ए.आर.रहमान ने भी डाला आग में घी।
संसद का शीतकालीन सत्र 26 नवम्बर से शुरू हो रहा है, लेकिन नई दिल्ली में जो हालात दिख रहे है उससे प्रतीत होता है कि यह सत्र असहिष्णुता की भेंट चढ़ जाएगा। पिछला मानसून सत्र भी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे के इस्तीफे की मांग को लेकर हंगामे की भेंट चढ़ गया था। हालांकि 25 नवम्बर को पीएम नरेन्द्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर समझाने का प्रयास किया है,लेकिन असहिष्णुता राजनीतिक नजरिए से दिखाई जा रही है इसलिए पीएम के प्रयास भी विफल ही साबित होंगे। कांग्रेस के शासन में विदेश मंत्री रहे सलमान खुर्शीद पाकिस्तान जाकर यह कह आए है कि जब तक भारत में नरेन्द्र मोदी पीएम हैं तब तक दोनों देशों के संबंध सुधर नहीं सकते। अब कांग्रेस सहित कुछ दलों को भी यह लगता है कि मोदी के पीएम बनने से ही देश में असहिष्णुता का माहौल बना है। देश के जागरूक दर्शकों और पाठकों को याद होगा कि मानसून सत्र में सुषमा और वसुंधरा वाले मामले में कांग्रेस के नेताओं ने तो लोकसभा में अपना पक्ष रख दिया, लेकिन सुषमा के बोलने की बारी आई तो सदन में हंगामा शुरू कर दिया गया। शीतकालीन सत्र में भी कांग्रेस असहिष्णुता के मामले में तो अपना पक्ष रख देगी, लेकिन जब मोदी सरकार के जवाब देने का समय आएगा तो सदन में हंगामा कर दिया जाएगा। हंगामें के कारण सदन को बार-बार स्थगित करना पड़ेगा। कांग्रेस और विपक्षी दलों को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि देशहित में जीएसटी जैसे बिल को पास करवाना है। यदि देश में असहिष्णुता का माहौल है तो क्या इस माहौल को सुधारने की जिम्मेदारी विपक्षी दलों की नहीं है? कुछ लोग असहिष्णुता की आड़ में देश की एकता और अखंडता से खेल रहे है। देश में साम्प्रदायिकता की जो आग लगाई जा रही है,उसकी भाजपा को ही नहीं बल्कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को भी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। 25 नवम्बर को भी कश्मीर के कुपवाड़ा के निकट आतंकियों ने सैन्य कैम्प पर हमला किया। शायद ही कोई दिन हो जब भारत पर आतंकी हमला न हो। कांग्रेस यह बताए कि आतंकी हमले कौन कर रहा है। जो लोग हमले के जिम्मेदार है उन्हें कठघरे में खड़ा करने के बजाए कांग्रेस के नेता उन्हीं की हिमायत करने में लगे हुए हैं। कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि नरेन्द्र मोदी के हट जाने से देश में असहिष्णुता खत्म हो जाएगी। हालांकि मोदी के हटने के बाद देश के हालात क्या होंगे यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इस देश पर 50-55 वर्षो तक कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों का शासन रहा। कांग्रेस ने जिस तरीके से शासन चलाया उसी का परिणाम है कि आज छोटी-छोटी बातों को लेकर देश के हर क्षेत्र में साम्प्रदायिक तनाव हो जाता है। कश्मीर में तो सिर्फ मुसलमान ही रह सकते है। कांग्रेस व उसके सहयोगी दल नरेन्द्र मोदी के रहते भले ही संसद को न चलने दे, लेकिन ऐसा कोई काम न करें, जिसकी वजह से देश ही न चल पाए।
ए.आर.रहमान :
पहले शाहरूख खान फिर आमिर खान और अब संगीतकर ए.आर.रहमान ने देश के माहौल को असंवेदनशील माना है। रहमान ने कहा है कि जिन हालातों का सामना आमिर खान के परिवार को करना पड़ा, वैसा ही सामना उन्होंने भी किया है। यानि अब ए.आर.रहमान को भी भारत में रहने में डर लगने लगा है। रहमान आज कामयाबी के जिस मुकाम पर खड़े हैं, उसके पीछे भारतीय नागरिकों की प्रशंसा ही है। सब जानते है कि रहमान की अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के प्रति गहरी अकीदत है। इस अकीदत की वजह से ही रहमान ने अजमेर के कुंदन नगर क्षेत्र में एक आलीशान बंगला भी खरीदा है। रहमान जब भी जियारत के लिए अजमेर आते हैं, तब इसी बंगले में ठहरते हैं। सब जानते है कि ख्वाजा साहब ने सूफीवाद को आगे बढ़ाया था। खुद पीएम मोदी ने भी हाल ही में कहा है कि सूफीवाद की भारत में खास भूमिका है। सूफीवाद से ही कट्टरपंथियों और आतंकवादियों का मुकाबला किया जा सकता है। ऐसे में ए.आर.रहमान से यह उम्मीद की जाती है कि वे सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सिद्धांतों को आगे बढ़ाएं। यदि शाहरूख खान आमिर खान की तरह ही ए.आर.रहमान को भी देश के हालात खराब नजर आते है तो इन हालातों को ख्वाजा साहब के सूफीवाद से ठीक करने की जिम्मेदारी भी रहमान की ही है, लेकिन रहमान ने तो आग में घी डालने वाला काम किया है। शाहरूख खान, आमिर खान और ए.आर.रहमान जैसे कामयाब कलाकार भी अपनी मातृभूमि के खिलाफ बोलेंगे तो फिर सूफीवाद का क्या होगा?
(एस.पी. मित्तल)
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