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क्या प्रधानमंत्री के भाव का कोई असर अफसरशाही पर पड़ेगा।
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21 अप्रेल को सिविल सेवा दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आला अफसरों की एक सेमीनार को संबोधित किया। मोदी ने अफसरों के सामने एक सवाल रखा कि क्या कारण है की जनता के मन में आप लोगों के प्रति अच्छा भाव नहीं होता है? यह माना कि प्रशासनिक सेवा में रहते हुए अनेक अधिकारी सराहनीय कार्य करते हैं। लेकिन इसके बावजूद भी जनता के मन में आपके प्रति जो सम्मान होना चाहिए, वह नहीं होता है। उन्होंने कहा की अफसरों की यह जिम्मेदारी है कि वह अपना काम जनता को समर्पित करें। उन्होंने कहा कि सरकार तो आती-जाती रहती है, लेकिन आप लोग स्थाई तौर पर वर्षों तक काम करते हैं। उन्होंने माना की प्रचार के लिए सोशल मीडिया एक प्रभावी तंत्र है। लेकिन सोशल मीडिया का उपयोग व्यवस्था के प्रचार के लिए होना चाहिए। जो अधिकारी अपने प्रचार के लिए इस मीडिया का इस्तेमाल करते हैं वह गलत है। आमतौर पर यह देखा गया है कि अधिकारियों का अधिकांश समय मोबाइल पर व्यतीत हो रहा है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि 21 अप्रैल को पीएम मोदी ने भावनात्मक भाषण दिया। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस भाषण का अफसरशाही पर कोई असर पड़ेगा। आमतौर पर सरकारी बैठकों में जनप्रतिनिधियों का यह कहना होता है कि अफसर उनके जनहित के कामों को नहीं करते हैं। मोदी भले ही सिविल सेवा के अफसरों की कितनी भी प्रशंसा करें, लेकिन आज हकीकत यह है कि किसी भी सरकारी दफ्तर में रिश्वत दिए बिना कोई काम नहीं होता। फाइल को एक टेबल से दूसरी टेबल तक पहुंचाने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है। मोदी माने या नहीं,लेकिन प्रशासन में अधिकांश नियुक्तियां राजनीतिक दखल से होती हैं। विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री की सिफारिश पर अधिकारियों को नियुक्त किया जाता है। ऐसे में संबंधित अधिकारी जनता के बजाए नियुक्ति करवाने वाले नेता के प्रति वफादार होता है। आमतौर पर यह देखा जाता है कि अधिकारी एक या दो नेता को खुश कर अपनी मर्जी से काम करता है। जिस मामले में रिश्वत मिल जाती है, उसे तो हाथों-हाथ कर जाता है। लेकिन जिस मामले में रिश्वत नहीं मिलती, उसे किसी ना किसी तरीके से अटका दिया जाता है। सवाल उठता है कि जब एक ही प्रकृति के मामलों में एक निर्णय होना है तो फिर ऐसे सभी मामलों को एक मुश्त क्यों नहीं निपटाया जाता। सब जानते हैं कि ऐसा भ्रष्टाचार की वजह से ही होता है। अच्छा होता कि प्रधानमंत्री अपने भाषण में सिविल सेवा में फैले भ्रष्टाचार पर भी कोई टिप्पणी करते।
(एस.पी.मित्तल) (21-04-17)
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