Thursday 30 July 2015

क्या कलाम के शव से खास हो गया आतंकी याकूब का शव।


(spmittal.blogspot.in)

ऐसे न्यूज चैनल आखिर क्या चाहते हैं इस देश से।
इसे एक संयोग ही कहा जाएगा कि जिस 30 जुलाई को देश के पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के शव को सुपर्दु-ए-खाक किया गया, उसी 30 जुलाई को 257 हत्याओं के आतंकी याकूब मेमन का शव भी सुपुर्द-ए-खाक हुआ। लेकिन कुछ न्यूज चैनलों पर कलाम से ज्यादा याकूब के शव को अहमियत दी गई। ऐसे प्रसारणों को देख कर लगा कि याकूब कोई बहुत बड़ा व्यक्ति है। यदि याकूब को नहीं दिखाया तो ऐसे चैनलों की टीआरपी कम हो जाएगी। हालांकि जब याकूब के शव के बारे में चैनल वाले बता रहे थे, तब रामेश्वरम् में कलाम का शव भी रखा हुआ था। इधर रामेश्वरम में कलाम की शव यात्रा निकल रही थी, तो उधर चैनल वाले याकूब के फांसी की घटना को आंखों देखा हाल सुनाने में व्यस्त थे। चैनलों के स्टूडियो में एंकर के साथ अक्लमंद प्रतिनिधि बैठे थे, तो वहीं चैनलों के रिपोर्टर नागपुर जेल, नागपुर हवाई अड्डे, मुम्बई हवाई अड्डा, मुम्बई में याकूब के घर और कब्रिस्तान आदि से लाइव जानकारी दे रहे थे। क्या इन चैनल वालों से यह पूछा जा सकता है कि जिस कलाम ने परमाणु के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाया और पांच वर्ष तक राष्ट्रपति रहे के शव के मुकाबले में याकूब के शव को क्यों अहमियत दी गई? माना कि भारत में लोकतंत्र है और चैनल वाले अपने नजरिए से कुछ भी दिखा सकते हैं, लेकिन क्या इन चैनलों की देश के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है? इन चैनलवालों ने शशि थरुर और दिग्विजय सिंह के जहरीले कथन को दिखा कर आग में घी डालने का काम किया। खुफिया एजेंसियों की सूचनाओं के अनुरूप जब सरकार सतर्कता और गोपनीयता बरत रही थी, तब इन चैनल वालों को देश का माहौल खराब करने का अधिकार किसने दिया? क्या शशि थरुर और दिग्विजय सिंह के भड़काऊ बयानों पर लाइव बहस करवाना जरूरी था? हम सब जानते हैं कि शशि थरुर अपनी तीसरी-चौथी पत्नी की हत्या के आरोपों से घिरे हुए हैं तथा दिग्विजय सिंह तो कांग्रेस का भट्टा बैठाने में लगे हुए हैं। क्या नेताओं के बयान कोई मायने रखते हैं। ऐसा लगा कि इन दो नेताओं के बयान की आड़ में कुछ चैनल हमारे देश की सर्वोच्च अदालत और निर्वाचित सरकार को दोषी मान रहे हैं। याकूब की फांसी के प्रकरण में इससे ज्यादा और क्या हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट पूरी रात सुनवाई करता रहा। 257 निर्दोष लोगों की हत्या के आरोपी को बचाने के लिए देश की कई प्रमुख हस्तियां सामने आ गईं। प्रशांत भूषण जैसे वकील रात 12 बजे देश के चीफ जस्टिस के निवास पर पहुंच गए। पूरी रात ऐसा हुआ, जैसे देश पर भीषण संकट आ गया हो। जो लोग वर्षों से मामूली अपराधों में जेलों में सड़ रहे हैं,उनके बारे में प्रशांत भूषण जैसे वकीलों ने दिन में भी चिंता नहीं दिखाई। कोई माने या नहीं, लेकिन लोकतंत्र की वजह से देश को बहुत बड़ा खतरा हो गया। मानवाधिकारों की आड़ में आतंकियों तक की पैरवी की जाती है, लेकिन आतंकियों के हाथों मारे जाने वाले निर्दोष लोगों और जवानों की प्रति ऐसी साहनुभूति नहीं दिखाई जाती। देश का माहौल खराब करने वाले ऐसे चैनलों पर कुछ तो कार्यवाही होनी ही चाहिए। लोकतंत्र का यह मतलब यह नहीं कि आप अपने देश के लिए खतरा बन जाएं। ऐसे चैनलों की अनदेखी कर आम दर्शक भी सहयोग कर सकते हैं।
(एस.पी. मित्तल)M-0982907151

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