रसोई गैस के एक सिलेंडर में होता है अंतिम संस्कार।
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सात फरवरी को मुझे भीलवाड़ा शहर के पंचमुखी मुक्तिधाम स्थल को देखने का अवसर मिला। मैं स्वयं भी चाहता था कि यहां लगे गैस शवदाह गृह को देखंू। भीलवाड़ा के समाजसेवी और पंचमुखी मुक्तिधाम विकास समिति के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल के बुलावे पर मैंने 7 फरवरी को भीलवाड़ा के मुक्तिधाम स्थल का अवलोकन किया। मैंने देखा कि विशाल मुक्तिधाम परिसर न केवल साफ-सुथरा है, बल्कि चारों तरफ हरियाली है। मुक्तिधाम की लाइब्रेरी तो किसी यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी से कम नहीं थी। जहां अजमेर के श्मशान स्थलों पर आवारा जानवरों, गंदगी, राख के ढेर, कफन के कपड़े इधर-उधर बिखरे पड़े रहते हैं, वहीं भीलवाड़ा की मुक्तिधाम पर एक स्थान पर गंदगी देखने को नहीं मिली। ऐसा लगा ही नहीं कि यह कोई श्मशान स्थल है। वातावरण से ऐसा लगा जैसे यह धार्मिक स्थल है। साफ-सुथरा खुला हॉल ऐसा था, जिसमें साधु-संतों के प्रवचन हो सकते हैं। मुक्तिधाम परिसर दिखाने के बाद अग्रवाल ने मुझे गैस शवदाह गृह भी बताया। भीलवाड़ा से राज्य सभा के सांसद रहे वी.पी.सिंह बदनोर ने 25 लाख रुपए सांसद कोष से इस शवदाह गृह के लिए दिए। अग्रवाल ने बताया कि गैस के शवदाह गृह को एक बार गर्म करने के लिए करीब 30 रसोई गैस सिलेंडरों की एक साथ आवश्यकता होती है, लेकिन एक शव के अंतिम संस्कार में मात्र एक सिलेंडर की गैस का उपयोग होता है। शव को भट्टी में रखने के एक घंटे बाद राख ली जा सकती है। उन्होंने बताया कि इससे जहां लकड़ी की बचत होती है, वहीं पर्यावरण भी दूषित नहीं होता है। खर्चा भी मात्र एक सिलेंडर का आता है। धीरे-धीरे गैस शवदाह गृह की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है। लेकिन इसके लिए अभी भी जागरुकता की जरुरत है। धार्मिक मान्यताओं के चलते गैस शवदाह गृह का उपयोग बहुत कम हो रहा है। वैसे तो गैस शवदाह गृह का सभी सामान 8 से 10 लाख रुपए में आ जाता है, लेकिन इसको सुरक्षित बनाए रखने के लिए एक बड़े हॉल की जरुरत होती है। भीलवाड़ा के मुक्तिधाम पर प्रतिमाह 50 हजार रुपए का खर्चा आता है। जिसे जनसहयोग से पूरा किया जाता है।
(एस.पी. मित्तल) (07-02-2016)
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