Tuesday 25 April 2017

#2501
अब और भी धार्मिक चिह्न हटाए जा सकते हैं।
तभी बनेगा अजमेर स्मार्ट। कलेक्टर गोयल कर सकते हैं पहल।
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अजमेर के नागफणी मोड़ से एक धार्मिक चिह्न को हटाने के लिए मुस्लिम समाज के जिन लोगों ने पहल की वे सब शाबाशी और बधाई के पात्र हैं। इससे पहले पुष्कर रोड पर करंट वाले बालाजी के मंदिर को भी आम सहमति से हटाया गया। नगर निगम और जिला प्रशासन अजमेर को इन दिनों स्मार्ट सिटी बनाने का काम युद्ध स्तर पर कर रहा है। इसी के अंतर्गत लव कुश उद्यान से लेकर आना सागर पुलिस चौकी तक के एक किलोमीटर लंबे मार्ग को 60 फीट चौड़ा किया जा रहा है। अजमेर शहर में ऐसे अनेक मार्ग हैं जिन पर हिंदू और मुस्लिम धर्म के चिह्न बने हुए हैं। कई चिह्न तो बीच सड़क पर हैं। ऐसे धार्मिक चिह्नों की वजह से दिन में कई बार जाम लग जाता है, साथ ही धार्मिक चिह्नों को जो सम्मान मिलना चाहिए, वह भी नहीं मिलता। कई स्थानों पर तो इन धार्मिक चिह्नों की वजह से दुर्घटनाएं भी हो रही हैं। अब चूंकि पुष्कर रोड पर धार्मिक चिह्नों को हटाने का काम हो चुका है। इसलिए इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। इसे अजमेर का सौभाग्य ही कहा जाएगा कि यहां एक ओर पुष्कर तीर्थ है, तो दूसरी ओर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह। जब पुष्कर में कार्तिक स्नान और दरगाह में सालाना उर्स होता है तो लाखों श्रद्धालु और जायरीन आते हैं। यानी स्मार्ट सिटी का लाभ श्रद्धालुओं के साथ-साथ जायरीन लोगों को भी मिलेगा। धार्मिक चिह्नों को हटाने की पहल दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों को भी करनी चाहिए। कई बार देखा गया है कि दो पक्षों में समझौता हो जाने के बाद भी राजनेता मामले को बिगाड़ देते हैं। राजनीतिक स्वार्थों की वजह से बना बनाया मामला बिगड़ जाता है। यह माना कि इस समय प्रदेश में भाजपा का शासन है, इसलिए अजमेर में भी विकास योजनाओं में भाजपा के नेता ही सक्रिय हैं। लेकिन विकास के कार्यों में कांग्रेस और अन्य दलों को भी सहयोग करना चाहिए। पिछले दिनों ही ख्वाजा साहब का 805वां सालाना उर्स संपन्न हुआ है। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने उसमें अपनी ओर से चादर पेश करवाई। सभी नेताओं ने अपने संदेशों में कहा की ख्वाजा साहब ने भाईचारे का जो पैगाम दिया, उस पर अमल होना चाहिए। सवाल उठता है कि जब सभी नेता ख्वाजा साहब के पैगाम को वर्तमान परिस्थितियों में उपयोगी मानते हैं तो फिर अजमेर में धार्मिक चिह्नों को क्यों नहीं हटाया जा सकता? अजमेर के जागरुक लोग धार्मिक चिह्नों को बीच रास्तों से हटाकर पूरे देश में मिशाल प्रस्तुत कर सकते हैं। जिला प्रशासन और भाजपा के जो नेता सत्ता की कुर्सी पर बैठे हैं, उनकी यह जिम्मेदारी है कि धार्मिक चिह्नों को हटाने में कोई भेदभाव नहीं हो। यह माना कि हिंदू धर्म के चिह्न आसानी से हटाए जा सकते हैं, लेकिन मुस्लिम धर्म के चिह्न भी सहमति से ही हटाए जाएं। 
कलेक्टर गोयल कर सकते हैं पहल:
अजमेर शहर के यातायात में बाधक बने धार्मिक चिह्नों को हटाने में जिला कलेक्टर गौरव गोयल सकारात्मक पहल कर सकते हैं। पिछले एक वर्ष में कलेक्टर गोयल ने समाज के सभी वर्गों का भरोसा जीता है। गत वर्ष पुष्कर मेले में अच्छे इंतजाम कर ब्रह्मा जी का आशीर्वाद और हाल ही में उर्स में बेहतरीन इंतजाम कर ख्वाजा साहब का करम कलेक्टर ने हासिल किया है। भाजपा नेताओं का भी कलेक्टर पर भरोसा है। भाजपा के विधायकों में भले ही आपसी सहमति न हो, लेकिन कलेक्ट गोयल के नाम पर विधायकों के बीच सहमति बनी हुई है। ऐसे माहौल में कलेक्टर गोयल सभी पक्षों की एक संयुक्त बैठक बुला कर धार्मिक चिह्नों को हटाने पर सहमति बनवा सकते हैं।
एस.पी.मित्तल) (25-04-17)
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