Thursday 11 December 2014

आगरा प्रकरण में उभरी है, भयानक तस्वीर

आगरा प्रकरण में उभरी है, भयानक तस्वीर
उत्तर प्रदेश के आगरा में विश्व हिन्दू परिषद के धर्मांतरण के मामले में यहां देश में हिन्दू और मुसलमानों को लेकर जो तस्वीर उभरी है, वह बेहद भयानक है। रही सही कसर टीवी न्यूज चैनलों की लाइव बसह ने पूरी कर दी। ऐसा नहीं की धर्मांतरण कोई ताजा समस्या है। भारत में धर्मांतरण का रोग बहुत पुराना है। विहिप के नेताओं की माने तो मुस्लिम आक्रमणकारियों ने पहले भारत को लूटा और तलवार की ताकत पर हिन्दुओं को मुस्लिम धर्म स्वीकार करवाया। आज भारत में जो मुसलमान रह रहे हैं, उनके पूर्वज हिन्दू ही थे, इसलिए अभियान चला कर 'घर वापसीÓ करवाई जा रही है, जबकि मुस्लिम नेता विहिप के तर्कों को नहीं मानते हैं। सवाल यह नहीं है कि धर्मांतरण के मुद्दे पर कौन दोषी है। यदि बहस होगी तो सभी के अपने-अपने तर्क होंगे, लेकिन इस मुद्दे पर देश की जो तस्वीर सामने आई है, वह बहुत भयानक है। चैनलों पर हुई बहस से तो लगता है कि देश का हिन्दू और मुसलमान आमने-सामने खड़ा है। दोनों ही समुदायों के जो नेता विवाद में उलझे हैं वे यह नहीं समझ रहे कि आम व्यक्ति किन हालातों में रह रहा है। यदि जरा सी भी असावधानी हुई तो पूरे देश में हालात बिगड़ जाएंगे। आतंकवादियों की धमकी के मद्देनजर आए दिन सुरक्षा एजेंसियां हाई अलर्ट कर रही हैं। क्या किसी भी मुद्दे पर दोनों पक्षों के लोग भाई चारे के साथ वार्ता नहीं कर सकते? जब धर्मांतरण जैसे मुद्दे पर इतने तनावपूर्ण हालात है तो बड़े मुद्दों का समाधान कैसे होगा। कुछ लोग आगरा के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने की बात कर रहे हैं, यानि उन्हें अपने देश के कानून पर भरोसा नहीं है। यह तो और भी खतरनाक बात है। आजादी के समय हिन्दू-मुसलमानों के बीच जो टकराव हुआ, उसे आज भी नहीं भुलाया जा सकता है। आजादी के बाद से ही हिन्दू-मुसलमान भाई-भाई का नारा दिया जाता रहा है, लेकिन वर्तमान हालातों से प्रतीत होता है कि यह नारा बेकार ही रहा। साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए न जाने कितनी संस्थाएं काम कर रही है, लेकिन संस्थाओं की भूमिका भी बेअसर दिख रही है। तकरीरें और प्रवचन सुनकर जहां दोनों ही समुदाय के लोग प्रेम और मोहब्बत का पाठ सीख रहे हैं, वहीं इस सीख का भी असर नजर नहीं आ रहा। संवेदनशील मुद्दों पर कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं है। सर्वधर्म सम्मेलन भी सिर्फ दिखावा साबित हो रहे हैं। किसी धार्मिक नेता में इतनी हिम्मत नहीं कि वह अपने समुदाय के लोगों को एक कदम पीछे हटा सके। जब किसी भी समुदाय के लोग पीछे हटने की ताकत नहीं रखते हैं तो समस्याओं का समाधान कैसे होगा। आतंकवादी उत्तर के हो या पूरब के, हालात बिगडऩे के इंतजार में हैं। यदि किसी के पास कोई रास्ता हो तो उसे आगे आकर पहल करनी चाहिए, अन्यथा आने वाले दिन और भी बदत्तर होंगे। पीएम नरेन्द्र मोदी भी बार-बार कह रहे है कि उनका विकास का लक्ष्य सवा सौ करोड़ भारतीय हैं। हालांकि पीएम की ओर से विकास पर कोई कसर भी नहीं छोड़ी जा रही है, लेकिन सवा सौ करोड़ भारतीय तो धर्मांतरण जैसे मुद्दे पर ही उलझे हुए हैं। जो लोग ऐसे मुद्दों पर अभी पानी डालने की नीति अपनाना चाहते हैं वो इस देश का और नुकसान करेंगे। जहां तक राजनीतिक दलों का सवाल है तो उनकी भूमिका अपने स्वार्थ पूरे करने में ही रहती है। राजनेताओं की वजह से ही हालात यहां तक पहुंचे। दस-बीस हजार मुसलमान हिन्दू या इतने ही हिन्दू-मुसलमान बन जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। -(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

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