Friday 31 July 2015

आखिर क्यों नहीं सुधर रहे गुरुओं के शिष्य।


(spmittal.blogspot.in)

सिर्फ वंदना से ही काम नहीं चलेगा।
31 जुलाई को गुरु पूर्णिमा अजमेर सहित देशभर में श्रद्धा और पूजा अर्चना के साथ मनाई गई। करोड़ों शिष्यों ने अपने-अपने गुरुओं के चरण स्पर्श कर पूजा भी की। जो शिष्य उपस्थित नहीं हो सके, उन्होंने दक्षिणा आदि भेज कर गुरुजी का अशीर्वाद लिया। अनेक लोगों ने सोशल मीडिया पर ही गुरु के महत्त्व पर उपदेश देकर काम चलाया। वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर आदि देखकर तो लगा कि शिष्य बहुत आज्ञाकारी हो गए हैं। गुरुओं ने भी अपने महत्त्व को देखते हुए शानदार आयोजन किए। किसी ने सुख शांति के लिए यंत्र बांटे तो किसी गुरु ने मंत्र दिया। गुरु पूर्णिमा पर जितने शिष्यों ने अपनी श्रद्धा प्रकट की, उससे प्रतीत होता है कि अब घर-परिवार में वृद्धों का सम्मान होगा तथा कोई वृद्ध अनाथ आश्रम में नहीं रहेगा। जो मम्पी-डैडी अपने बच्चों को पांच हजार रुपए की जींस की पेंट दिलाते हैं, वे अपने पिता के लिए पांच सौ रुपए का कुर्ता-पायजामा तथा माता के लिए दो सौ रुपए की साड़ी भी ले आएंगे। जो शिष्य रोजाना शराब पीते हैं वे गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु का आशीर्वाद लेने के बाद शराब नहीं पीएंगे। गुरु और शिष्य दोनों को पता है कि शराब के सेवन से परिवार में शांति नहीं रहती है। सबसे ज्यादा पत्नी और जवान होती बिटिया दु:खी रहती है। शायद ही कोई पत्नी और बेटी होगी जो अपने पति/पिता के शराब पीने से खुश हो। गुरु पूर्णिमा पर गुरुओं ने इतना तो आशीर्वाद दिया ही होगा कि उनका शिष्य शराब और मांस का सेवन छोड़ दें। जो शिष्य रोजाना पांच रुपए से लेकर पांच सौ रुपए तक के तम्बाकू वाले गुटखे खाते हैं, उन्होंने भी गुटखे न खाने का संकल्प लिया होगा। जो युवा अपने आस-पड़ौस में लड़कियों को छेडऩे का काम करते हैं, उन्होंने भी बुरा कार्य नहीं करने का वायदा अपने गुरु के समक्ष किया होगा। सरकारी कर्मचारी, अधिकारी आदि को गुरुओंं ने शपथ दिलवाई होगी कि अब रिश्वत नहीं लेंगे। सरकारी डॉक्टर ऑपरेशन टेबल पर मरीज के रिश्तेदार से जबरन वसूली नहीं करेगा। यदि शिष्यों ने ये सब बुराइयों से इंकार कर आशीर्वाद लिया है, तभी गुरु पूर्णिमा का महत्त्व है। गुरु पूर्णिमा के समारोहों में आज महिलाओं की संख्या भी अधिक थी। अधिक उम्र वाली महिलाओं ने यह संकल्प लिया होगा कि वे अपनी बहू को बेटी मानेगी तथा बहू ने भी सास को मां मानने का वायदा अपने गुरु के समक्ष किया होगा। आप कल्पना करें कि यदि गुरु की ताकत से उक्त बुराइयां खत्म हो जाएं तो घर-परिवार कैसा सुंदर होगा। ऐसा नहीं हो सकता कि कोई शिष्य दिन में तो गुरु का आशीर्वाद ले और शाम को शराब पीकर अपने घर पहुंच जाए। यदि किसी शराबी की पत्नी को साक्षात् भगवान मिल जाएं और मांगने के लिए कहे तो वह यहीं मांगेगी कि उसका पति शराब छोड़ दे। मेरा ऐसा मानना है कि गुरु वही कहलाने का हकदार है, जो अपने शिष्य को बुराइयों से बचा सके। मोटी रकम लेकर यंत्र और मंत्र देने से शिष्य का भला नहीं हो सकता। जिन परिवारों में माता-पिता का सम्मान नहीं हो रहा हैं, उनकी मदद तो गुरु क्या भगवान भी नहीं कर सकता है और जो लोग माता-पिता का सम्मान कर रहे हैं तो भगवान के पास भी जाने की जरुरत नहीं है।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511

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