Saturday 25 July 2015

क्या सेना के संरक्षण में चल रहा है नसीराबाद का अवैध बूचडख़ाना


(spmittal.blogspot.in)

भारतीय थल सेना की नसीराबाद छावनी न केवल ऐतिहासिक है बल्कि सामरिक दृष्टि से भी इस छावनी का देश में खास स्थान है। यदि ऐसी छावनी में कोई गैरकानूनी काम हो तो सवाल उठता है कि इसका जिम्मेदार कौन होगा? देश में जो शासन व्यवस्था है उसके अन्तर्गत कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सबसे पहले पुलिस प्रशासन और फिर सीआरपीएफ, बीएसएफ जैसे अद्र्धसैनिक बल काम आते हैं और जब यह बल भी फैल हो जाता है तो फिर सेना का उपयोग होता है। देश के सवा सौ करोड़ लोगों का यह भरोसा है कि हमारी सेना कभी भी असहाय नहीं हो। दुश्मन चाहे कितना भी मजबूत हो लेकिन हमारी सेना के सामने दुश्मन को मात खानी ही पड़ेगी। सेवा की ऐसी मजबूत स्थिति के बाद भी यदि छावनी क्षेत्र में अवैध रूप से बूचडख़ाना संचालित हो तो फिर जनता के भरोसे का क्या होगा। सवाल यह नहीं है कि इस अवैध बूचडख़ाने के विरोध में नसीराबाद के लोग पिछले 20 दिनों से धरना प्रदर्शन कर रहे है। सवाल 24 जुलाई के नसीराबाद के ऐतिहासिक बंद का भी नहीं है। सवाल तो यह है कि आखिर सेना के छावनी क्षेत्र में अवैध काम कैसे हो रहा है। क्या सेना को अवैध काम रोकने के लिए अजमेर पुलिस की जरूरत है? हम सब जानते है कि सेना के वर्जित क्षेत्र में आम आदमी प्रवेश नहीं कर सकता। सेना के अपने कायदे-कानून बने हुए है जिसके द्वारा ही सेना का संचालन होता है। सेना यदि अवैध बूचडख़ाने को हटाएगी तो नसीराबाद के सिविल क्षेत्र में कोई प्रतिकूल प्रतिक्रिया होना संभव नहीं है क्योंकि इस बूचडख़ाने को बंद करने के लिए न्यायालय ने दस वर्ष पहले ही आदेश दे दिए थे। जब छावनी क्षेत्र में आम नागरिक कोई काम करता है तो उसे भी सेना के नियमों का पालन करना होता है। जब नसीराबाद के सिविल क्षेत्र में सेना अपने नियम लागू कर सकती है तो फिर अवैध बूचडख़ाने को अपने स्तर पर बंद करवाने में सेना के अधिकारियों को झिझक क्यों है। क्या सेना को भी किसी से डर लगता है? सेना यदि अपने स्तर पर पहल करेगी तो फिर जिला प्रशासन को भी उन लोगों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था के लिए मजबूर होना पड़ेगा जो इस बूचडख़ाने से अपने घर-परिवार को पाल रहे है। बताया जा रहा है कि इस बूचडख़ाने में रोजाना एक हजार से भी ज्यादा पशु कटते हैं और फिर इनका मांस देश के कई शहरों में बिक्री के लिए जाता है। सबसे ज्यादा भैंस और पाडे की किस्म वाले जानवर कटते हैं। नसीराबाद के लोगों की यह त्रासदी है कि कटने वाले पशुओं का खून नालियों में बहता देखना पड़ता है। इतना ही नहीं मांस निकालने के बाद जानवर के जो अवशेष बच जाते हैं उन्हें भी इधर-उधर फेंक दिया जाता है। मानो नसीराबाद न होकर पूरा शहर बूचडख़ाना बन गया है। खौफनाक स्थिति तो तब होती है जब आवारा कुत्ते पशुओं के अवशेष को खींचकर बाजारों में ले आते हैं। इतना ही नहीं चील, कौए, गिद्ध जैसे पक्षी भी मांस के लोथड़ों को इधर-उधर ले जाते हैं। नसीराबाद के लोग इस बूचडख़ाने के कारण कितना नारकीय जीवन जी रहे हैं इसकी हकीकत नसीराबाद आकर ही देखी जा सकती है।
जाट निभाए प्रभावी भूमिका
नसीराबाद और अजमेर के भाजपा के सांसद सांवरलाल जाट इस समय केन्द्र में जल संसाधन राज्यमंत्री है। जाट के मंत्रालय के पास ही गंगा सफाई अभियान का काम है। जब जाट का मंत्रालय गंगा की सफाई कर सकता है तो क्या जाट अपने निर्वाचन क्षेत्र के नसीराबाद कस्बे के लोगों को नारकीय जीवन से मुक्ति नहीं दिलवा सकते। जाट आज इस स्थिति में है कि वे सेना और जिला प्रशासन के बीच प्रभावी भूमिका निभाकर बूचडख़ाने को बंद करवा सकते हैं। यदि बूचडख़ाने को चलाने वाले मुस्लिम परिवारों के जीवनयापन के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी है तो यह जिम्मेदारी भी जाट की ही है। सरकार चाहे तो नसीराबाद से बाहर दूरदराज के इलाके में बूचडख़ाने की अनुमति दे सकती है। जाट ने 25 जुलाई को नसीराबाद के डाक बंगले में छावनी के स्टेशन कमांडर और उपखंड अधिकारियों के साथ एक बैठक भी की है। उम्मीद है कि इस बार जाट कोई प्रभावी भूमिका निभाएंगे।
मांस भी है हानिकारक
चूंकि छावनी क्षेत्र में बूचडख़ाना अवैध रूप से संचालित होता है इसलिए मौत के घाट उतारे जाने से पहले पशुओं की मेडिकल जांच ही नहीं होती है। पशुओं को दर्दनाक तरीके से काटा जाता है। समझ में नहीं आता कि आखिर इस बूचडख़ाने पर देश का कानून क्यों नहीं लागू होता और वह भी तब जब हमारी छावनी में अवैध काम हो रहा हो।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511

No comments:

Post a Comment