Sunday 10 April 2016

क्या केरल के कोल्लम मंदिर में हुई मोतों के लिए हम स्वयं जिम्मेदार नहीं हैं?


आखिर रोक के बाद विस्फोटक सामग्री कैसे पहुंची?
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केरल के कोल्लम के पुतिंगल देवी के मंदिर में 9 अप्रैल की रात को अतिशबाजी हुई, उसमें 100 से भी ज्यादा श्रद्धालु जल कर मर गए और कोई 300 श्रद्धालु अभी भी मौत से संघर्ष कर रहे हैं। श्रद्धालु नव वर्ष का उत्सव मनाने के लिए एकत्रित हुए थे। उत्सव के दौरान अतिशबाजी की पुरानी पंरपरा है, लेकिन इस अतिशबाजी से हुए हादसे की आशंका को देखते हुए एक महिला ने स्थानीय अदालत में जनहित याचिका दायर कर अतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। इस पर 8 अप्रैल को ही अदालत ने आतिशबाजी पर रोक लगा दी। लेकिन इस रोक के बाद भी 9 अप्रैल को दिनभर विस्फोटक सामग्री मंदिर परिसर में जमा की जाती रही। मंदिर प्रबंधन और पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी को अच्छी तरह पता था कि विस्फोटक सामग्री जमा हो रही है। लेकिन श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था के दबाव की वजह से ही इस अवैध कृत्य पर कोई कार्यवाही नहीं  की गई। माना जा रहा है कि इसके पीछे स्थानीय राजनेताओं का भी दबाव रहा। केरल में अगले माह विधानसभा के चुनाव होनेे हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों के नेता किसी भी मतदाता को नाराज नहीं करना चाहते थे। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं ने आतिशबाजी को धार्मिक रस्म से जोड़ रखा है। असल में इस मंदिर में आतिशबाजी नहीं होती, बल्कि आतिशबाजी की प्रतियोगिता होती है। गुटों में विभाजित श्रद्धालु एक से बड़कर एक अतिशबाजी करते हैं। प्राथमिक जांच में यह सामने आया है कि विस्फोटक सामग्री में डायनामाइट तक का उपयोग हुआ है। जिस तरह मंदिर का एक हिस्सा मिट्टी के ढेर में तब्दील हो गया, उससे डायनामाइट के इस्तेमाल की आशंका बढ़ गई है। हम सब जानते हैं कि जब किसी परंपरा  को धर्म से जोड़ दिया जाता है, तो फिर उस परंपरा को रोक पाना मुश्किल हो जाता है।  यह माना कि अदालत के फैसले के बाद प्रशासन को उन तत्वों के विरुद्ध कार्यवाही करनी चाहिए थी जो विस्फोटक  सामग्री को मंदिर परिसर में ले जा रहे थे। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या अदालत की रोक को देखते हुए स्वयं श्रद्धालु विस्फोटक सामग्री से दूर नहीं रहते? कायदे से तो श्रद्धालुओं को ही आतिशबाजी से बचना चाहिए था। श्रद्धालुओं की स्वयं की रुचि आतिशबाजी में थी, इसलिए रात 12 बजे बाद तक मंदिर परिसर में जमा रहे। परंपरा के मुताबिक आतिशबाजी की प्रतियोगिता रात 12 बजे बाद से ही शुरू होती है। इस बार भी यह प्रतियोगिता सुबह 3 बजे तक चलती रही और तभी यह हादसा हो गया। अब चाहे कोई भी जांच करे, लेकिन नतीजा शून्य ही आएगा। धार्मिक स्थलों पर ऐसे हादसे पहले भी हो चुके हैं। हर बार जांच रिपोर्ट आती है। लेकिन ऐसी जांच रिपोर्ट धार्मिक आस्था के नीचे दब जाती है। हो सकता है के मंदिर में हुई मौतें को लेकर आने वाले दिनों में ज्यादा शोर मचे, क्योंकि केरल में अगले माह विधानसभा के चुनाव होने है। अच्छा हो कि जख्मी श्रद्धालुओं के समुचित इलाज के इंतजाम किए जाए ताकि मरने वालों की संख्या और न बढ़े। इस मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मौके पर जाकर जो पहल की है, उसका स्वागत किया जाना चाहिए। केरल के सीएम चांडी की मांग पर केन्द्र सरकार ने हर सुविधा उपलब्ध करवाई है। इसके अंतर्गत भारतीय जल सेना के दो जहाज और वायु सेना के हेलीकाप्टर केरल सरकार को उपलब्ध करवाए गए हैं। 
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(एस.पी. मित्तल)  (10-04-2016)
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