Thursday 17 December 2015

जाम से बचने के लिए पहले अजमेर ट्रेफिक पुलिस को सुधारना होगा।



अजमेर में ट्रेफिक जाम की समस्या को लेकर 14 दिसम्बर को मैंने ब्लॉग पोस्ट किया था। अगले दिन स्थानीय समाचार पत्रों में भी ट्रेफिक जाम की खबरें प्रमुखता के साथ प्रकाशित हुई। मेरे ब्लॉग से लेकर समाचार पत्रों तक से जो दबाव बना। उसी का परिणाम रहा कि निष्क्रिय टे्रफिक पुलिस में थोड़ी बहुत हलचल हुई। ट्रेफिक पुलिस की डिप्टी अदिती कामठ ने एक साथ तीन चार विभागों को पत्र लिख दिए। कामठ का यह कहना रहा कि शहर में होने वाले ट्रेफिक जाम के लिए पुलिस जिम्मेदार नहीं है। इसके लिए पीडब्ल्यूडी, नगर निगम, परिवहन विभाग आदि जिम्मेदार हंै। ट्रेफिक पुलिस अपने बचाव में कुछ भी कह सकती है, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर ट्रेफिक पुलिस अपनी ड्यूटी को सही तरीके से अंजाम क्यों नहीं देती? सबको पता है कि शहर के भीड़ वाले बाजार जिला यातायात समिति ने नो वेंडर जोन घोषित कर रखे हैं। ऐसे में इन बाजारों से ठेले वाले और फुटपाथ या दुकानों के बाहर थड़ी लगाकर बैठने वालों को सख्ती से हटाया जाना चाहिए। जिस ट्रेफिक पुलिस के जवान की ड्यूटी बाजार में लगती है, उसकी रुचि ठेले वालों को हटाने में नहीं बल्कि ठेलों की गिनती में रहती है। ट्रेफिक पुलिस के आला अधिकारी क्या यह बता सकते हैं कि मदार गेट जैसे बाजार से ठेले वालों को क्यों नहीं हटाया जाता? सवाल पुलिस में भ्रष्टाचार का नहीं है। सवाल पुलिस की इमेज का है। जिस मुद्दे पर ट्रेफिक पुलिस की इमेज सरेआम खराब हो रही हो, उसमें तो ख्याल करना ही चाहिए। यह माना कि ट्रेफिक में इंतजामों में नगर निगम पीडब्ल्यूडी और परिवहन विभाग की भी भूमिका है, लेकिन यदि ट्रेफिक पुलिस अपनी ड्यूटी शुरू कर दे तो दूसरे विभाग भी सहयोग करने लगेंगे। जो कानून की ताकत ट्रेफिक पुलिस के पास है, वह ताकत नगर निगम, पीडब्ल्यूडी और परिवहन विभाग के पास नहीं है। कोई माने या नहीं लेकिन यह सही है कि पीडब्ल्यूडी, नगर निगम और परिवहन विभाग में किसी भी कर्मचारी और अधिकारी की रुचि बाजारों में खड़े होने वाले ठेलों की गिनती करने में नहीं होती। जब ट्रेफिक पुलिस बाजारों में खड़े होने वाले ठेलों की गिनती में रुचि दिखाएगी तो आरोप तो लगेंगे ही। मैं यह नहीं कहना चाहता कि प्रतिदिन ठेले वालों से 100 रुपए की रिश्वत लेकर बाजारों में खड़े होने दिया जाता है, लेकिन यह सवाल तो उठता ही है कि जब प्रति ठेले की वसूली नहीं होती, तो फिर ठेले खड़े कैसे होते हैं? पुलिस अधीक्षक नितिन दीप ब्लग्गन को इस बात की जांच करवानी चाहिए कि मदार गेट, चूड़ी बाजार, पुरानी मंडी, नया बाजार, दरगाह बाजार, केसरगंज, आगरा गेट आदि भीड़ वाले बाजारों मं ठेले वालों ने स्थाई बसेरा क्यों बना रखा है? अपनी जिम्मेदारी को दूसरे विभागों पर डाल देने से स्वयं को कत्र्तव्य परायाण और ईमानदार साबित नहीं किया जा सकता। मेरा मानना है कि यदि एसपी ब्लग्गन की पुलिस पहल करेगी तो सारे विभाग लाइन बनाकर खड़े हो जाएंगें।

(एस.पी. मित्तल)
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