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25 फरवरी को जब बहुचर्चित जेएनयू के मुद्दे पर राज्यसभा में बहस हो रही थी, तब ऐसा लगा कि कांग्रेस ने जो गलती की उसे गुलाम नबी आजाद सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। आजाद राज्यसभा में कांग्रेस के नेता हैं। आजाद ने स्पष्ट कहा कि 9 फरवरी को जेएनयू परिसर में जिन भी लोगों ने देशद्रोह के नारे लगाए हैं, उनके विरुद्ध सख्त कार्यवाही हो तथा इस मुद्दे पर कांग्रेस सरकार के साथ है, लेकिन सरकार को उन्हीं लोगों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए, जिन्होंने देशद्रोह के नारे लगाए। असल में आजाद को यह बात तब कहनी पड़ी जब राज्यसभा में भाजपा के नेता अरुण जेटली ने पूरी तरह कांग्रेस को घेर लिया था। जेटली ने कहा कि पांच वर्ष पहले जब मैं विपक्ष की सीट पर और आप (आजाद) सत्ता की सीट पर बैठे थे, तब माओवाद की एक घटना को लेकर तब के केन्द्रीय गृहमंत्री पी.चिदम्बरम ने इस्तीफे का प्रस्ताव दिया था। तब सबसे पहले मैंने देशहित में कहा कि चिदम्बरम को इस्तीफा नहीं देना चाहिए। क्योंकि इस मामले में गृहमंत्री की कोई गलती नहीं है। मैंने ऐसा देशहित मे कहा था और यह जताने की कोशिश की कि आतंकवाद माओवाद नक्सलवाद आदि पर पूरा देश एकजुट है, लेकिन अफसोस है कि जेएनयू की देशद्रोह की घटना पर कांग्रेस का रुख देशहित में नहीं है। चार दिन बाद ही राहुल गांधी के जेएनयू कैम्पस में जाने और आरोपियों का समर्थन करने के संदर्भ में जेटली ने कहा कि समझदार लोग पहले विचार करते हैं और फिर कदम उठाते हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी में पहले कदम उठाया जाता है और फिर विचार होता है। मायावती की ओर इशारा करते हुए जेटली ने कहा कि आतंकी याकूब मेनन के समारोह में भीमराव अम्बेडकर का फोटो लगा लेने से समारोह अम्बेडकरवादी नहीं हो जाता। जेटली ने जिस तरह से जेएनयू के मुद्दे पर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया, उसे देखते हुए ही गुलाम नबी आजाद को यह कहना पड़ा कि देशद्रोह के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी सरकार के साथ हैं। जेटली ने 1949 में अम्बेडकर के भाषणों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत तभी गुलाम हुआ था, जब अपने ही लोगों ने बगावत की। शिवाजी इसलिए हारे कि कुछ मराठा, दुश्मन से जाकर मिल गए। उन्होंने कहा कि देशद्रोह के मुद्दे पर तो कांग्रेस को सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए।
(एस.पी. मित्तल) (25-02-2016)
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