एबीपी न्यूज चैनल ने कहा इसरत जहां के एनकाउण्टर में नरेन्द्र मोदी को बेवजह फंसाया।
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11 फरवरी को एबीपी न्यूज चैनल ने एक खोजपूर्ण स्टोरी चलाई। इस स्टोरी में दस्तावेजों के आधार पर कहा गया कि बहुचर्चित इसरत जहां के एनकाउण्टर में तब के गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी को बेवजह फंसाया गया चूंकि उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी इसीलिए जांच एजेन्सियों ने मोदी की भूमिका को शामिल किया जबकि सच्चाई यह थी इसरत जहां आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की सूत्रधार थी। एबीपी चैनल ने जो दस्तावेज दिखाए उसमें कहा गया कि पहले केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने यह माना कि इसरत जहां आतंकी संगठन से जुड़ी थी, लेकिन बाद के गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने पाटिल की रिपोर्ट को नकारते हुए कहा कि इसरत जहां तो सीधेसाधे परिवार की कॉलेज छात्रा थी। इसरत जहां के इस नए तथ्य को मुम्बई हमले के आरोपी डेविड हेडली ने भी स्वीकार किया है। एबीपी न्यूज चैनल को नरेन्द्र मोदी का विरोधी माना जा रहा है लेकिन 11 फरवरी को जिस तरह से इस चैनल ने दस्तावेज रखे उससे प्रतीत होता है कि कांग्रेस नरेन्द्र मोदी की छवि मुस्लिम विरोधी होने की बना रही थी। हालांकि ऐसे आरोप बाद में भाजपा ने भी लगाए हैं। चैनल की खबर के बाद अब देखना होगा कि कांग्रेस अपना बचाव किस प्रकार से करती है।
10 फरवरी को दिल्ली में जेेएनयू के छात्रों ने प्रदर्शन किया। सोशल मीडिया पर जो वीडियो वायरल है उसमें विद्यार्थियों को कश्मीर की आजादी, भारत की बर्बादी और पाकिस्तान की खुशहाली के नारे लगाते दिखाया गया है। विद्यार्थियों के इस देशद्रोही कृत्य से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा है। प्रदर्शन के दौरान ऐसा लगा ही नहीं कि ये विद्यार्थी हमारे देश के नागरिक हैं। अब तक कश्मीर में पाकिस्तान जिन्दाबाद और कश्मीर की आजादी को लेकर नारे लगते रहे हैं, लेकिन 10 फरवरी को यह पहला अवसर रहा जब दिल्ली में भारत विरोधी नारे सुनने को मिले। जेएनयू के कुछ विद्यार्थियों ने जिस प्रकार से नारेबाजी की उससे प्रतीत हो रहा था कि यह एक सुनियोजित षडय़ंत्र के तहत हो रहा है। ऐसे लोग आज खुलेआम देश के एक प्रांत को आजाद घोषित करने की मांग कर रहे हैं। हो सकता है कि आने वाले दिनों में किसी दूसरे प्रांत को आजाद करने के लिए धरना प्रदर्शन हो जाए। जब हमारे देश में लोकतंत्र है तो ऐसे में हजार या लाख लोग एकत्रित होकर कुछ भी मांग कर सकते हैं। 10 और 11 फरवरी की घटनाओं को किसी प्रकार से देशहित में नहीं माना जा सकता जो लोग देश में असहिष्णुता होने की बात करते हैं उन्हें अब यह बताना चाहिए कि जेएनयू के कुछ विद्यार्थियों ने भारत की बर्बादी के नारे क्यों लगाए? क्या भारत को बर्बाद, जबकि और पाकिस्तान को खुशहाल बनाकर देश का अस्तित्व बचाया जा सकता है। हो सकता है कि कुछ लोग केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार से द्वेषता रखते हों, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि ऐसे लोग देश की अखण्डता और एकता को ही तोड़ दे। मोदी देश के मतदाताओं के वोट से प्रधानमंत्री बने हैं। यदि मोदी को हटाना है तो अगले चुनाव में वोट के जरिए हटा दिया जाए लेकिन देश की राजधानी में अपने ही देश के खिलाफ नारे लगाने तो पूरी तरह से गद्दारी और देशद्रोह का काम है। इसे नरेन्द्र मोदी की सरकारी की राजनीतिक मजबूरी ही कहा जाएगा कि अभी तक भी ऐसे विद्यार्थियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई। देश के लिए इससे दुखद बात और क्या हो सकती है कि सियाचीन के ग्लेशियर में देश की रक्षा की खातिर बर्फ में दबे रहने के बाद 11 फरवरी को जांबाज लांसनायक हनुमत्थप्पा का निधन हो गया। क्या हनुमत्थप्पा ने अपनी शहादत उन लोगों की सुरक्षा और हिफाजत के लिए दी जो दिल्ली में भारत की बर्बादी के नारे लगा रहे? सियाचीन के बर्फीले तूफान में 10 जवानों की शहादत हो चुकी है।
(एस.पी. मित्तल) (11-02-2016)
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