Monday 14 December 2015

सरकार के जश्न के अगले ही दिन भरतपुर में ढेर हो गई भाजपा और कांग्रेस।



14 दिसम्बर को राजस्थान के भरतपुर जिले के आठ स्थानीय निकायों के चुनाव परिणाम घोषित हुए। आठ निकायों के 190 वार्डों में से 120 में निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। जबकि 59 में भाजपा और मात्र 11 में कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी हुए हैं। 13 दिसम्बर को जयपुर में जनपथ पर जब प्रदेश की भाजपा सरकार का जश्न मनाया गया तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में सीएम वसुंधरा राजे ने कहा कि मीडिया में विपक्षी दलों के नेता कुछ भी कहें, लेकिन इन दो वर्षों में विधानसभा, लोकसभा, पंचायती राज और स्थानीय निकाय के जितने भी चुनाव हुए हैं, उनमें भाजपा की जबरदस्त जीत हुई है। यानि सीएम ने अपनी दो वर्ष की उपलब्धि का मुख्य कारण चुनावों में जीत बताया। वहीं पूर्व सीएम अशोक गहलोत से लेकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने सरकार के दो वर्ष के कार्यकाल को विकास के नाम पर जीरो बताया और कहा कि दो वर्ष में प्रदेश की जनता बुरी तरह त्रस्त हो गई है और अब तीन वर्ष बाद होने वाले चुनावों में कांग्रेस की सरकार ही बनेगी। लोग चुनाव का इंतजार कर रहे हैं, तो हम कांग्रेसी शपथ लेने का। लेकिन अगले ही दिन 14 दिसम्बर को राजस्थान के ही भरतपुर जिले में भाजपा और कांग्रेस ढेर हो गई। जो सीएम एक दिन पहले चुनावी जीत को सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि बता रही थीं, उस सीएम की पार्टी के मात्र 59 उम्मीदवार ही चुनाव जीत पाए। यदि चुनावी जीत का पैमाना ही सरकार की सफलता है तो सीएम राजे को भरतपुर के चुनाव परिणाम पर तत्काल अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। सब जानते हैं कि भरतपुर में चुनाव जीतने के लिए वसुंधरा सरकार के कई मंत्री लगे हुए थे और जीत का हर हथकंडा अपनाया गया। इसके बाद भी 190 वार्डों में से मात्र 59 पर ही जीत हांसलि हो पाई। इतना ही नहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष अतिम शाह ने भी कहा था कि सरकार में आने के लिए कांग्रेस को कई वर्षों तक इंतजार करना पड़ेगा। असल में वसुंधरा राजे की सरकार जनसमस्याओं का समाधान करने में विफल रही है। सरकारी दफ्तरों में न तो भ्रष्टाचार मिटा है और न छोटे-छोटे काम हो रहे हैं। प्रदेश की जनता पूरी तरह अफसरशाही के रहमो करम पर है। सरकार के विधायक और मंत्री सत्ता के नशे में ऐसे मदहोश हैं कि उन्हें आम व्यक्ति नजर ही नहीं आ रहा है। समस्याओं का समाधान तो दूर विधायक और मंत्री मतदाताओं से सीधे मुंह बात तक नहीं करते। लालबत्ती वाली सरकारी कार का दुरुपयोग ऐसे करते हैं, जैसे इन के पिता और दादा द्वारा दी गई है। जो कांग्रेस सरकार की विफलताओं को ही अपनी सफलता मान रही थी? उसे भी भरतपुर में अपनी बुरी गत का अहसास हो गया है। कांग्रेस कितने रसातल में चली गई है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 190 वार्डों में से मात्र 11 में कांग्रेस के उम्मीदवार जीते हैं। सवाल उठता है कि यदि सरकार की विफलता से मतदाता त्रस्त हैं तो फिर कांग्रेस के उम्मीवारों को वोट क्यों नहीं मिले? कांग्रेस अपनी झेप मिटाने के लिए अब कर रही है कि अनेक वार्डों में अधिकृत उम्मीदवार खड़े ही नहीं किए। इसलिए जो निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं वे कांग्रेस विचार धारा के हैं, कांग्रेस के नेताओं का यह कथन शुतुरमुर्ग वाली स्थिति को दर्शाता है, जबकि सच्चाई तो यह है कि अनेक वार्डों में कांग्रेस अपने उम्मीदवार घोषित करने की स्थिति में ही नहीं थी। भरतपुर के कांमा, नगर, डींग, कुम्हेर, बयाना, भुसावर, बैर और नदबई स्थानीय निकायों में अब निर्दलीय पार्षदों का दबदबा हो गया है। आंकड़ें बताते हैं कि कांमा में भाजपा के 8, कांग्रेस 0, निर्दलीय 17, नगर में भाजपा 8, कांग्रेस 1, निर्दलीय 16, डीग में भाजपा 15,कांग्रेस एक, निर्दलीय 14, कुम्हेर में भाजपा 5, कांग्रेस 6, निर्दलीय 9, बैर में भाजपा 3, कांग्रेस 0, निर्दलीय 17, भुसावर में बीजेपी एक, कांग्रेस एक, निर्दलीय 18, बयाना में बीजेपी 10, कांग्रेस 2, निर्दलीय 3 तथा नदबई में भाजपा 9, कांगे्रस जीरो व निर्दलीय 17 विजयी हुए हैं। 

(एस.पी. मित्तल)
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