Friday 11 December 2015

आरटीओ में बैठे चम्बल के डकैतों को क्यों नहीं पकड़ते गडकरी जी।



दैनिक जागरण और एबीपी न्यूज के संयुक्त कार्यक्रम में केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि आरटीओ (क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय) में चम्बल के डकैत जैसे लोग बैठे हैं। यानि जो व्यक्ति आरटीओ दफ्तर जाता है, उसे चम्बल के डकैत लूट लेते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि गडकरी ने सच्चाई को स्वीकार किया है। इसके लिए गडकरी को शाबाशी मिलनी चाहिए। लेकिन इसके साथ ही यह सवाल उठता है कि आखिर गडकरी इन डकैतों को पकड़ते क्यों नहीं है? यह माना कि आरटीओ के दफ्तर राज्य सरकार के अधीन होते हैं। लेकिन देश के जिन राज्यों में गडकरी की भाजपा की सरकारें है, वहां तो डकैतों को पकड़ा जा सकता है। जब गडकरी यह मानते हैं कि आरटीओ  में डकैत बैठे हैं तो फिर भाजपा शासित राज्यों में डकैतों को पकड़वाने की जिम्मेदारी भी गडकरी की है। मुझे नहीं पता कि गडकरी डकैतों को क्यों नहीं पकड़वा रहे, लेकिन मुझे डकैतों के सिस्टम के बारे में पता है। डकैतों का सिस्टम समाजवाद के आधार पर चलता है। यानि लूट का माल अपने लोगों के बीच बांटा जाता है। आरटीओ में बैठे किसी भी डकैत की इतनी हिम्मत नहीं कि वह लूट का माल अकेला ही हजम कर जाए। डकैत भले ही आरटीओ दफ्तर में बैठकर लूट करते हो, लेकिन माल तो दिल्ली तक बंटता है। जिन लोगों का आरटीओ के दफ्तर से पाला पड़ा है, उन्हें पता है कि बिना गेयर वाले दुपहिया वाहन को चलाने के लिए भी जिस ड्राइविंग लाइसेंस की जरुरत होती है, वह रिश्वत दिए बिना नहीं मिलता है। आरटीओ में हर काम की रिश्वत की राशि तय है। जितना बड़ा काम, उतनी बड़ी रिश्वत। गडकरी को अब यह बताने की जरुरत नहीं है कि आरटीओ में किस प्रकार भ्रष्टाचार है। जब स्वयं गडकरी ने यह मान लिया कि चम्बल के डकैत बैठे हैं तो फिर उन्हें हर सचई की जानकारी है। अच्छा हो कि गडकरी भाजपा शासित राज्यों में चम्बल के डकैतों को पकड़वाने की कार्यवाही शुरू करवा दें। नहीं तो यही माना जाएगा कि जयपुर, भोपाल, गांधीनगर, चंंडीगढ़ आदि राजधानियों से लूटी गई रकम दिल्ली तक पहुंच रही है। 

(एस.पी. मित्तल)
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