Tuesday 2 February 2016

प्राइवेट अस्पतालों में लूट ली लूट।



झोला छाप डॉक्टर कर रहे है मरीजों का इलाज।
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इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि अजमेर में जिन प्राइवेट अस्पतालों नेे सरकार से रियायती दरों पर जमीनें ली है, उनका उद्देश्य सेवा की भावना के बजाए लूट का बना हुआ है। हालात इतने खराब है कि आयुर्वेद और होम्योपैथी के डॉक्टरों से अस्पताल में मरीजों का इलाज करवाया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक पुष्कर रोड पर चल रहे एक प्राइवेट अस्पताल में एमबीबीएस, एमएससी की पढ़ाई वाले डॉक्टरों के साथ-साथ आयुर्वेद और होम्योपैथी के डॉक्टर भी देखे जाते है। इस अस्पताल में मरीजों से तो मोटी फीस ली जाती है, लेकिन ऑपरेशन वाले मरीज को एनेस्थीसिया देने का काम आयुर्वेद के डॉक्टर करते है। हालाकि यह मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के खिलाफ भी है, लेकिन इस अस्पताल के मालिकों का प्रशासन में इतना दबदबा है कि नियम विरूद्ध काम पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। आदर्श नगर क्षेत्र में चल रहे एक प्राइवेट अस्पताल में डायलसिस वाले मरीजों को पुराना फिल्टर ही लगाया जाता है। जानकारों के मुताबिक जिस मरीज के रक्त का डायलसिस होता है उस मरीज के लिए फिल्टर लगाने की जरूरत होती है। अस्पताल के प्रबंधक इंशोरेंस कंपनियों और सरकारी विभागों से हर बार नए फिल्टर के दो हजार रुपए वसूलते है, लेकिन मरीज को पुराना फिल्टर लगाकर ही डायलसिस कर दिया जाता है। इस अस्पताल में ऐसे कई मरीज है जिन्हें एक माह में 15 बार डायलसिस करवाना होता है। अस्पताल के मालिक संबंधित विभाग से फिल्टर के 30 हजार रुपए प्रतिमाह वसूलते हैं, लेकिन पूरे माह एक ही फिल्टर से काम चला लेते हैं। जानकारों के अनुसार फिल्टर को एक डिब्बे में रखा जाता है और डिब्बे पर संबंधित मरीज का नाम लिख दिया जाता है। मरीज जब अगली बार डायलसिस के लिए आता है तो पुराने फिल्टर से ही डायलसिस कर दिया जाता है। सवाल उठता है कि जब पुराने फिल्टर से डायलसिस हो सकता है तो फिर अस्पताल के प्रबंधक हर बार फिल्टर के 2 हजार रुपए क्यों वसूलते हैं? वहीं चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि मरीज के डायलसिस के लिए हर बार नया फिल्टर चाहिए। पुराने फिल्टर से संक्रमण होने का खतरा हमेशा बना रहता है। चूंकि डायलसिस का सीधा संबंध मरीज के शरीर के रक्त से होता है, इसलिए अस्पतालों को कोई जोखिम नहीं लेना चाहिए। कई बार रक्त में संक्रमण हो जाने से ही मरीज की मौत हो जाती है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लुटेरे अस्पतालों को मरीज की मौत से कोई सरोकार नहीं है।

(एस.पी. मित्तल)  (02-02-2016)
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