Thursday 24 December 2015

हुड़दंग करने वाले सांसदों को वेतन तीन लाख तक बढ़ेगा।



देश की संसद में भले ही हमारे सांसद हुड़दंग करते रहे, लेकिन संसदीय कार्य मंत्रालय ने ऐसे सांसदों के वेतन और भत्ते तीन लाख रुपए तक बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार कर लिया है। इसे शर्मनाक ही कहा जाएगा कि जिन सांसदों ने पिछला वर्षाकालीन सत्र और वर्तमान का शीतकालीन सत्र चलने ही नहीं दिया। उनके वेतन और भत्ते बढ़ाने का प्रस्ताव आगामी बजट सत्र में रखा जाएगा। इस प्रस्ताव के मुताबिक सांसदों का वर्तमान वेतन पचास हजार रुपए प्रतिमाह से बढ़ाकर एक लाख रुपए तथा भत्तों में भी दुगनी वृद्धि का यदि यह प्रस्ताव मंजूर होता है तो हुड़दंग करने वाले सांसदों का प्रतिमाह 3 लाख रुपए तक मिलेंगे। इतना ही नहीं एक दूसरे प्रस्ताव में सांसदों का वेतन सरकारी अधिकारियों के वेतन से जोडऩे का है। यानि जब जब भी सरकार के वेतन भोगी कर्मचारियों की तनख्वाह बढ़ेगी तब अपने आप सांसदों का भी वेतन बढ़ जाएगा। इस प्रस्ताव में पीएम नरेन्द्र मोदी को भी लालच दिया गया है। इसके मुताबिक केन्द्र सरकार के केबिनेट सचिव के वेतन से डेढ़ गुना ज्यादा वेतन पीएम को दिया जाना है। सांसदों को सचिव के वेतन से एक हजार रुपए और मंत्रियों को दुगना वेतन दिए जाने का प्रावधान है। अब सवाल उठता है कि क्या हुड़दंग करने वाले सांसद किसी वेतन भत्ते के अधिकारी हैं,जब कर्मचारी हड़ताल करते हैं तो सरकार हड़तालियों को अनुपस्थित मानकर वेतन नहीं देती। क्या यह नियम सांसदों पर लागू नहीं होता? पूरा देश देख रहा है कि कांग्रेस के 44 सांसदों ने लोकसभा के दो सत्र बर्बाद कर दिए। सवाल सिर्फ कांग्रेस का ही नहीं है। इसमें भाजपा सहित सभी राजनीतिक दलों के सांसद शामिल है। यूपीए के शासन को भाजपा के सांसदों ने भी कई दिनों तक हुड़दंग कर संसद को ठप कर दिया। जिन छोटे राजनीतिक दलों के पांच दस सांसद हैं वे भी संसद में खड़े होकर हुड़दंग करते हैं तो संसद को स्थगित कर दिया जाता है। जब संसद का यह हाल है तो फिर सांसदों को वेतन क्यों दिया जाए? अच्छा होता कि सांसद ऐसा प्रस्ताव पास करते जिसमें हुड़दंग करने वाले सांसद का न केवल वेतन काटा जाता, बल्कि उसे सम्पूर्ण सत्र से निलंबित कर दिया जाता। लालची सांसदों को यह समझना चाहिए कि जो वेतन और भत्ते तथा सुविधाएं वे भोगते हैं, वह इस देश की गरीब जनता से टैक्स के रूप में वसूला जाता है। आज आम नागरिक सरकार के टैक्स के बोझ से दवा पड़ा है और सांसद अपना वेतन बढ़ाने की फिराक में हैं। नरेन्द्र मोदी ने पीएम पद की शपथ लेने के बाद संसद में कहा था कि वे संसद में आवश्यक सुधार करेंगे। लेकिन दो वर्ष की अवधि में नरेन्द्र मोदी को भी यह पता चल गया कि जनता के वोट से सांसद बनने वाले व्यक्ति जनसेवक नहीं बल्कि जनता का खून चूसने वाले है। एक ओर नरेन्द्र मोदी स्वयं को प्रधान सेवक होने का दावा करते हैं तो दूसरी ओर उन्हीं की सरकार का मंत्रालय पीएम पद के वेतन को केबिनेट सचिव के वेतन से जोडऩे का प्रस्ताव रख रहा है। यदि इस मुद्दे पर आम नागरिक की राय ली जाए तो मेरा दावा है कि एक भी नागरिक सांसदों का वेतन बढ़ाने के पक्ष में अपनी राय नहीं देगा। लेकिन हम सब जानते हैं कि संसद में जब वेतन भत्ते बढ़ाने का प्रस्ताव आएगा तो लालची सांसद तुरंत मंजूर कर लेंगे। 
(एस.पी. मित्तल)
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