Friday 22 May 2015

गिलानी के पासपोर्ट पर बवाल क्यों

कश्मीर में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कट्टरपंथी नेता सैय्यद अलीशाह गिलानी के पासपोर्ट को लेकर बेवजह विवाद हो रहा है। पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने गिलानी को पासपोर्ट नहीं दिए जाने को लेकर केन्द्र सरकार की आलोचना की है। वहीं कांग्रेस भी इस मुद्दे को लेकर राजनीति कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि गिलानी ऑनलाइन आवेदन करने के बाद श्रीनगर स्थित विदेश मंत्रालय के पासपोर्ट कार्यालय में जा ही नहीं रहे हैं। देश के जिन लोगों ने पासपोर्ट बनवाया है कि पासपोर्ट कार्यालय में उपस्थित होकर बायोमेट्रिक डाटा फीड करवाना होता है। इसमें आवेदक की फोटो, अंगूठे की निशानी और पांचों अंगुलियों सहित पूरे हाथ की फोटो कम्प्यूटर पर दर्ज की जाती है। इसके बाद आवेदक के बारे में जानकारी और पुलिस जांच के बाद पासपोर्ट  दे दिया जाता है। लेकिन गिलानी अपना बायोमैट्रिक डाटा देने के लिए पासपोर्ट कार्यालय जा ही नहीं रहे हंै। ऐसे में सवाल उठता है कि गिलानी को पासपोर्ट किस प्रकार से दिया जाए। क्या गिलानी इस देश के नागरिक नहीं हैं। जब देश का हर नागरिक पासपोर्ट के लिए निर्धारित नियमों का पालन करता है तो गिलानी इन नियमों का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या सिर्फ आवेदन करने के साथ ही पासपोर्ट कार्यालय गिलानी के घर जाए और घर पर ही बायोमैट्रिक डाटा ले और फिर चुपचाप पासपोर्ट गिलानी को दे दे। सब जानते हैं कि ये वो ही गिलानी हैं जो भारत के कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने की हिमायती हैं। गत माह ही अलगाववादी नेता मुसरत आलम ने जेल से छूटने के बाद गिलानी के घर के बाहर ही एक रैली की थी, जिसमें खुलेआम पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए गए और भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले पाकिस्तानी नेता हाफिज सईद के जिन्दाबाद के नारे लगाए गए। गिलानी ने भी समय-समय पर भारत विरोधी बयान दिए हैं, लेकिन इससे केन्द्र सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
क्योंकि कश्मीर के अनेक अलगाववादी नेताओं को भी पासपोर्ट दे रखे हैं। ऐसे नेता पाकिस्तान में जाकर खुलेआम भारत की खिलाफत करते हैं। ऐसे में यदि गिलानी भी जेहद्दा अथवा पाकिस्तान में जाकर भारत के खिलाफ जहर उगलेंगे तो कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है, जब भारत के टीवी चैनलों पर हाफिज सईद के बयान प्रसारित हो सकते हैं, तो फिर गिलानी पाकिस्तान में जाकर भारत के खिलाफ कुछ भी कहे। जहां तक कश्मीर पर शासन करने वाली पीडीपी का सवाल है तो उसका झुकाव पहले से ही अलगाव वादियों के साथ है। असल में अलगाववादी नेता किसी न किसी बहाने से भारत का विरोध करवाना चाहते हैं। कश्मीर को लेकर पीएम नरेन्द्र मोदी की सरकार भी दुविधा में है। मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में भाजपा ने कश्मीर में पीडीपी की सरकार तो बनवा दी, लेकिन अब यही सरकार भाजपा के लिए गले की हड्डी बनी हुई है। एक ओर जहां कश्मीर में खुलेआम पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए जाते हैं, तो वहीं भाजपा की गठबंधन सरकार होने के बाद भी कश्मीरी पंडितों को बसाने का काम नहीं हो सकता है। आज भी कोई चार लाख कश्मीरी पंडित अपने घरों को छोड़कर शरणार्थी जीवन जी रहे हैं।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

No comments:

Post a Comment