Wednesday 15 July 2015

आसान नहीं है मंदबुद्धि के बच्चों को पालना। पर शुभदा कर रही हैं मेहनत


(spmittal.blogspot.in)

आप अपने घर पहुंचे पर आपकी तीन-चार साल की बच्ची कोई उछल कूद  न करें। आप हंसें तो वह मुंह मोड़ ले, तो बताएं आपके दिल और मन पर क्या बीतेगी? आंखों में आंसू लाने वाला ऐसा ही दृश्य मैंने 15 जुलाई को अजमेर के बी.के.कौल नगर स्थित 'शुभदाÓ संस्थान में देखा। इस संस्थान में मंदबुद्धि के कोई एक सौ बच्चे आते हैं। 15 जुलाई को स्पिक मैके की नृत्यांगना शालिनी शर्मा के समारोह में मैं भी उपस्थित रहा। जब तक कोई बच्चा हरकत न करें, तब तक यह कहा ही नहीं जा सकता कि ये बच्चे मंदबुद्धि के हैं। कुछ बच्चे तो वाकई भगवान का रूप नजर आ रहे थे, तभी एक अधेड़ से व्यक्ति ने आकर एक तीन-चार वर्ष की बच्ची को बड़े प्यार से दुलारा, लेकिन वह बच्ची चुपचाप बैठी रही। उसे इस बात का अहसास ही नहीं था कि दुलार करने वाला उसका पिता है। मैंने देखा कि उस पिता की आंखों में आंसू थे, लेकिन आंसुओं को आंखों में रखकर ही वह पिता लौट गया। संस्थान  के कॉर्डिनेटर अपूर्व ने मुझे बताया कि जाने वाला व्यक्ति इस बच्ची का पिता है। आप कल्पना कर सकते हैं कि उस पिता की क्या मन स्थिति रही होगी। मैंने देखा कि थोड़ी ही देर में वही बच्ची इधर से उधर उछल-कूद कर रही थी। वह क्या कर रही है, इसकी सुध उस बच्ची को भी नहीं थी।
कॉर्डिनेटर अपूर्व ने बताया कि जो दस वर्षीय बच्चा गुमसुम बैठा हुआ है, वह स्वस्थ जन्मा था। जब वह दो वर्ष का था, तब उसे डायरिया हुआ था। परिजन ने अजमेर के जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में भर्ती कराया। इस बच्चे के पास वाले पलंग पर एक 15 वर्षीय युवक भी भर्ती था। लापरवाही की वजह से जो इंजेक्शन 15 वर्ष के युवक को लगना था, वह इस दो वर्ष के मासूम बच्चे के लग गया। इंजेक्शन के बाद से ही बच्चे ने अपनी स्मरण शक्तियां खो दी। आज यह दस वर्ष का बच्चा अब हमारे संस्थान में आता है। अपूर्व ने बताया कि ऐसे कई बच्चे हैं, जिनका जन्म तो स्वस्थ बच्चे के रूप में हुआ था, लेकिन चिकित्सकीय की लापरवाही की वजह से मस्तिष्क में विकलांगता आ गई। सुभदा संस्थान में चार वर्ष से लेकर 37 वर्ष तक के बच्चे कुछ सीखने के लिए आते हैं। सीख पाते है या नहीं यह तो सिर्फ ईश्वर पर निर्भर है, लेकिन ऐसे बच्चों को दिनभर संस्थान में रखा जाता है। मैंने देखा कि कुछ बच्चे एक कपड़े की लीरी से कुर्सी से बंधे हुए थे। मुझे बताया गया कि कुर्सी पर बैठाने के बाद कपड़े की लीरी से बंधने पर इन बच्चों को लगता है कि अब वे इस कुर्सी से उठ नहीं सकते थे। कुछ दिनों बाद कुर्सी पर बैठाने के बाद कपड़े की लीरी से बंाधा भी नहीं जाता। उनकी बुद्धि में यह बात आ जाती है कि कुर्सी पर बैठने के बाद उठना नहीं है।
लड़कों को तो जैसे तैसे पाल लिया जाता है, लेकिन मंदबुद्धि वाली लड़कियों को पालना तो बेहद ही कठिन होता है, अनेक बच्चियों को तो मूत्र त्यागने की भी सुध नहीं होती है। ऐसे में संस्थान में इस तरह सिखाया जाता है ताकि बच्चियां शौचालय में जाकर मूत्र त्याग सके। जब लड़कियां बड़ी होती है, तो ऐसी लड़कियों की परेशानी तो और बढ़ जाती है। जो अभिभावक समर्थ होते हैं, वे तो किसी तरह मंदबुद्धि वाले बच्चों को पाल लेते हैं, लेकिन गरीब अभिभावकों को ऐसे बच्चों को पालने में बेहद परेशानी होती है। शुभदा संस्थान न्यूनतम एक बच्चे के 650 रुपए प्रतिमाह फीस लेता है, लेकिन कई अभिभावक ऐसे भी हैं जो यह 650 रुपए देने में भी असमर्थ है। यह बात अलग है कि मंदबुद्धि वाले बच्चों को दिनभर रखने पर एक बच्चे पर करीब तीन हजार रुपए खर्च होते हैं। शुभदा को सरकार से कोई आर्थिक सहायता भी नहीं मिलती है। मानवीय संवेदनाओं के चलते सामाजिक महिला कार्यकर्ता साधना ने वर्ष 2005 में इस संस्था की शुरुआत की थी और अब उनके पुत्र अपूर्व और गौरव इस संस्थान को अपनी माताजी के निर्देशन में चला रहे हैं। चूंकि सरकार से कोई सहायता नहीं मिलती, इसलिए शहर के प्रमुख व्यवसाइयों और मानवीय दृष्टिकोण रखने वालों से आर्थिक सहयोग लिया जाता है। ऐसे लोगों में डॉ. वाई.एस.झाला, हेमंत शारदा, रवि तोषनीवाल, रमाकांत बालदी, राजेन्द्र गांधी, डॉ. प्रकाश शारदा, श्रीमती प्रतिभा गहलोत आदि शामिल हैं। अपूर्व और गौरव ने बताया कि कुछ संवेदनशील व्यक्तियों ने तो मंदबुद्धि वाले बच्चों को गोद भी ले रखा है। यानि ऐसे बच्चों का खर्च यह व्यक्ति वहन करते हैं। फिलहाल शुभदा एक किराए के भवन में चल रहा है। संचालकों को उम्मीद है कि अजमेर विकास प्राधिकरण मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए रियायती दर पर भूखंड का आवंटन करेगा। यदि बड़ा भवन और सुविधाएं हो तो मंदबुद्धि वाले बच्चों की संख्या को और बढ़ाया जा सकता है। फिलहाल बच्चों को सुबह उनके घर से लाया जाता है और शाम को वापस छोड़ा जाता है। बच्चों की समझ को ध्यान में रखते हुए छोटा मोटा काम भी सिखाया जाता है। बच्चों की उम्र और शरीर के अनुरूप उन्हें विभिन्न प्रकार से थैरेपी भी दी जाती है। इसके लिए विशेषज्ञों को संस्थान में बुलाया जाता है।
15 जुलाई को म्यूजिकल थैरेपी के अंतर्गत ही स्पिक मैके की ओर से मशहूर कत्थक नृत्यांगना शालिनी शर्मा की प्रस्तुति दिलवाई गई। विशेषज्ञों के अनुसार मंदबुद्धि वाले बच्चे म्यूजिकल थैरेपी को शीघ्रता और आसानी से ग्रहण करते हैं। मैंने देखा कि जब शालिनी अपने शरीर और घूंघरुओं की आवाज पर नृत्य कर रही थी, तब अनेक बच्चे बड़ी गंभीरता के साथ देख रहे थे। इस अवसर पर स्पिक मैके के जिला प्रभारी आनंद अग्रवाल, समाज सेवी सोमरत्न आर्य, दैनिक भास्कर से जुड़े मायएफएम के आरजे राहुल भी उपस्थित थे। इस अवसर पर आरजे राहुल का जन्मदिन भी केक काटकर मनाया गया।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511

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