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों से रैफर करके भेजा गया था। प्राथमिक केन्द्र के चिकित्सकों ने इसलिए संभाग के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में भेजा ताकि बच्चों की जान बचाई जा सके, लेकिन इसका अलटा हुआ। अजमेर के अस्पताल में तो इन बच्चों की मौत ही हो गई।अब डॉक्टरों का कहना है कि यह बच्चे तो पहले ही मरी हुई दशा में आए थे। यानि अजमेर का अस्पताल इन मौतों की कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है। महत्त्वपूर्ण सवाल यह है, जब सरकार चिकित्सा पर करोड़ों रुपया खर्च कर रही है, तब दो सरकारी अस्पताल के बीच पांच नवजातों की मौत कैसे हो गई? राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे और चिकित्सा मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़  को इन दोनो ंअस्पतालों के चिकित्सकों से यह पूछना चाहिए कि नवजात बच्चों का स्थानांतरण सुरक्षित क्यों नहीं हुआ? जब प्राथमिक केन्द्र के चिकित्सक ने अजमेर के लिए रैफर किया तो चिकित्सक की यह भी जिम्मेदारी थी कि वह एम्बुलेंस का इंतजार कर नवजातों और उनकी मां को सुरक्षित तरीके से अजमेर के अस्पताल में पहुंचाते। इसे शर्मनाक ही कहा जाएगा कि प्राथमिक केन्द्र के चिकित्सक ने रैफर कर अपनी जिम्मेदारी को खत्म मान लिया। गरीब मां और बाप चार घंटे, एक दिन, दो दिन की उम्र वाले बच्चों को इस भीषण गर्मी में अपने साधनों से अजमेर के अस्पताल लाए। इसके बाद अजमेर के अस्पताल में भी लापरवाही का रवैया अपनाया गया। संभाग के इस सबसे बड़े जेएनएल अस्पताल के किसी भी चिकित्सक ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि नवजात बच्चे भीषण गर्मी में कई घंटों का सफर कर आए हैं। यदि अजमेर के अस्पताल के चिकित्सक थोड़ी भी संवेदनशीलता और जिम्मेदारी दिखाते तो पांच घंटे में पांच नवजातों की मौत नहीं होती। कहा जा रहा है कि पहली मौत 14 मई रात 12 बजे ही हो गई थी और अंतिम पांचवीं मौत प्रात: 5 बजे हुई। शर्मनाक बात यह भी है कि जब परिजन ने इन मौतों पर हंगामा किया तो चिकित्साकर्मियों ने दुव्र्यवहार करते हुए कह दिया कि यह बच्चे तो मरी हुई दशा में ही आए थे। अब चिकित्सामंत्री राठौड़ से लेकर चिकित्सा विभाग के बड़े अधिकारी अजमेर आकर सहानुभूति जताएंगे। कलेक्टर गौरव गोयल ने जांच कमेटी भी बना दी है, लेकिन यह सब कार्यवाही वैसी ही है, जैसे सांप निकलने के बाद उसकी लकीर को पीटा जाता है। 
सरकार सबक ले
अजमेर में हुई इन पांच बच्चों की मौत से सरकार को सबक लेना चाहिए। सरकारी अस्पतालों में भीषण गर्मी के दौरान पंखें, कूलर, ऐसी आदि के इंतजाम करने चाहिए। जब सीएम राजे स्वयं को संवेदनशील बताती हैं तो फिर अस्पतालों में पांच बच्चों की मौत भी नहीं होनी चाहिए। राजे माने या नहीं लेकिन सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज जनवरों से बदत्तर होता है। इसलिए प्राइवेट अस्पताल चांदी कूटते हैं
इनके बच्चों की हुई मौत
नसीराबाद के तेजाराम और उसकी पत्नी मनोहरी, ब्यावर के ज्ञान की पत्नी ममता, पीसांगन के सिकंदर की पत्नी सीमा, मेड़ता के शंकर की पत्नी नौनी तथा भीलवाड़ा के मदनलाल की पत्नी सविता के पुत्रों की मौत हुई है। यह नवजात एक दिन से लेकर 7 दिन की उम्र के थे। शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन ने कहा है कि पांच नहीं सात बच्चों की मौत हुई है। चिकित्सकों ने दो बच्चों को तो भर्ती करने से पहले ही मरा हुआ बता दिया था। 
गहलोत ने की कलेक्टर से बात
प्रदेश के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने अजमेर के कलेक्टर गौरव गोयल से पांच बच्चों की मौत पर बात की। कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने बताया कि गहलोत ने कलेक्टर से कहा है कि मृतक बच्चों की मां की देखभाल अच्छी तरह की जाए और परिजन को उचित मुआवजा दिया जाए। गहलोत ने एक साथ पांच बच्चों की मौत पर अफसोस जताया है। 
नोट- फोटोज मेरे ब्लॉग spmittal.blogspot.in तथा फेसबुक अकाउंट पर देखें। 

(एस.पी. मित्तल)  (15-05-2016)
(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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