Sunday 21 June 2015

तो आप अपने पिता की कैसी संतान है

यूएनओ के प्रस्ताव पर प्रतिवर्ष 21 जून को भारत में फादर्स डे मनाया जाता है। यानि पिता का दिन। हालाकि फादर्स डे की संस्कृति पश्चिमी देशों की है, क्योंकि हमारी संस्कृति तो भगवान राम और भक्त श्रवण कुमार की है। पिता दशरथ के वचन के खातिर भगवान राम चौदह वर्ष के लिए वनवास चले गए और श्रवण कुमार ने अपने नेत्रहीन माता-पिता को कंधे पर बिठाकर तीर्थ यात्रा करवाई, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में भारत जैसे देश में भी पिता का दिन मनाने की जरूरत हो गई। समाज में घर परिवार के मुखिया के प्रति जो असम्मान की प्रवृत्ति बढ़ रही है उसकी वजह से ही सामाजिक ताना-बाना बिगड़ रहा है। परिवार के मुखिया यानि पिता जब तक कमाने की स्थिति में होता है तब तक ही उसको सम्मान मिलता है, लेकिन बाद में ऐसे पिता वृद्धाश्रम में या इधर-उधर भटकते नजर आते हैं। कोई संतान माने या नहीं लेकिन कोई पिता यह नहीं चाहता कि उसकी संताने उसकी वजह से दुखी रहे। हम अपने आस-पड़ौस में देख सकते है कि अनेक बुजुर्ग अपने उस बेटे, बहू को परेशान नहीं करते जो कमाने के लिए किसी महानगर अथवा विदेश में नौकरी करता है। भले ही पड़ौस के बच्चे ऐसे बुजुर्ग दम्पत्ति के लिए दूध-सब्जी लाते हो। फिर भी बुजुर्ग दम्पत्ति तो अपनी संतानों के लिए दुआ करते हैं। जब ऐसे बुजुर्ग बीमार पड़ जाते हंै ंतब उन्हेेंं अपनी संतानों पर आश्रित होना पड़ता है। जिन बुजुर्गो को सरकारी पेंशन मिलती है उनका तो थोड़ा बहुत मान सम्मान हो जाता है, लेकिन जिन बुजुर्गो की स्वयं की कोई कमाई नहीं होती उन्हें तो बेटे बहू के सामने खामोश ही रहना पड़ता है। ऐसा नहीं कि यह स्थिति हर घर में हो। जिन घरों में बुजुर्गों का सम्मान है वे घर स्वर्ग के समान होते हैं। घर-परिवार में बुजुर्गो को पर्याप्त सम्मान नहीं मिलने की समस्या लगातार बढ़ रही है। जबकि हकीकत यह है कि एक व्यक्ति को अपने पूरे जीवनकाल में मात्र दो व्यक्तियों को सेवा करनी होती है। एक माता और दूसरा पिता। यदि हम दो व्यक्तियों की भी सेवा नहीं कर सकते तो फिर हमें भारत जैसे देश का नागरिक कहलाने का हक भी नहीं है। बच्चे सु-संस्कारित हो इसकी जिम्मेदारी माता-पिता की भी है। जो माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश अच्छी तरह करते है, उन्हें बुजुर्ग अवस्था में परेशान नहीं होना पड़ता है। यदि आप जवानी के जोश में अधिकांश बुरे कर्म करते है तो फिर आपको भी अपने बच्चों को बुढ़ापे में कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए। जब आप अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोडऩे जाएंगे तो फिर वो ही बच्चें आपको भी वृद्धाश्रम ही ले जाएंगे। यदि आप अपने बुजुर्ग माता-पिता का सम्मान करते है तो आप के बच्चे भी आपका सम्मान करेंगे। हमें यह भी देखना होगा कि हम अपने घर में कैसे रहते है। उपभोक्तावादी संस्कृति में यदि बैडरूम में पति-पत्नी और स्टडी रूम में इंटरनेटयुक्त लेपटाप के साथ जवान लड़का-लड़की हो तो फिर हम भगवान राम और श्रवण कुमार की शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते। कोई माने या नहीं, लेकिन होना यह चाहिए कि जवान बिटिया अपनी माता और बेटा अपने पिता के साथ सोए। जिस प्रकार बिटिया की सबसे अच्छी दोस्त उसकी माता होती है उसी प्रकार बेटे का पहला दोस्त उसका पिता होता है। बिटिया सोते समय अपनी माता को किसी समस्या के बारे में भी बता सकती है, जो टीवी हमारे सामाजिक तानेबाने को भ्रष्ट कर रहा है, उससे तो बच्चों को बचाना बेहद जरूरी हो गया है। परिवार में सिर्फ एक टीवी हॉल में लगा होना चाहिए। इस टीवी पर एसे कार्यक्रम देखे जाने चाहिए जो परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर देख सके। उन सीरियलों का पूरी तरह बहिष्कार करना चाहिए जिसमें एक अभिनेत्री के पीछे चार-चार मर्द और एक औरत के साथ चार-चार मर्दों के साथ संबंध दिखाए जाते हैं। ऐसे सीरियल बनाने वालों को डूब मरना चाहिए। जिस परिवार में माता-पिता दोनों ही नौकरी करते है उन्हें तो अपने बच्चों को बहुत ही संभाल कर रखने की जरूरत है। संतानों को मोबाइल भी तभी दिया जाए जब उनको इसकी आवश्यकता हो। फादर्स डे तभी सफल माना जाएगा जब हम भगवान राम और श्रवण कुमार की शिक्षाओं पर चलकर अपना घर बनाएं।
(एस.पी. मित्तल) M-09829071511

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