(spmittal.blogspot.in)
सवाल यह नहीं है कि कांग्रेस के शासन में भाजपा ने करीब एक वर्ष तक संसद नहीं चलने दी और इसलिए अब संसद को नहीं चलने देने का अधिकार कांग्रेस का भी बनता है। इस अधिकार के चलते ही 21 जुलाई को न लोकसभा चली, न राज्यसभा। असल सवाल तो वह है कि आखिर एक भगोड़े ललित मोदी के खातिर दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के दोनों सदन ठप्प पड़े हैं। इधर देश की सभी राजनीतिक पार्टियां उलझी हुई हैं, उधर ललित मोदी लंदन में मजे ले रहा है। अब मोदी को सुषमा स्वराज से मतलब न वसुंधरा राजे से। होना तो यही चाहिए कि संसद में चर्चा हो, लेकिन चर्चा के संवैधानिक तरीके को लेकर पक्ष-विपक्ष आमने-सामने हैं। चूंकि लोकसभा में विपक्ष अल्पमत में है, इसलिए 21 जुलाई को सुबह हंगामा कर लोकसभा स्थगित करवा दी गई, जबकि राज्यसभा में सत्ता पक्ष अल्पमत है, इसलिए विपक्ष नियम 267 का हवाला देकर बहस करवाना चाहता है। इस नियम में बहस के बाद वोटिंग भी होनी है। स्वाभाविक है कि राज्यसभा में वोटिंग में सत्ता पक्ष हार जाएगा, इसलिए सत्ता पक्ष को नियम 267 में बहस स्वीकार नहीं है। रही सही कसर समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल ने पूरी कर दी। अग्रवाल ने भी कांग्रेस के साथ सुर मिलाते हुए पहले सुषमा स्वराज के इस्तीफे की मांग रख दी। हालांकि मीडिया में कहा गया था कि सपा अब भाजपा के साथ है, लेकिन सपा कब भाजपा का साथ दे दे, यह नहीं कहा जा सकता। देखना है कि भगोड़े ललित मोदी को लेकर संसद कब तक ठप रहती है।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511
No comments:
Post a Comment