Tuesday 14 April 2015

पायलट की तरह सांवरलाल जाट भी ग्रामीणों की भूमि जबरन छिनवा रहे हैं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि संशोधित भूमि अधिग्रहण बिल किसानों के हित में है, लेकिन कांग्रेस और विप क्षी दल ग्रामीणों को भ्रमित कर रहे हैं। हो सकता है कि मोदी का यह कथन सही भी हो, लेकिन राजस्थान के अजमेर जिले में किशनगढ़ के निकट बनने वाले हवाई अड्डे के लिए ग्रामीणों की जमीन उसी बेरहमी और गुंडागर्दी से छीनी जा रही है जिस प्रकार कांग्रेस के राज में छीनने की शुरुआत हुई थी। कांग्र्रेस के शासन में अजमेर के सांसद सचिन पायलट केन्द्र में मंत्री थे, तब उन्होंने पूरी ताकत लगाकर किशनगढ़ के निकट हवाई अड्डे का शिलान्यास तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से करवा लिया। तब भी ग्रामीण चिल्ला रहे थे कि जो जमीन उनकी छिनी गई है, उसका मुआवजा बहुत कम दिया जा रहा है, लेकिन पायलट ने प्रशासन के अधिकारियों पर दबाव डालकर भूमि अधिग्रहण की सारी कार्यवाही पूरी करवा दी। कांगे्रस ने जो गुंडाई की उसका करारा जवाब ग्रामीणों ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा को जितवाकर दे दिया। जो पायलट हवाई अड्डे के नाम पर वोट मांग रहे थे, उन्हें भी ग्रामीणों ने एक लाख से भी ज्यादा वोटों से हरवा दिया। ग्रामीणों को उम्मीद थी कि भाजपा के राज में उचित मुआवजा मिलेगा, लेकिन इस उम्मीद पर तब पानी फिर गया, जब अजमेर के भाजपा सांसद सांवरलाल जाट केन्द्र में जल संसाधन राज्यमंत्री बन गए। जाट स्वयं को किसान नेता मानते हैं, लेकिन किसानों का यह दुर्भाग्य है कि जब हवाई अड्डे के नाम पर मामूली मुआवजे पर जमीन छीनी जा रही है, तो सांवरलाल जाट खामोश बैठे है, बल्कि प्रशासन पर यह दबाव डाल रहे हैं कि किसानों से जमीन छीन कर जल्द से जल्द एयरपोर्ट ऑथोरिटी को दे दें। जाट का कहना है कि अजमेर के हवाई अड्डे की योजना को पीएम नरेन्द्र मोदी की एक वर्ष की योजना में शामिल कर लिया गया है, इसलिए हवाई अड्डे का काम जल्द से जल्द शुरू होना है। यानि पायलट हो या जाट किसानों का तो मरण ही है। किशनगढ़ के निकट बनने वाले हवाई अड्डे के लिए राठौड़ों की ढाणी, जाटली और सराना गांवों की 821 बीघा भूमि का अधिग्रहण हुआ है। यह भूमि अजमेर शहर और किशनगढ़ के बीच है, इसलिए भूमि की कीमत भी अधिक है। यहां सरकार ने सिंचित भूमि की एक लाख 64 हजार 450 रुपए तथा असिंचित भूमि की एक लाख 26 हजार 500 रुपए प्रतिबीघा डीएलसी दर निर्धारित कर रखी थी, जब ग्रामीणों ने इस मुआवजा राशि का विरोध किया तो प्रशासन की ओर से कहा गाय कि डीएलसी की दर का 6 गुना भुगतान किया जाएगा। प्रशासन के इस वायदे पर ग्रामीणों ने भरोसा किया और भूमि का 80 प्रतिशत मुआवजा पुरानी दर से स्वीकार कर लिया, लेकिन किसानों को अपने साथ हुए इस धोखे का पता तब चला जब रातों रात प्रशासन ने डीएलसी की दर को घटा दिया। आमतौर पर डीएलसी की दर प्रतिवर्ष बढ़ती है, लेकिन इन गंावों में रातों रात डीएलसी की दर घटा दी गई। इसका परिणाम यह हुआ कि सिंचित भूमि के 85250 रुपए तथा असिंचित भूमि के 74,750 रुपए प्रतिबीघा आंका गया। अब नरेन्द्र मोदी, वसुंधरा राजे और सांवरलाल जाट के राज में ग्रामीण रो-रोकर अपनी पीड़ा सुना रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।
हाल ही में ग्रामीणों ने जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक से मुलाकात की और यह आग्रह किया कि गांव में जो उनके मकान बने हुए है, कम से कम उसका तो मुआवजा दिलवा दिया जाए, लेकिन डॉ. मलिक ने यह कहकर किसानों के सिर पर हथोड़ा मार दिया कि आप लोगों के मकान तो अतिक्रमण है। गांव वालों का कहना है कि जिन मकानों में उनकी 20 पीढिय़ां रह चुकी है। वे मकान कैसे अतिक्रमण हो सकते हैं। इन मकानों को तो आक्रमणकारी मुगल बादशाहों और अंग्रेजों ने भी अतिक्रमण नहीं माना,लेकिन  अब अपने ही आजाद देश में बरसों पुराने मकानों को अतिक्र्र्रमण मानकर तोडऩे की कार्यवाही की जा रही है। देश में जो लोग संशोधित भूमि अधिग्रहण बिल को किसानों के हित में बता रहे हैं, उन्हें अजमेर के राठौड़ों की ढाणी जाटली और सराना गांवों में आकर ग्रामीणों का दर्द सुनना चाहिए। यह बात भी हवा है कि जिन ग्रामीणों की जमीन छीनी जाएगी, उनके परिवार में एक सदस्य को नौकरी दी जाएगी। एयर पोर्ट ऑथोरिटी के अधिकारियों का साफ कहना है कि हम किसी भी जमीन मालिक को नौकरी नहीं देंगे। सवाल उठता है कि जब अजमेर में भाजपा के शासन में इन ग्रामीणों की सुनने वाला कोई नहीं है, तो फिर नए बिल को किसानों के हित में किस प्रकार से बताया जा रहा है। केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बिल पर कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी को खुली बहस करने की चुनौती दी है। गडकरी सोनिया गांधी से तो लोकसभा में भी बहस कर सकते हैं, लेकिन किशनगढ़ आकर बेघर हो रहे ग्रामीणों से तो संवाद कर ही सकते हैं? जब उनका खुद का सांसद प्रशासन के जरिए दादागिरी कर रहा है तो फिर गडकरी और नरेन्द्र मोदी भी क्या कर लेंगे? टीवी पर भाषण देना अलग बात है और जमीन पर आकर ग्रामीणों से बात करना अलग बात है। काश इस गूंगी, बहरी और नेत्रहीन व्यवस्था में ग्रामीणों की सुनने वाला कोई तो हो।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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