Wednesday 17 June 2015

जाना तो उच्च शिक्षामंत्री कालीचरण सराफ को चाहिए

इसे बेहद ही शर्मनाक कहा जाएगा कि सत्तारुढ़ भाजपा के अग्रिम संगठन माने जाने वाले विद्यार्थी परिषद के कोई चार माह के आंदोलन के बाद अजमेर के इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रिंसिपल के पद से एम.एम.शर्मा को हटा दिया गया। इस चार माह के आंदोलन में सबसे ज्यादा छीछालेदर भाजपा सरकार की ही हुई है। कांग्रेस के अग्रिम संगठन एनएसयूआई के कार्यकर्ता आंदोलन करते तो यह माना जा सकता था कि आंदोलन राजनीति से प्रेरित है, लेकिन आंदोलन तो सत्तारुढ़ भाजपा से जुड़े विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता कर रहे थे। सवाल उठता है कि उच्च शिक्षामंत्री कालीचरण सराफ ने अपनी पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं की क्यों नहीं सुनी? एम.एम.शर्मा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे, तो क्या सराफ के पास भी कालीकमाई का कोई हिस्सा पहुंच रहा था? यदि सराफ का बस चलता तो अभी भी शर्मा को हटाया नहीं जाता। गत 13 जून को जब सीएम वसुंधरा राजे पुष्कर आई तो चन्द्रभान गुर्जर, हंसराज चौधरी, सीताराम, मोहित सेन, शुभम, अभिषेक, लोकेश गुर्जर, भंवर सिंह आदि के नेतृत्व में विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने मुलाकात की और बताया कि सराफ के आशीर्वाद की वजह से ही एम.एम.शर्मा अजमेर में टिके हुए हैं। सीएम को विद्यार्थी परिषद की ओर से जो पुलिंदा दिया गया, उसमें सराफ द्वारा कांग्रेस के शासन में शर्मा के विरुद्ध जो आरोप लगाए गए, उसकी भी जानकारी दी। शर्मा मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी (एमएनआईटी) के प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। कांग्रेस की सरकार में शर्मा को प्रतिनियुक्ति पर इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रिंसिपल के पद पर नियुक्त कर दिया गया था। तब विधानसभा में भाजपा विधायक की हैसियत से सराफ ने शर्मा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए। लेकिन कांग्रेस सरकार ने सराफ की एक नहीं सुनी, तब सराफ ने कहा कि शर्मा जो भ्रष्टाचार करते हैं, उसका हिस्सा कांग्रेस सरकार के मंत्रियों तक पहुंचता है, लेकिन जब भाजपा के शासन में सराफ स्वयं उच्च शिक्षा मंत्री बन गए, तो सराफ ने भी वो ही किया जो कांग्रेस के शासन में हुआ। अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं के विरोध को दरकिनार करते हुए सराफ ने शर्मा की प्रतिनियुक्ति न केवल तीन वर्ष के लिए बढ़ा दी बल्कि अजमेर जैसी प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेज में नियुक्ति कर दी। सवाल उठता है कि क्या भाजपा के शासन में भी शर्मा भ्रष्टाचार का हिस्सा ऊपर पहुंचा रहे थे? यदि 13 जून को यह मामला सीएम राजे के सामने नहीं रखा जाता तो सराफ कभी भी अपनी मर्जीदान शर्मा को प्रिंसिपल के पद से नहीं हटाते। सीएम के दबाव की वजह से ही सराफ को शर्मा को हटाना पड़ा। हटाने में भी सराफ ने शर्मा के सम्मान को बरकरार रखा है। शर्मा को हटाया नहीं गया, बल्कि उनका प्रिंसिपल के पद से इस्तीफा लिया गया। अब शर्मा अपने मूल विभाग एमएनआईटी में पहुंच गए। शर्मा के सम्मान के लिए सराफ ने भाजपा सरकार का अपमान करवाया है। शर्मा के इस्तीफा देने का मतलब है कि सरकार ने उनकी जो प्रतिनियुक्ति की थी, उसे शर्मा ने ठुकरा दिया। शर्मा अकेले अधिकारी नहीं है, जिन्हें सराफ का खुला संरक्षण है। प्रदेशभर में ऐसे कई प्रिंसिपल और अधिकारी है, जिन्हें अपने नजरिए से सराफ ने नियुक्तियां दे रखी है। भाजपा के राजनीतिक क्षेत्रों में यह चर्चा है कि सराफ से उच्च शिक्षा का विभाग छिना जाएगा। ऐसे में उम्मीद तो यही है कि उच्च शिक्षा से एम.एम.शर्मा को नहीं कालचीरण सराफ को जाना चाहिए। सूत्रों की माने तो उच्च शिक्षा भी स्कूली शिक्षामंत्री वासुदेव देवनानी को दिए जाने पर सहमति बन रही है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

No comments:

Post a Comment