Thursday 24 December 2015

लगने वाला है आर.के. मार्बल को झटका।



पीरदान दम्पत्ति अपना अनशन खत्म करें। 
केन्द्र सरकार मार्बल पत्थर को विदेशों से आयात करने की छूट देने जा रही है। फिलहाल लाइसेंसधारी ही विदेशों से मार्बल आयात कर रहे हैं। देश में आयात का सबसे बड़ा लाइसेंस अजमेर के किशनगढ़ उपखंड के आर.के. मार्बल संस्थान के पास है। यदि अगले कुछ ही दिनों मे केन्द्र सरकार आयात की छूट का आदेश जारी करती है तो इसका सबसे बड़ा झटका आर.के.मार्बल को ही लगेगा। चूंकि आर.के. मार्बल ही देश में सबसे ज्यादा आयात कर रहे है। इसलिए पूरे मार्बल उद्योग पर आर.के.मार्बल का एकाधिकार है। छोटे व्यापारी भी चाहते हैं कि मार्बल का आयात करें, लेकिन केन्द्र सरकार की शर्तों के कारण लाइसेंस नहीं ले पाते। जिस व्यापारी का तीन वर्ष में पांच करोड़ रुपए का कारोबार है, वही व्यापारी लाइसेंस ले सकता है। लेकिन जब सरकार लाइसेंस प्रणाली को खत्म कर आयात की छूट दे देगी तो छोटा व्यापारी भी विदेशों से मार्बल मंगाकर बेच सकता है। देश का 90 प्रतिशत मार्बल राजस्थान की खानों से ही निकलता है, लेकिन खानो से निकलने वाले मार्बल की लागत लगातार बढ़ रही है तथा क्वालिटी के मुकाबले में राजस्थान का मार्बल विदेशी मार्बल के सामने कमजोर है। घरेलू बाजार में मार्बल की मांग लगातार घट रही है, क्योंकि अब नया मकान बनाने वाले टाइल्स का उपयोग कर रहे हैं। दुनिया में भारत के अलावा इटली और ईरान में मार्बल का उत्पादन होता है। वियतनाम में तो आर.के. मार्बल के मालिक अशोक पाटनी, सुरेश पाटनी और विमल पाटनी ने खाने ले रखी हैं यानि आर.के. मार्बल के मालिक तो वियतनाम की अपनी खानों का पत्थर दुनियाभर में बेचते हैं। 
आर.के. मार्बल की ज्यादतियों के विरोध में पीरदान सिंह राठौड़ और उनकी पत्नी श्रीमती कैलाश कंवर गत 10 दिसम्बर से अजमेर के कलेक्ट्रेट के फुटपाथ पर आमरण अनशन पर बैठी हैं। बीच में मरने की नौबत आई तो कैलाश कंवर को पुलिस जबरन उठाकर अस्पताल ले गई, लेकिन अस्पताल में चार दिन रहने के बाद कैलाश कंवर फिर से अपने पति के साथ आरमण अनशन पर बैठ गई। 24 दिसम्बर को पीरदान दम्पत्ति के आमरण अनशन के 15 दिन पूरे हो गए, लेकिन इसे संवेदनहीनता ही कहा जाएगा कि सरकार के किसी भी प्रतिनिधि ने राठौड़ दम्पत्ति से संवाद नहीं किया। इस बीच राठौड़ दम्पत्ति के अनशन को लगातार जनसमर्थन मिल रहा है। 24 दिसम्बर को राठौड़ दम्पत्ति ने एक बार फिर घोषणा की है कि उनके मामलों की जांच सीबीआई से करवाई जाए। जब तक सीबीआई जांच की घोषणा नहीं होती है, तब तक अनशन जारी रहेगा। भले ही कलेक्टे्रट के फुटपाथ पर उनका दम निकल जाए। सरकार की संवेदनहीनता से खफा होकर ही पीरदान ने अपने बच्चों से कहा है कि उनके शवों को मृत जानवरों को उठाने वाले वाहनों में रखकर मेडिकल कॉलेज पहुंचा दिया जाए। यानि राठौड़ दम्पत्ति अपनी जान देने पर तुले हुए हैं। 24 दिसम्बर को एक बार फिर मैंने कलेक्ट्रेट के फुटपाथ पर पीरदान जी से मुलाकात की। हालात को देखते हुए मैंने उनसे अपील की है कि वे अपना अनशन खत्म करें और इस निरंकुश शासन के खिलाफ संघर्ष जारी रखें। 
पीरदान दम्पत्ति के चले जाने से भी इस निरंकुश शासन पर कोई असर पडऩे वाला नहीं है। सवाल पीरदान के आरोपों के सही या गलत होने का नहीं है। बल्कि मानवीय संवेदनाओं का है। लोकतंत्र के इस दौर में जब एक दम्पत्ति 15 दिन से आमरण अनशन पर है तो क्या सरकार के किसी जनप्रतिनिधि का यह दायित्व नहीं बनता कि वह संवाद करें। जहां तक आर.के.मार्बल का सवाल है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि धन बल के बूते आर.के. मार्बल के मालिकों  की सत्ता को चुनौती देना आसान नहीं है, लेकिन राठौड़ दम्पत्ति पर हो रहे जुल्मों पर ईश्वर का न्याय अपनी जगह है। पिछले दिनों आयकर विभाग ने आर.के. मार्बल  की संस्थानों पर एक साथ छापामार कार्यवाही की। इसके बाद अब जब केन्द्र सरकार आयात की छूट देने जा रही है तो सबसे बड़ा झटका आर.के. मार्बल को ही लगेगा। पीरदान जी को ईश्वर के इस न्याय पर भरोसा रखना चाहिए। जब न्याय और अन्याय की जांच का काम ईश्वर खुद कर रहा है तो फिर पीरदान जी को निरंकुश शासन में किस जांच की क्या आवश्यकता है? मेरा मानना है कि जब जब ईश्वर न्याय करता है तो सजा बहुत सख्त मिलती है। पीरदान को जिंदा रहकर अत्याचारियों के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखना चाहिए। 
(एस.पी. मित्तल)
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