Friday 15 May 2015

अवैध निर्माणकर्ताओं को हाईकोर्ट से राहत नहीं

बड़े स्तर पर फिर से होगा सर्वे, बिगड़ गए है अजमेर के हालात
अजमेर के अवैध निर्माणों पर कॉम्प्लेक्स मालिकों को हाईकोर्ट ने कोई राहत नहीं दी है। हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि अवैध निर्माणों की वजह से अजेमर के हालात बिगड़ गए हैं।
15 मई को हाईकोर्ट की जयपुर खंडपीठ के न्यायाधीश अजय रस्तोगी और जे.के. रांका के समक्ष एक जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अवैध निर्माणकर्ताओं के वकील एन.एम. रंजन ने कहा कि पूर्व में हाईकोर्ट ने जो आदेश दिए उससे पक्षकारों के वैधानिक अधिकार खत्म हो गए हैं और नगर निगम प्रतिदिन कॉम्प्लेक्सों, भवनों, दुकानों को सीज कर रहा है। इससे अजेमर में रोष व्याप्त है। आज अजमेर को बंद भी रखा गया है। रंजन ने कहा कि नगर निगम जब किसी निर्माण को अवैध मानकर नोटिस देता है तो पीडि़त व्यक्ति स्वायत्त शासन निदेशालय में अपील करता है अथवा सिविल कोर्ट में भी प्रार्थना पत्र दायर कर देता है। लेकिन हाईकोर्ट के निर्णय के बाद न तो निदेशालय और न ही कोई सिविल कोर्ट निर्माणकर्ताओं की सुनवाई कर रहा है। ऐसे में निर्माणकर्ताओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है। जिन कॉम्प्लेक्सों, दुकानों में काम हो रहा है, उन्हें भी सीज किया जा रहा है।
एडवोकेट रंजन को सुनने के बाद न्यायाधीश रस्तोगी और रांका ने एडवोकेट जनरल एन.एम. लोढ़ा को तलब किया। लोढ़ा के विलम्ब से आने पर न्यायालय ने नाराजगी भी जताई। लोढ़ा ने कहा कि अनेक व्यक्तियों ने आवासीय नक्शा स्वीकृत करवाया है,जबकि मौके पर बड़े-बड़े कॉप्लेक्स बना लिए हैं। कॉम्प्लेक्स बायलज के विरुद्ध भी बने हैं। नगर निगम हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुरूप ही सीज का काम कर रहा है। न्यायालय में उपस्थित निगम की आयुक्त श्रीमती सीमा शर्मा से न्यायाधीशों ने सवाल किया कि पूर्व में जो 490 अवैध निर्माणों की सूची प्रस्तुत की गई है, उस सूची को किस स्तर के अधिकारी ने बनाया है। इस पर श्रीमती शर्मा ने कहा कि क्षेत्र के जेईएन की रिपोर्ट पर सूची बनाई गई है। शर्मा के इस जवाब पर न्यायालय ने नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा क जब आवासीय भूमि पर बड़े-बड़े कॉम्प्लेक्स बन गए है तो फिर किसी बड़े स्तर पर सर्वे का काम होना चाहिए। न्यायाधीश रस्तोगी और न्यायाधीश रांका ने आयुक्त से कहा कि अब इस 490 वाली सूची से काम नहीं चलेगा। वैसे भी यह सूची अगस्त 2013 तक की है। उन्होंने कहा कि बड़े अधिकारियों अथवा अनुभवी एजेंसी से नए सिरे से अवैध निर्माणों का सर्वे करवाया जाए और सर्वे की रिपोर्ट निगम के सीईओ के शपथ पत्र के साथ प्रस्तुत की जाए। इसके साथ ही अवैध निर्माणकर्ताओं को कोई राहत दिए बिना न्यायालय ने कहा कि नगर निगम सीज का काम जारी रखे। इतना ही नही अब अवैध निर्माण पर सभी निर्णय हाईकोर्ट स्तर पर ही होंगे। किसी को भी स्वायत्त शासन निदेशालय अथवा सिविल कोर्ट में सुनवाई करवाने की छूट नहीं होगी। उन्होंने कहा कि जब हाईकोर्ट स्वयं निगरानी कर रहा है तो फिर इधर-उधर जाने की क्या जरुरत है। दोनों न्यायाधीशों ने कहा कि अजमेर के हालात बिगड़ गए हैं, जिन्हें सुधारना बेहद जरूरी है। जहां तक बंद या किसी विरोध का सवाल है, इससे न्यायालय पर कोई असर नहीं पड़ता है।
पक्षकार बनाने पर भी सहमति
बहस के दौरान ही एडवोकेट एस.के. सक्सेना ने अजमेर के जागरुक नागरिक अनंत भटनागर, राजकुमार नाहर व एस.पी.मित्तल की ओर से कहा कि अभी भी सीज करने में नगर निगम हाईकोर्ट के आदेशों की प्रभावी पालना नहीं कर रहा है। छोटे व्यक्तियों के अवैध निर्माण सीज किए जा रहे हैं, जबकि प्रभावशाली व्यक्तियों के कॉम्प्लेक्स सीज नहीं हो रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अवैध निर्माणकर्ता और निगम के अधिकारी आपस में मिल गए हैं। एडवोकेट सक्सेना ने कहा कि पूर्व में निगम ने जो 490 अवैध निर्माणों की सूची पेश की है, वह तकनीकी दृष्टि से सही नहीं है। अवैध निर्माणों को दो श्रेणियों में विभाजित करना होगा। जो निर्माण नगर पालिका अधिनियम 2009 के आने से पहले के हैं, उनकी सूची अलग से बने तथा 2009 के बाद के निर्माणों की सूची अलग से बननी चाहिए। निगम के नोटिस के बाद जिन निर्माणकर्ताओं ने सिविल कोर्ट से निगम के खिलाफ स्टे तो ले लिया, लेकिन कॉम्प्लेक्सों का निर्माण जारी रखा। सक्सेना ने कहा कि ऐसे अनेक मामले है, जिनमें निगम व अधिकारियों की मिलीभगत साफ जाहिर होती है। पार्किंग और सेटबैक की जगह  में भी व्यवसायिक गतिविधियां खुलेआम हो रखी है। ऐसे निर्माणों को भी अवैध निर्माण मनना चाहिए। जिन व्यक्तियों ने अपने कॉम्प्लेक्सों की ऊंचाई स्वीकृति से ज्यादा की है, उन कॉम्प्लेक्सों की सूची भी अलग से बननी चाहिए।
निगम ने जो 490 अवैध निर्माणों की सूची पेश की है, उनमें 75 प्रतिशत निर्माण गली मोहल्लों के हैं, जबकि शहर की मुख्य सड़कों के किनारे बड़े-बड़े कॉम्प्लेक्स बिना स्वीकृति के खड़े हो गए हैं। एडवोकेट सक्सेना ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला कर रखा है कि अवैध निर्माण राष्ट्र की सम्पत्ति है। ऐसे में नगर निगम को चाहिए कि सभी अवैध निर्माणों का कब्जा ले ले। इस पर न्यायाधीश रस्तोगी और न्यायाधीश राका ने कहा कि इसी याचिका में शहर के जागरुक नागरिकों को भी पक्षकार बनाया जाएगा। जो मुद्दे उठाए गए है, वह बेहद महत्त्वपूर्ण है। न्यायालय ने आगामी सुनवाई के लिए 13 जुलाई की तिथि निश्चित की है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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