Sunday 24 May 2015

लाशों पर न सीएम संवेदनशील न कलेक्टर

राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे की संवेदनहीनता की वजह से जहां अजमेर के जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के मुर्दाघर में गणपतराम मेघवाल का शव 23 मई की सुबह से सड़ रहा है वहीं अजमेर की जिला कलेक्टर डॉ.आरूषि मलिक की वजह से सूरजपुरा गांव में 105 वर्षीय वृद्धा हमीरी देवी का शव 36 घंटे तक पड़ा रहा। प्रदेश के बहुचर्चित डांगावास हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की मांग को लेकर दलित समाज आंदोलनरत है। 14 मई को नागौर के डांगावास में जो खूनी संघर्ष हुआ उसमें तीन लोगों की मौत और करीब 20 महिला-पुरुष बुरी तरह जख्मी हुए। जख्मियों को अजमेर के अस्पताल में भर्ती कराया गया। इनमें से गणपतराम मेघवाल की मौत 23 मई की सुबह हो गई। अस्पताल के मुर्दाघर के बाहर खड़े सैकड़ों दलित यह मांग कर रहे है कि हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराई जाए। सरकार जब तक घोषणा नहीं करेंगी तब तक गणपतराम के शव का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा। इस मामले को लेकर प्रदेश भर के दलित समुदाय में सरकार के प्रति आक्रोश है। 23 मई की रात को पीयूसीएल के एक प्रतिनिधि मंडल ने गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया से मुलाकात की। प्रतिनिधियों की माने तो गृहमंत्री सीबीआई से जांच कराने पर सहमत है, इसलिए प्रतिनिधि मंडल की उपस्थिति में ही कटारिया ने सीएम राजे से फोन पर बात की, तब राजे ने कटारिया को अपने निवास पर रात को ही बुला लिया। चूंकि गृहमंत्री सहमत थे इसीलिए 24 मई के अंक में दैनिक भास्कर में यह खबर छप गई कि राज्य सरकार सीबीआई जांच की सिफारिश करने जा रही है, लेकिन इसके उलट सीएम राजे ने रविवार को यह संदेश दे दिया कि सरकार ने सीबीआई से जांच कराने का कोई निर्णय नहीं लिया। यही वजह रही कि 24 मई को ही गणपतराम की लाश मुर्दाघर में सड़ती रही।
सवाल उठता है कि आखिर सीएम राजे इस मामले की जांच सीबीआई से क्यों नहीं करवाना चाहती है? विधानसभा चुनाव के दौरान राजे ने कहा था कि कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार संवेदनहीन है, लेकिन अब ऐसा लगता है कि राजे स्वयं संवेदनहीनता दिखा रही है। जब प्रदेश की सीएम संवेदनशील नजर नहीं आ रही तो फिर अजमेर की जिला कलेक्टर डॉ.आरूषि मलिक भी संवेदनशीलता क्यों दिखाए? कलेक्टर की संवेदनहीनता की वजह से ही अजमेर जिले की जवाजा पंचायत समिति के सूरजपुरा गांव में 105 वर्षीय वृद्धा हमीरी देवी का शव भीषण गर्मी में 36 घंटे तक पड़ा रहा।
हुआ यूं कि हमीरी देवी का निधन 23 मई की दोपहर को हो गया। हमीरी देवी की अंतिम इच्छा थी कि उसका एकमात्र पुत्र गणपत सिंह ही उसके शव को अग्नि दे। हमीरी देवी का पुत्र इस समय भ्रष्टाचार के एक मामले में अजमेर की सेन्ट्रल जेल में बंद है। हमीरी देवी की अंतिम इच्छा को पूरा करने और गणपत को पैरोल पर रिहा करवाने के लिए गांव वाले भागे-भागे जिला कलेक्टर मलिक के पास आ गए। गांव वालों ने कलेक्टर के निवास पर पहुंचकर आवेदन देना चाहा तो कलेक्टर ने संदेश भिजवा दिया कि आवेदन कलेक्ट्रेट में दे दिया जाए। रात 9:30 बजे गांव वालों ने प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी को पैरोल का आवेदन दे दिया। इस अधिकारी ने संवेदनशीलता दिखाते हुए आवेदन को विधिवत तौर पर कलेक्टर के पास भिजवा दिया। पैरोल का आदेश लेने के लिए गांव वाले रात 12 बजे तक कलेक्टर के सरकारी बंगले के बाहर खड़े रहे, जब कोई संदेश नहीं आया तो गांव वाले मायूस होकर लौट गए, लेकिन 24 मई की सुबह गांव वालों ने एक बार फिर कलेक्टर से मिलने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। कलेक्टर की ओर से गांव वालों को यह भी नहीं बताया गया कि गणपत को पैरोल दिया जाएगा या नहीं। इसीलिए गांव वाले हमीरी देवी के शव को लेकर बैठे रहे। इस बीच पीयूसीएल के सचिव अनंत भटनागर ने कलेक्टर मलिक से टेलीफोन पर बात की तो कलेक्टर का कहना रहा कि अभी तक उनकी जानकारी में पैरोल का मामला सामने नहीं आया है। कलेक्टर के इस रवैये से गांव वाले बेहद निराश और हताश हो गए। इसके बाद ही गांव वालों ने 24 मई की शाम को हमीरी देवी का अंतिम संस्कार कर दिया। इस पूरे प्रकरण में जब मीडिया ने प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी से प्रतिक्रिया चाही तो उसने कहा कि गणपत सिंह अण्डर ट्रायल अभियुक्त है, इसलिए जिला प्रशासन पैरोल नहीं दे सकता। गणपत को संबंधित न्यायालय से ही जमानत मिल सकती है। सवाल उठता है कि यह बात प्रशासन को 23 तारीख को ही गांव वालों को स्पष्ट कर देनी चाहिए थी। गांव वालों को रात 12 बजे तक कलेक्टर के घर के बाहर क्यों खड़ा रखा गया? गांव वाले तो पैरोल की कोई जिद्द भी नहीं कर रहे थे। उन्हें तो सिर्फ हमीरी देवी की अंतिम इच्छा पूरी करनी थी। यदि कलेक्टर संवेदनशीलता दिखाती तो हमीरी देवी का शव 36 घंटे तक पड़ा नहीं रहता। हमीरी देवी वैसे भी सरकार के हर सम्मान की हकदार थी क्योंकि उनके पति लालसिंह ने द्वितीय विश्वयुद्ध में सुभाषचंद बोस की आजाद हिंद फौज में रहकर लड़ाई लड़ी थी। इसीलिए सरकार ने लालसिंह को स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान दिया। लालसिंह के निधन के बाद हमीरी देवी को भी स्वतंत्रता सेनानी की विधवा की पेंशन मिल रही थी। यदि प्रदेश की मुखिया संवेदनशील होती तो अजमेर का प्रशासन भी संवेदनशीलता दिखाता।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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