Saturday 27 June 2015

तो क्या रिलायंस के टावर बीच चौराहों पर लगेंगे टेलीकॉम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद का बयान उचित नहीं


(spmittal.blogspot.in)

डिजिटल इंडिया को लेकर 27 जून को दिल्ली में टेलीकॉम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने एक प्रेस कांफ्रेंस की। जब मीडिया ने मोबाइल पर कॉल ड्राप की समस्या को लेकर सवाल किया तो मोबाइल ऑपरेटर कम्पनियों का बचाव करते हुए प्रसाद ने कहा कि जब विरोध के चलते कम्पनियों के टावर नहीं लगेंगे तो कॉल ड्राप तो होंगे ही। यानि कॉल ड्राप के लिए रिलायंस, वोडाफोन, एयरटेल, एयरसेल, एमटीएस, बीएसएनएल, टाटा डोकोमो, जैसी बेईमान कम्पनियां दोषी नहीं हैं, बल्कि वे जागरूक नागरिक दोषी हैं जो टावर नहीं लगने दे रहे हैं। जनता द्वारा चुनी गई सरकार के किसी मिनिस्टर का यह बयान लोकतंत्र में उचित नहीं माना जा सकता। और रविशंकर प्रसाद जैसे मिनिस्टर से तो ऐसे बयान की उम्मीद नहीं की जा सकती। प्रसाद को एक ईमानदार और साफ-सुथरी छवि का मिनिस्टर माना जाता है, यदि वे ही चोर कम्पनियों की वकालत सार्वजनिक तौर पर करेंगे तो मोबाइल उपभोक्ताओं की कौन सुनेगा? क्या ऐसे बयान से मोबाइल कम्पनियों को और लूटने का मौका नहीं मिलेगा? माना कि कुछ स्थानों पर जागरूक लोगों के विरोध की वजह से टावर नहीं लग पा रहे हैं, लेकिन सवाल है कि कम्पनियां पुराने टावरों पर नए कनेक्शनों का लोड क्यों डाल रही हैं? कॉल ड्राप की सबसे बड़ी समस्या वर्तमान टावरों पर क्षमता से अधिक कनेक्शन देने की है। कम्पनियां अपने मुनाफे की वजह से नए कनेक्शन देती रहती हैं। अच्छा होता कि जागरूक लोगों को दोषी ठहराने के बजाए रविशंकर प्रसाद टावरों की क्षमता की जांच करवा कर दोषी कम्पनियों के विरूद्ध कार्यवाही करते।  शायद प्रसाद को जमीनी हकीकत का पता नहीं है। कम्पनियां लोगों का विरोध दरकिनार कर अपनी मर्जी से टावर लगा रही हैं। रिलायंस जैसी कम्पनी ने तो हद ही कर दी है। अजमेर के पंचशील क्षेत्र में एक चौराहे पर ही फोर-जी का टावर खड़ा कर दिया है। सबूत के तौर पर मैं फोटो भी प्रदर्शित कर रहा हूं। प्रसाद बता सकते हैं कि जिस चौराहे पर ट्रेफिक पुलिस की गुमटी लगनी चाहिए, उस चौराहे पर रिलायंस का टावर कैसे लग गया? अजमेर ही नहीं पूरे राजस्थान में रिलायंस ने चौराहों, फुटपाथ, सार्वजनिक स्थलों आदि पर टावर खड़े कर दिए हैं। हालात इतने खराब है कि कलेक्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक के कार्यालयों के बाहर भी रिलायंस ने टावर लगा दिए हैं। ऐसे में सरकारी तंत्र की गोपनीयता को भी खतरा हो गया है। रिलायंस की हिमाकत का तो अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि जयपुर में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुनील अंबवानी के सरकारी घर के बाहर ही फोर-जी का टावर लगा दिया। अंबवानी ने एक ही आदेश में अपने घर के बाहर से तो टावर हटवा दिया, लेकिन चौराहों और फुटपाथों पर लगे टावरों को हटाने की हिम्मत किसी में भी नहीं है। सरकार ने कोई ऐसा आदेश जारी कर रखा है, जिसमें संबंधित क्षेत्र की डीएलसी दर जमा करवाकर रिलायंस अपने टावर लगा सकता है। रिलायंस को तो इतनी छूट दी गई है कि वह बिना अनुमति के भी टावर लगा सकती है। जब इस दादागिरी से कम्पनियां अपने टावर लगा रही है तो कॉल ड्राप क्यों हो रहे हैं? हालांकि रिलायंस के मालिकों का नरेन्द्र मोदी की सरकार में सीधा दखल है, लेकिन फिर भी सरकारी तंत्र को भ्रष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। टावर की एनओसी देने वाले महकमे में रिलायंस के कारिन्दें चपरासियों से लेकर सीईओ तक को खुश रखते हैं। इसलिए जागरूक लोगों का विरोध दरकिनार कर किया जाता है। प्रसाद को यह भी समझना चाहिए कि सिर्फ कॉल ड्राप की ही समस्या नहीं है, बल्कि प्रीपेड उपभोक्ता का बैलेन्स अचानक कम हो जाना, कॉल रेट बढ़ा देना, बिल ज्यादा आना, थ्री जी की नेट स्पीड भी धीरे चलना, नेट की एमबी अचानक उड़ जाना आदि ऐसी समस्याएं है जिनसे बेईमान कम्पनियां मालामाल हो रही है। इन कम्पनियों के खिलाफ ट्राई में सुनवाई नहीं होती। भ्रष्टाचार की वजह से उपभोक्ताओं के सामनेे लुटने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। ऐसे में प्रसाद जैसे मिनिस्टर सार्वजनिक रूप से बेईमान कम्पनियों का बचाव करेंगे तो लूट और तेजी से होगी।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511

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