Sunday 1 November 2015

आखिर नारायण मूर्ति जैसे लोग इस देश से क्या चाहते है



कुछ साहित्यकारों और फिल्मकारों के अवार्ड लौटाने के बाद इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने कहा है कि देश के हालात अल्पसंख्यकों के अनुकूल नहीं है। मूर्ति का मानना है कि अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षा की भावना है। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोग राजनैतिक नजरिए से बेवजह की बयानबाजी करते है ताकि वर्तमान केन्द्र सरकार की छवि खराब हो सके। राजनीति में एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी होती रहती है, लेकिन इन दिनों देश के माहौल को लेकर जो बयान दिए जा रहे है वे देश की एकता व अखंडता के लिए खतरा है। शायद कुछ लोगों का यह मानना है कि केन्द्र में कांग्रेस गठबंधन की सरकार होने पर ही अल्पसंख्यक सुरक्षित रहते है। यदि गैर कांग्रेस राजनैतिक दलों की सरकार बनी तो अल्पसंख्यकों पर जुल्म शुरू हो जाएंगे। इस तरह की बकवास गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेताओं ने भी सार्वजनिक मंचों से की थी, लेकिन फिर भी देश की जनता ने भाजपा को पूर्ण बहुमत देकर नरेन्द्र मोदी को पीएम बनवा दिया। मोदी के नेतृत्व में पिछले डेढ़ वर्ष से भाजपा की सरकार चल रही है। जो लोग देश का माहौल खराब होने की बात कह रहे हैं, उनके पास एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जो यह दर्शाता हो कि केन्द्र की सरकार ने अल्पसंख्यकों पर जुल्म ढाए हो या फिर ऐसी कोई नीति बनाई हो जिसकी वजह से अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों में कोई कमी आई हो। इसके विपरीत जब से केन्द्र में मोदी की नेतृत्व में सरकार बनी है तब से ही बहुसंख्यकों से ज्यादा अल्पसंख्यकों के हितों की चिंता जताई जा रही है। इससे ज्यादा और क्या हो सकता है कि भाजपा ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई और संसद में यह घोषणा की कि कश्मीर में धारा 370 और सिविल कोड की दुहाई देती रही थी। अयोध्या में राम मंदिर की बात तो भाजपा भूल ही गई है। भाजपा से जुड़े अग्रिम संगठन भी राम मंदिर को लेकर कोई हो हल्ला नहीं करते है। सवाल उठता है कि जब अल्पसंख्यकों के हितों के विपरीत कोई काम ही नहीं हो रहा तो फिर अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षा की बात क्यों कही जा रही है? कही ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल सत्ता के बिना छटपटा रहे है। ऐसे नेताओं के इशारे पर ही एक ओर अवार्ड लौटाए जा रहे है तो दूसरी ओर नारायण मूर्ति जैसे धंधेबाज गैर जिम्मेदाराना बयान दे रहे है। क्या नारायण मूर्ति के पास एक ऐसा उदाहरण है जो यह दर्शाता हो कि केन्द्र सरकार की वजह से अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना आई हो। बिहार में हो रहे विधानसभा के चुनाव में लालूप्रसाद और नीतिश कुमार के साथ कांग्रेस ने भी मुसलमान मतदाताओं को भाजपा के खिलाफ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बिहार का पूरा चुनाव मुस्लिम राजनीति पर केन्द्रीत हो गया है। खुफिया एजेन्सियों की रिपोर्टो को माना जाए तो पाकिस्तान में बैठे भारत विरोधी तत्व भी बिहार के चुनाव में सक्रिय है। इसे हास्यास्पद ही कहा जाएगा कि कर्नाटक और यूपी में किसी की हत्या होने पर केन्द्र सरकार को दोषी बताया जाता है जबकि संबंधित राज्यों में शासन करने वाले राजनैतिक दल के खिलाफ कुछ नहीं बोला जाता है। यह सही है कि कांग्रेस ने अपने 50-55 वर्ष के शासन में हजारों लोगों को अवार्ड दिए तो अनेक औद्योगिक घरानों की मदद भी की। ऐसे लोग ही अब कांग्रेस के इशारे पर बेवजह ही बयानबाजी कर रहे है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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