Tuesday 16 February 2016

कर्मचारियों की हड़ताल क्या न्यायिक प्रशासन की शह पर हो रही है। राजस्थान में ठप हैं अदालतें।



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राजस्थान भर की अदालतें 15 फरवरी से ठप हैं। हड़ताल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर न्यायाधीश के रीडर तक शामिल हैं। इसलिए अदालतों के कक्ष के ताले तक नहीं खुले। राजस्थान के न्यायिक इतिहास में संभवत: पहला अवसर है, जब कर्मचारियों की हड़ताल से इस तरह अदालतें ठप हुई हैं। गंभीर बात यह है कि इस हड़ताल पर न्यायिक प्रशासन ने कोई दखल नहीं दिया है। हालांकि कर्मचारियों की पदोन्नति, वेतन वृद्धि और अन्य मांगे राज्य सरकार से संबंध रखती हैं और सरकार ने समझौता करने के बाद भी कर्मचारियों को सुविधाएं नहीं दी, लेकिन सवाल उठता है कि क्या किसी भी संगठन की जवाबदेही जनता के प्रति नहीं है? जब वकील, डॉक्टर आदि हड़ताल करते हैं तो अदालतों में बैठे विद्वान न्यायाधीश ही ऐसी हड़तालों को अवैध करार देते हैं। तब यह तर्क दिया जाता है कि किसी को भी जनता के हितों से खिलवाड़ करने का अधिकार नहीं है। वकीलों की हड़ताल को गैर कानूनी घोषित कर न्यायाधीशों ने कई बार कहा है कि अदालतों में काम नहीं होनेे से पक्षकारों को परेशानी होती है। अदालतों में लंबित मुकदमों की वजह से पक्षकार पहले ही परेशान रहता है और वकीलों की हड़ताल से पक्षकारों की परेशानी और बढ़ जाती है। कई बार ऐसे मौके आए हैं जब वकीलों की हड़ताल के दौरान अदालतें लगी और न्यायाधीशों ने पीडि़त पक्षकार को ही अपनी पैरवी करने का अधिकार दिया। इसके पीछे न्यायिक अधिकारियों की यही भावना थी कि हड़ताल से पक्षकारों को परेशान न हो। हालांकि न्यायिक अधिकारियों की इस कार्यवाही का वकीलों ने विरोध भी किया, लेकिन वकीलों की एक नहीं सुनी गई। अब जब न्यायिक कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से प्रदेशभर की अदालतें ठप हो गई हंै, तो न्यायिक प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है। पक्षकारों को वकीलों की हड़ताल के समय जो परेशानी होती है, वही परेशानी अब कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से हो रही है। वकीलों की हड़ताल के समय तो आगामी तारीख तो मिल रही थी, लेकिन अब तो आगामी तारीख देने वाला भी कोई नहीं मिल रहा है। जब लाखों पक्षकारों का इतना बुरा हाल है तो फिर न्यायिक प्रशासन क्या कर रहा है? लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबसे मजबूत स्थिति न्यायपालिका की है। यदि इस स्थिति के बाद भी पक्ष्कारों को परेशान होना पड़े तो अनेक संदेह होते हैं। सवाल यह भी है कि क्या न्यायिक प्रशासन के सहयोग के बिना कर्मचारी इतनी मजबूत हड़ताल कर सकते हैं?
व्यवहार में भी लाए बदलाव:
न्यायिक कर्मचारियों को सुविधाएं मिलनी चाहिए। इस पर किसी को भी ऐतराज नहीं है, लेकिन जब न्यायिक कर्मचारी अपने अधिकारों की बात करते हैं, तब उन्हें अपने व्यवहार का भी ख्याल करना चाहिए। जिन लोगों का अदालतों से पाला पड़ा है, उन्हें पता है कि न्यायिक कर्मचारी किस तरह का व्यवहार करते हैं। किस तरह से तारीख पर तारीख दी जाती है, इस बात का पता भी पक्षकारों को है। अच्छा हो कि हड़ताल अवधि में न्यायिक कर्मचारी अपने व्यवहार में बदलाव के लिए भी मंथन करें। जहां तक सरकार का सवाल है तो सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अपनी कार्यशैली है। इस कार्यशैली में लोकतंत्र के किसी भी खंबे की परवाह नहीं की जाती हंै। वैसे भी दो सौ विधायकों में से 163 विधायक वसुंधरा राजे की भाजपा के हैं। ऐसे में सरकार को किसी से भी खतरा नहीं है। समझौते को नकारना और न्यायालय का फैसला नहीं मानने से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार किस तरह से काम कर रही है। 

(एस.पी. मित्तल)  (16-02-2016)
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