Tuesday 12 May 2015

आखरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के वंशज प्रिंस याकूब पर पीएम नरेन्द्र मोदी का हाथ

भारत के आखरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के वंशज प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तुसी पर अब पीएम नरेन्द्र मोदी का हाथ है। यही वजह है कि प्रिंस याकूब ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर अहमद बुखारी और उनके परिवार के सदस्यों को दिल्ली जामा मस्जिद से हटाने की मांग की है। तुसी ने 12 मई को अजमेर में सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह में जियारत की। जियारत के बाद अपने खादिम सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी के निवास पर तुसी ने मुझसे सीधे संवाद किया। तुसी ने कहा कि अहमद बुखारी को स्वयं को शाही इमाम कहने का कोई अधिकार नहीं है। बुखारी और उनके परिवार के सदस्यों ने जामा मस्जिद को राजनीति का अखाड़ा बना लिया है, जिसमें उनके पूर्वजों की छवि भी खराब हो रही है। बुखारी परिवार को जामा मस्जिद से बेदखल करने के लिए उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है। जिस पर आगामी जुलाई माह में सुनवाई होनी है। इस याचिका का मुकदमा नम्बर 3535/2014 है। इसके साथ ही मैंने केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय से कहा है कि जामा मस्जिद का मुतवल्ली मुझे बनाया जाए, क्योंकि में ही बहादुर शाह जफर का वंशज हंू। मेरे इस पत्र पर मंत्रालय गंभीरता के साथ विचार कर रहा है। इस संबंध में मैं शीघ्र ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मुलाकात करुंगा। मेरी राजनीति में कोई रुचि नहीं है, लेकिन मैं चाहता हंू कि मुगल शासन में बनी इमारतों का संरक्षण हो। हालांकि देश की आजादी के बाद दरगाह, मस्जिद व अन्य इमारतें वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति हो गई हंै। लेकिन उन्हें अफसोस है कि अहमद बुखारी और उनके परिवार के सदस्य जामा मस्जिद का उपयोग अपनी निजी सम्पत्ति के तौर पर कर रहे हंै। अहमद बुखारी को अपने नाम से पहले शाही शब्द का इस्तेमाल करने का भी अधिकार नहीं है। अहमद बुखारी सिर्फ वक्फ बोर्ड के कारिंदे हैं। वे चाहते हैं कि जामा मस्जिद का उपयोग धार्मिक कार्यों के लिए हो और इसकी इमारत को पर्यटन की दृष्टि से भी विकसित किया जाए। जामा मस्जिद का निर्माण अकबर के बाद शाहजहां ने करवाया था और तब इस मस्जिद को अल्ला का घर कहा गया। लेकिन आज अल्ला का यह घर राजनीति का अखाड़ा बन गया है। उनकी याचिका से पहले एक जनहित याचिका भी दायर हुई थी, जिसमें जामा मस्जिद को वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति माना गया है।
तुसी ने बताया कि बहादुर शाह जफर का वंशज होने के सारे दस्तावेज उनकी वेबसाइट www.moghalemperors.com पर भी उपलब्ध है। कोई भी व्यक्ति मेरे दस्तावेजों का अध्ययन कर सकता है, चूंकि मैं बहादुरशाह जफर का वंशज हंू, इसलिए आगरा के ताजमहल में जब बादशाह शाहजहां का उर्स होता है, तो उर्स के धार्मिक अयोजनों की सदारत मैं स्वयं ही करता हंू। इस बार भी 15 मई को ताजमहल में उर्स का आयोजन होगा।
जियारत का खास मकसद
प्रिंस याकूब तुसी ने कहा कि आज ख्वाजा साहब की दरगाह में जियारत का खास मकसद है। उनके पूर्वज अकबर ने 1661 में यहां आकर पुत्र प्राप्ति की दुआ की थी। तब 35 वर्षीय अकबर आगरा से पैदल चल कर अजमेर पहुंचे थे। ख्वाजा साहिब ने दुआ स्वीकार की और अकबर को दो पुत्र प्राप्त हुए। तब अकबर ने एक पुत्र का नाम सलीम रखा जो अकबर के पीर का भी नाम था। इसी प्रकार तब दरगाह में जियारत कराने वाले दानियाल गुर्देजी के नाम पर दूसरे पुत्र का नाम दानियाल रखा। आज वे खुदा का शुक्र मानते हैं कि दानियाल गुर्देजी के परिवार के सदस्य सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी और उनके पुत्र यासिर गुर्देजी व जकरिया गुर्देजी ने उन्हें भी जियारत करवाई।
दीवान से हुई फोन पर बात
तुसी ने बताया कि ख्वाजा साहब की दरगाह के दीवान सैय्यद जैनुल आबेदीन की उनसे फोन पर बात हुईथी। अच्छा होता कि आज जियारत के मौके पर दीवान आबेदीन भी दरगाह में उपस्थित रहते। ख्वाजा साहब की दरगाह के विकास में अकबर ने ही सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
शीघ्र मिलेंगे पीएम से
तुसी ने कहा कि वह शीघ्र ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करेंगे। हालांकि उनकी राजनीति में कोई रुचि नहीं है। लेकिन वह नरेन्द्र मोदी को एक अच्छा इंसान मानते हैं। उनका अपना खुद का कारोबार है और उस कारोबार से पूरी ताह संतुष्ट हैं। लेकिन वह चाहते हैं कि वंशज घोषित होने के बाद सरकार को सहयोग करें।
जोधाबाई नहीं थी अकबर की बीवी
तुसी ने कहा कि कुछ इतिहासकार राजपूत घराने की महिला जोधाबाई को अकबर बादशाह की बीवी बताते हैं। इतिहासकारों का यह कथन गलत है। उन्होंने बताया कि राजस्थान में करणी सेना के अध्यक्ष लोकेन्द्र सिंह कालवी को इस बात के दस्तावेज दिए हैं कि जोधाबाई कभी भी अकबर की बीवी नहीं रही। उन्होंने माना कि देश के इतिहास को नए सिरे से लिखने की जरुरत है। मुगल बादशाहों के शासन में हिन्दू और मुसलमान सद्भावना के साथ रहे थे।
दरगाह जियारत
तुसी ने मंगलवार को यहां ख्वाजा साहब की दरगाह में सूफी परंपरा के अनुरूप पवित्र मजार पर मखमली और फूलों की चादर पेश की। उन्होंने ख्वाजा साहब का शुक्रिया अदा किया कि विभिन्न न्यायालयों में उन्हें बहादुर शाह जफर का वंशज मान लिया है। इस अवसर पर दरगाह के खादिम सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी और जकरिया गुर्देजी ने जियारत की रस्म अदा करवाई।
मोहब्बत हो तो गनी भाई जैसी
ख्वाजा साहब की दरगाह के प्रमुख खादिम सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी से मेरे परिवार के पारिवारिक रिश्ते रहे हैं। मेरे पिता स्वर्गीय कृष्ण गोपाल जी गुप्ता और गनी गुर्देजी में मित्रवत संबंध रहे हैं। आज भी गनी गुर्देजी मुझे अपने परिवार का सदस्य ही मानते हैं। यही कारण रहा कि 12 मई को जब मुगल बादशाह अकबर  के वंशज प्रिंस याकूब तुसी उनके घर आए तो पूरा दबाव डालकर मुझे भी बुलाया गया। यह गनी भाई की मोहब्बत ही थी कि मैं अत्यधिक व्यस्त होने के बाद भी तुसी से मिलने के लिए पहुंचा। मुझे बुलाने के पीछे गनी भाई का अपना कोई स्वार्थ नहीं था, लेकिन वे चाहते थे कि देश के एक प्रमुख व्यक्ति से मेरी मुलाकात अवश्य करवाई जाए। इसमें कोई दोराय नहीं कि इस मुलाकात का फायदा मेरे ब्लॉक पढऩे वाले पाठकों को होगा। क्योंकि महत्त्वपूर्ण जानकारी सिर्फ मेरे ब्लॉक में ही पढऩे को मिलेगी। गनी भाई ने मेरे प्रति जो मोहब्बत दिखाई उसका में शुक्र गुजार हंू और उम्मीद करता हंू कि भविष्य में भी गनी भाई मेरे प्रति अपनी मोहब्बत को बनाए रखेंगे।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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