Wednesday 26 April 2017

#2502
तो अब दिल्ली के मतदाताओं का अपमान कर रही है केजरीवाल की टोली।
एमसीडी चुनाव में कांग्रेस तीसरे नंबर पर। 
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26 अप्रैल को देश की राजधानी दिल्ली में महानगर पालिका के चुनाव परिणाम घोषित हो गए। 270 वार्डों में से 180 में बीजेपी के उम्मीदवार जीते, जबकि आम आदमी पार्टी को 45, कांग्रेस को 35 तथा अन्य को 10 वार्डों में जीत हासिल हुई। हालांकि परिणाम पर प्रतिक्रिया देने के लिए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल सामने नहीं आए, लेकिन उनकी टोली के मनीष सिसोदिया, आशुतोष आदि ने मोर्चा संभाला और कहा कि यह भाजपा की लहर नहीं, बल्कि ईवीएम की लहर है। यानी दिल्ली के मतदाताओं ने आप के उम्मीदवारों को वोट दिए, लेकिन ईवीएम में गड़बड़ी की वजह से वोट भाजपा को चले गए। केजरीवाल की टोली ने वहीं किया जो यूपी चुनाव के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने किया था। चुनाव आयोग ने आप को खुली चुनौती दी है कि वह किसी भी ईवीएम में गड़बड़ी साबित करके दिखाएं। असल में मतदान से पहले ही आप को यह एहसास हो गया था कि परिणाम खिलाफ आएंगे। इसीलिए मतपत्र से चुनाव करवाने की मांग की गई थी। केजरीवाल की टोली अब सीधे तौर पर दिल्ली के मतदाताओं का अपमान कर रही है। मतदान के बाद जो भी सर्वे आए उनमें भाजपा को ही विजयी बताया गया था। किसी भी सर्वे में केजरीवाल की जीत नहीं बताई गई। असल में केजरीवाल ने अपने ढाई वर्ष के शासन में दिल्ली के मतदाताओं को प्रभावित करने वाला कोई काम नहीं किया, जबकि मतदाताओं ने उन्हें विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीट दी थी, जिस पार्टी को 67 सीटें मिली हो उसका पालिका चुनाव में सूपड़ा साफ हो जाना यह बताता है कि मतदाता केजरीवाल से खुश नहीं है। अच्छा होता कि केजरीवाल पालिका चुनाव की हार को स्वीकार करते और अगले ढाई साल में मतदाताओं की समस्याओं को दूर करने का संकल्प लेते। केजरीवाल माने या नहीं लेकिन मतपत्र से चुनाव होने पर भी यही परिणाम सामने आते। केजरीवाल स्वीकार करें या नहीं लेकिन दिल्ली के मतदाताओं को यह लगता है कि केजरीवाल ने पिछले ढाई साल में केंद्र की सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लडऩे के अलावा कोई काम नहीं किया। केजरीवाल ने जब विधानसभा का चुनाव लड़ा, तब उन्हें यह पता होना चाहिए था कि दिल्ली देश की राजधानी है और यहां के सीएम के अधिकार सीमित हैं। इस सीमित अधिकार में ही केजरीवाल को अपनी सरकार की कार्यकुशलता दिखानी चाहिए थी, लेकिन केजरीवाल लगातार अपने अधिकारों को लेकर ही लड़ते रहे। यही वजह है कि मतदाताओं को यह लगता है कि केजरीवाल की वजह से दिल्ली को नुकसान हो रहा है। केजरीवाल यदि अपनी स्थिति को सुधारना चाहते हैं तो उन्हें सीमित अधिकारों में काम करके दिखाना होगा। राजनीति में प्रतिद्वंदी की आलोचना की जाती है, लेकिन यदि स्वयं की विफलता की जिम्मेदारी भी प्रतिद्वंदी पर डाल दी जाए तो फिर केजरीवाल को हार का ही मुंह देखना पड़ेगा। क्या आप के पार्षद इस्तीफा देंगे? केजरीवाल की टोली ने आरोप लगाया है कि चुनाव में ईवीएम में गड़बड़ी की वजह से भाजपा की जीत हुई है। यानी चुनाव में आप के जो 45 उम्मीदवार जीते हैं। वह भी गड़बड़ी की वजह से ही जीते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आप के नवनिर्वाचित 43 पार्षद इस्तीफा देंगे?
(एस.पी.मित्तल) (26-04-17)
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