Monday 1 June 2015

भंवरलाल डोसी का यह कैसा संन्यास

दिल्ली के प्लास्टिक कारोबारी भंवरलाल डोसी के संन्यास लेने की खबर इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में छाई हुई है। सवाल उठता है कि क्या डोसी ने वाकई संन्यास लिया है? संन्यास के समारोह में जो भव्यता प्रदर्शित की गई, उससे तो यह प्रतीत नहीं होता कि डोसी अब संन्यासी बन गए हैं। अहमदाबाद के राजनगर में कोई 25 करोड़ रुपए की लागत से एक जहाजनुमा पंडाल बनाया गया। इस पंडाल में ही डोसी ने जैन आचार्य गुणरत्न सुरीस्वरजी महाराज से दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के बाद डोसी का नाम मुमुक्षु भव्य रत्न हो गया है। दीक्षा समारोह में कोई एक लाख लोगों को कई दिनों तक भोजन कराया गया और दस करोड़ रुपए का दान भी डोसी की ओर से दिया गया। इतना ही नहीं कोई दस करोड़ रुपए ही दीक्षा के अन्य कार्यक्रमों पर भी खर्च किए। सवाल उठता है कि जब दीक्षा समारोह इतना भव्य हुआ है तो क्या डोसी वाकई सन्यासी का जीवन व्यतीत कर पाएंगे। जैन संस्कृति में संन्यास का अपना महत्त्व है। जो व्यक्ति जैन संस्कृति के अनुरूप संन्यास ग्रहण कर लेता है, उसे दैनिक जीवन में भी कठिन तपस्या से गुजरना होता है। यहां तक कि शाम होने पर पानी भी नहीं पीया जा सकता। डोसी ओसवाल जैन समाज से ताल्लुक रखते हैं। दिगम्बर और ओसवाल जैन समाज के रीति रिवाजों में काफी अंतर भी है। दीक्षा समारोह के दौरान ही डोसी की पत्नी मधु डोसी भी मीडिया के सामने आई हैं और उसने कहा कि उनके पति पिछले कई वर्षों से संन्यास ग्रहण करना चाहते थे, लेकिन कारोबार की वजह से ऐसा नहीं कर सके। अब जब परिवार के सभी सदस्य सहमत हो गए तो डोसी ने संन्यास ग्रहण कर लिया है। डोसी के संन्यास लेने से ज्यादा चर्चा संन्यास के समारोह की भव्यता को लेकर हो रही है।
अच्छा होता कि दीक्षा समारोह पर जो करोड़ों रुपए खर्च हुआ है, उसे ओसवल समाज के युवाओं की पढ़ाई लिखाई पर खर्च किया जाता। डोसी को यह समझना चाहिए कि ओसवाल समाज का हर परिवार उनके जैसा धनाढ्य नहीं है। ऐसे अनेक परिवार मिल जाएंगे, जिनके बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए आर्थिक मदद की जरुरत है। अभिभावकों के पास पर्याप्त धनराशि नहीं होने की वजह से अनेक बच्चे उच्च शिक्षा से वंचित भी हो रहे हैं। डोसी ने यह तो दिखा दिया कि वह अपना 1200 करोड़ रुपए का कारोबार छोड़कर संन्यासी बन गए हैं, लेकिन संन्यास का जो संदेश देना चाहिए वह शायद डोसी नहीं दे पाए, डोसी ने अपनी दीक्षा आचार्य गुणरत्न सुरीस्वरजी से ली है। डोसी ने जिस भव्यता के साथ दीक्षा समारोह आयोजित किया, उससे आचार्य गुणरत्न जी गर्व महसूस कर सकते हैं। अब आचार्य के संघ में ऐसा मुमुक्षु हैं जो 1200 करोड़ का कारोबार छोड़ कर आए हैं। लेकिन सवाल उठता है कि डोसी ने संन्यास से समाज को क्या नई दिशा मिली? क्या संन्यास ग्रहणकरने से पहले इतना भव्य आयोजन करना पड़ता है? यदि कोई साधारण ओसवाल आचार्य गुणरत्न से संन्यास की दीक्षा लेना चाहेगा तो उसे मिल जाएगी? असल में किसी एक धनाढ्य व्यक्ति के संन्यास लेने से सम्पूर्ण समाज पर असर नहीं पड़ता है। समाज पर तो तभी प्रभाव पड़ेगा, जब अधिकांश लोग अपने घर परिवार में भी साधारण जीवन व्यतीत करेंगे। सम्पूर्ण समाज की बात छोड़ दीजिए ओसवाल समाज में ही गरीबी-अमीरी की खाई बनी हुई है। यदि कोई व्यक्ति सांसारिक जीवन में भी मांस, शराब, तम्बाकू आदि का उपयोग नहीं करता है तो वह भी किसी संन्यासी से कम नहीं हैं। अच्छा हो कि आचार्य गुण्रत्न जैसे संत नशे की प्रवृति को रोकने का अभियान चलाए। आचार्य गुणरत्न ने भंवरलाल डोसी का नाम अब मुमुक्षु भव्य रत्न रख दिया है। भव्य रत्न संन्यास का जीवन कैसे व्यतीत करेंगे, यह वहीं बता सकते हैं। यानी मुमुक्षु बनने के बाद डोसी के नाम के साथ भव्यता तो जुड़ी हुई है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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