Tuesday 15 December 2015

वसुंधरा के प्रति वफादारी का सिला मिला अशोक परनामी को



अशोक परनामी राजस्थान भाजपा के फिर से अध्यक्ष बन गए हैं। यूं तो परनामी चुनाव की प्रक्रिया से गुजरे, लेकिन सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति वफादारी दिखाने की वजह से ही परनामी लगातार दूसरी बार अध्यक्ष बने। सत्तारुढ़ पार्टी का अध्यक्ष होना वाकई गर्व की बात है। लेकिन कईबार सत्ता और संगठन में खींचतान हो जाती है। पूर्व में भी सीएम राजे के समर्थन से ही परनामी अध्यक्ष बने थे। 15 दिसम्बर को हुई घोषणा से पहले 14 दिसम्बर को जयपुर में भाजपा कार्यालय में निर्वाचन अधिकारी दिनेश शर्मा के समक्ष परनामी ने नामांकन दाखिल किया। परनामी के नामांकन के प्रस्तावक के तौर पर सीएम राजे के हस्ताक्षर थे। जिस व्यक्ति के नाम का प्रस्ताव सीएम राजे कर रही हों, तब किस भाजपा नेता की हिम्मत है कि वह परनामी के मुकाबले नामांकन दाखित करें। राजे ने न केवल प्रस्ताव किया बल्कि नामांकन कि सम्पूर्ण प्रक्रिया के दौरान निर्वाचन अधिकारी के सामने बैठी रहीं। जब परनामी के अलावा किसी का नामांकन आया ही नहीं तो 15 दिसम्बर को निर्वाचन अधिकारी को परनामी के नाम की घोषणा करनी ही पड़ी। सीएम राजे ने चुनाव प्रक्रिया में जिस तरह अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई, उससे साफ लग रहा था कि उनका परनामी पर बहुत भरोसा है। परनामी के सामने किसी दूसरे भाजपा नेता का नाम अध्यक्ष पद के लिए सुनने को भी राजे तैयार नहीं थी। चुनाव प्रक्रिया के समय कोई जरा सी भी आपत्ति न करें, इसके लिए सीमए राजे स्वयं बैठीं रहीं। सब जानते हैं कि परनामी ने पिछले दिनों राजे के प्रति जो वफादारी दिखाई, उसी का सिला अब परनामी को मिला है। कांग्रेस ने पिछले वर्षाकालीन संसद सत्र में जब ललित मोदी से रिश्तों को लेकर राजे के इस्तीफे की मांग की तो मीडिया के सामने परनामी ही वसुंधरा का बचाव करने आए। दिन में जब दिल्ली में कांग्रेस के दिग्गजों ने आरोप लगाए तो इसके तत्काल बाद जयपुर में प्रेस कान्फ्रेंस कर परनामी ने जवाब दिए। राजे के बचाव में लगातार कई दिनों तक परनामी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। पिछले दिनों जब परनामी की पत्नी का निधन हुआ तो राजस्थान में खान घोटाला उजागर हो गया। खान विभाग के प्रमुख शासन सचिव अशोक सिंघवी और कई बड़े अधिकारियों के साथ-साथ दलाल भी गिरफ्तार हुए। चूंकि केबिनेट मंत्री स्वयं वसुंधरा राजे ही थी, इसलिए कांग्रेस ने एक बार फिर राजे पर गंभीर आरोप लगाए। तब यह किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि जिन अशोक परनामी की पत्नी का निधन दो दिन पहले हुआ है, वे परनामी मीडिया के सामने बचाव करने आएंगे। लेकिन परनामी ने अपने पारिवारिक शोक को एक तरफ रखते हुए खान घोटाले में राजे का बचाव किया। सीएम राजे पर विपक्ष ने जितने भी आरोप लगाए, उनका किसी का भी जवाब राजे ने आज तक नहीं दिया है। सीएम की ओर  से सभी जवाब परनामी ने दिए। यहां तक कि सरकार के गोपनीय दस्तावेज भी परनामी ने ही मीडिया के सामने रखे।  ललित मोदी को शेयर बेचने के एवज में 12 करोड़ रुपए वसुंधरा राजे की कंपनी द्वारा लिए जाने के व्यक्तिगत दस्तावेज भी परनामी ने ही मीडिया के सामने रखे। जब परनामी अपनी पत्नी के निधन का शोक छोड़कर राजे का बचाव कर सकते हैं तो दोबारा से प्रदेश अध्यक्ष बनने से परनामी को कौन रोक सकता था? सीएम राजे को भी पता है कि जितनी वफादारी परनामी दिखा रहे हैं। उनती वफादारी भाजपा का कोई नेता नहीं दिखा सकता। यही वजह रही कि 15 दिसम्बर को जब निर्वाचन अधिकारी ने परनामी के नाम की घोषणा की तब भी सीएम राजे भाजपा के प्रदेश कार्यालय में उपस्थित रहीं। इस समारोह में राजे ने परनामी की जमकर प्रशंसा की,वहीं परनामी ने राजे के प्रति आभार जताया। यानि वर्तमान में राजस्थान में सत्ता और संगठन का ऐसा तालमेल है,जिसमें बाल बराकर भी सुराग नहीं है।

(एस.पी. मित्तल)
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