Wednesday 10 December 2014

फर्क है भारत और पाकिस्तान में रहने वाले मुसलमानों में

फर्क है भारत और पाकिस्तान में रहने वाले मुसलमानों में
दस दिसम्बर को नॉर्वे की राजधानी ऑस्लो में आयोजित एक भव्य समारोह में पाकिस्तानी छात्रा मलाला यूसुफजई और भारत के कैलाश सत्यार्थी को बालश्रम के विरोध में संघर्ष करने के लिए नोबेल का शांति पुरस्कार संयुक्त तौर पर दिया गया। मलाला वह बच्ची है, जिसने पाकिस्तान में रह कर पढऩे की जिद की थी और कट्टरपंथी नहीं चाहते थे कि मलाला जैसी लड़कियां स्कूल जाकर पढ़ाई करें। जब मलाला ने जिद नहीं छोड़ी तो कट्टरपंथियों ने गोलियां दाग कर मलाला को बुरी तरह जख्मी कर दिया। मलाला की बहादुरी की खबरें मीडिया में प्रसारित हुई तो इंग्लैंड की सरकार ने मलाला को अपने यहां शरण दी और आज भी मलाला इंग्लैंड में ही रह रही है। कट्टरपंथियों ने मलाला की मौत का ऐलान कर रखा है। अब मलाला को पाकिस्तान में बालिका शिक्षा की प्रेरणा माना जाता है। यह बात अलग है कि मलाला स्वयं पाकिस्तान जाकर बालिका शिक्षा के लिए कोई कार्य नहीं कर सकती हैं। नोबेल का पुरस्कार लेकर जब कैलाश सत्यार्थी भारत लौटेंगे तो पूरे देश में जश्न मनाया जाएगा। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि वीआईपी बधाई देंगे। देश में न जाने कितनी संस्थाएं अपना पुरस्कार भी सत्यार्थी को प्रदान करेंगी, लेकिन वहीं मलाला के लिए पाकिस्तान में ऐसा कुछ भी नहीं होगा।
पाकिस्तान के कट्टरपंथी तो मलाला को नोबेल पुरस्कार के भी खिलाफ हैं। कट्टरपंथियों का बस चले तो मलाला को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित करने वालों की ही हत्या कर दें। मलाला के सम्मान से भले ही पाकिस्तान में कट्टरपंथी खुश नहीं हो, लेकिन भारत में मलाला को लेकर भी खुशी का माहौल है। मलाला के साथ पुरस्कार ग्रहण करने वाले सत्यार्थी ने मलाल को अपनी बेटी कहा है और उम्मीद जताई है कि भारत में मुस्लिम बालिकाएं भी मलाला से शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा लेंगी। कट्टरपंथी भले पाकिस्तान में बालिकाओं को मलाला से कोई प्रेरणा नहीं लेने दें, लेकिन कैलाश सत्यार्थी जैसे समाजसेवी मलाला से भारत की मुस्लिम बालिकाओं को प्रेरणा दिलवाने का काम करेंगे। मलाला के मुद्दे पर ही कहा जा सकता है कि भारत और पाकिस्तान में रहने वाले मुसलमानों में फर्क है। भारत की मुस्लिम बालिकाएं मलाला से प्रेरणा ले सकती हैं, जबकि पाकिस्तान में ऐसा संभव नहीं है। बल्कि मलाल तो पाकिस्तान में रह भी नहीं सकती। भारत में रहकर अनेक मुस्लिम महिलाओं ने आसमान की ऊंचाईयां छुई है। नजमा हेपतुल्ला जैसी मुस्लिम महिलाएं भाजपा की केन्द्र सरकार में मंत्री हैं। आने वाले दिनों में मलाला का भी भारत में शानदार इस्तकबाल होगा। जो मुसलमान भारत में रह कर अलगाववाद की बात करते हैं, उन्हें मलाला के मुद्दे से फर्क समझ लेना चाहिए। पाकिस्तान के हालात इतने बदत्तर हैं कि वहां की सरकार भी मलाला की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकती। अहमद बुखारी, आजम खान, औबेसी, यासिन मलिक जैसे मुस्लिम नेता बताएं कि आखिर मलाला का दोष क्या है? क्यों मलाला अपने ही वतन में सुरक्षित नहीं है? क्यों मलाला को पाकिस्तान से ज्यादा भारत में सम्मान मिल रहा है? नोबेल का पुरस्कार लेकर मलाला भारत तो आ सकती हैं, पर पाकिस्तान नहीं जा सकती। भारत को यदि भारत ही रहने दिया जाए तो यह सभी के लिए नोबेल का असली शांति पुरस्कार होगा।  -(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

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