Saturday 18 July 2015

क्या अजमेर पुलिस को सुधार पाएंगे विकास कुमार


(spmittal.blogspot.in)

अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अजमेर के एसपी के पद पर विकास कुमार नियुक्त हैं। अपनी नियुक्ति के करीब एक माह में एसपी ने अजमेर पुलिस को सुधारने के अनेक प्रयोग किए हैं। इन प्रयोगों से ही अब शहरवासियों को सड़कों पर पुलिस नजर आने लगी है। रात्रि के समय भी गश्त प्रभावी होना बताई जा रही है। यह वही अजमेर पुलिस है जिसके थानाधिकारी अपने एसपी को मंथली राशि देने के लिए बदनाम रही है। जिन लोगों का काम थाने पर पड़ा है उन्हें इस बात का अनुभव है कि रिश्वत दिए बिना कोई राहत नहीं मिल पाई है। अजमेर पुलिस की लूटखसोट की आदतों पर विकास कुमार ने कितना अंकुश लगाया है। यह आने वाला समय ही बताएगा। अभी भी पुलिस थानों पर पुरानी आदतों वाले इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर बैठे हुए हैं। इसे विकास कुमार की लाचारी ही कहा जाएगा कि जिन इंस्पेक्टरों की पदोन्नति डीएसपी के पद पर हो गई है वे भी थानों पर ही जमे हुए हैं। ऐसे पुरानी आदतों वाले थानाधिकारियों को हटाने के लिए ऊपर तक आग्रह किया गया है लेकिन सफलता नहीं मिल पाई है। जब तक पुरानी आदतों वाले थानाधिकारियों को अजमेर से नहीं हटाया जाएगा तब तक विकास कुमार अपनी रणनीति को सफल नहीं कर सकते हैं। यह माना कि एसपी के डर से जुए, सट्टे का कारोबार फिलहाल बंद हो गया है। इसी प्रकार रात को 8 बजे बाद दुकानों पर शराब की बिक्री भी नहीं हो रही है लेकिन यह कार्यवाही ठेकेदारों और आबकारी विभाग के अधिकारियों को रास नहीं आ रही है। इसीलिए एसपी के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है। आबकारी अधिकारियों के ईशारे पर ही कुछ ठेकेदारों ने एसपी के खिलाफ ज्ञापन भी दिया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस ज्ञापन को दिलवाने में पुरानी आदतों वाले थानाधिकारियों का भी हाथ है। असल में रात को 8 बजे बाद लाइसेंसधारी दुकान के पिछले दरवाजे में शराब की बिक्री होती रही है। इसकी एवज में संबंधित थाने की पुलिस प्रतिमाह राशि वसूलती है। इधर सट्टा बंद तो उधर रात 8 बजे बाद शराब की अवैध बिक्री बंद। ऐसे में अजमेर पुलिस के जवानों और अधिकारियों का दम घुटने लगा है।
एसपी ने सुधार की जो पहल की है उससे आम नागरिक खासकर व्यापारी वर्ग खुश है। एसपी को चाहिए कि शहर के प्रमुख बाजारों के प्रतिनिधियों से सीधा संवाद करे। व्यापारी अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस को हरसंभव सहयोग करने को तैयार है। मदार गेट के व्यापारियों ने तो अपने खर्चे से बाजार में सीसी टीवी कैमरे लगाए हैं लेकिन इन कैमरों की रिकॉर्डिंग का संग्रहण सही प्रकार से नहीं हो रहा है। एसपी को चाहिए कि रिकॉर्डिंग की व्यवस्था संबंधित पुलिस स्टेशन अथवा पुलिस चौकी पर की जाए। यदि प्रमुख बाजारों में सीसी टीवी कैमरे लगते हैं और पुलिस रिकॉर्डिंग की निगरानी करती है तो आपराधिक तत्वों पर बहुत जल्द अंकुश लग सकेगा। इसके साथ ही पुलिस की करतूत को भी एसपी अपनी आंखों से देख सकेंगे। सीसी टीवी कैमरे अपने खर्चे पर लगाने के लिए व्यापारी तैयार हैं। इस मामले में एसपी को आगे बढ़कर पहल करनी चाहिए। थाने के अंदर भी कैमरे लगने चाहिए ताकि एसपी को हर समय जानकारी मिलती रहे। एसपी को यह पता होना चाहिए कि थानों पर कौन-कौन लोग आ जा रहे हैं। जहां तक पुलिस महकमे में राजनैतिक हस्तक्षेप का सवाल है तो इस सच्चाई को विकास कुमार भी स्वीकार करते होंगे। एएसआई की नियुक्ति के लिए भी मंत्री तक सिफारिश करते हैं। मंत्रियों के दखल से ही अजमेर में भी कई थानों पर सब इंस्पेक्टर ही थानाधिकारी बने बैठे हैं। जबकि ऐसे थानों पर इंस्पेक्टर की नियुक्ति होनी चाहिए। पिछले दिनों जिले के ब्यावर उपखंड में आयोजित एक समारोह में गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने एसपी की तारीफ तो की लेकिन थानाधिकारियों में फेरबदल करने का भरोसा नहीं दिलाया। इसे अजमेर के साथ मजाक ही कहा जाएगा कि कुछ थानों पर डीएसपी बने इंस्पेक्टर और कुछ में सब इंस्पेक्टर नियुक्त है। यदि जिले भर के थानों पर नियमों के तहत थानाधिकारियों की नियुक्ति हो जाए तो एसपी को काम करने में सुविधा होगी।
यूं तो एसपी का पत्रकारों के साथ अच्छा संवाद है, लेकिन एसपी ने खबरों पर जो अंकुश लगाया है वह नहीं होना चाहिए। आमतौर पर पत्रकार थानों पर फोन कर खबरें लेते है, लेकिन अब एसपी के आदेश से थानों से खबरें मिलना बंद हो गई है। इसकी एवज में रोजाना पुलिस की ओर से प्रेस नोट निकाला जाता है। जब विकास कुमार पूरी ईमानदारी के साथ काम कर रहे हैं तो फिर उन्हें घबराने की भी जरूरत नहीं है। बल्कि छोटी-छोटी खबरों के छपने से एसपी को ही मदद मिलेगी। फिलहाल एसपी के निर्देशों की आड़ में पुलिस की अनेक करतूत छूप रही है। हर थानाधिकारी खबर देने के लिए एसपी को कसूरवार ठहरा रहे है। अच्छा हो कि पहले की तरह पत्रकार थानों से ही खबर लेते रहे। जितनी खबरे छपेगी उतना एसपी अपडेट रहेंगे। खबरों के नियंत्रण से एसपी को कोई मदद नहीं मिलने वाली है। टीवी चैनल वाले शाम तक प्रेस नोट का इंतजार नहीं कर सकते। ऐसे में चैनलों को घटना की जानकारी थानाधिकारी से ही लेनी होती है। उम्मीद है कि एसपी पत्रकारों की इस परेशानी को समझेंगे। यह माना कि कई बार थानाधिकारी खबरों को प्लान्ट करते है जो खबरें प्लान्ट होगी उन्हें विकास कुमार एक मिनट में समझ लेंगे। सवाल ईमानदार और बेईमान का है। जब कोई ईमानदार है तो उसे फिर खबरों से डरना भी नहीं चाहिए। जो अखबार गलत खबर छापेगा उसकी विश्वसनीयता अपने आप कम हो जाएगी।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511

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