Friday 25 December 2020

जीवन बचाने के लिए मुसलमानों को भी जरूरी है कोरोना की वैक्सीन लगवाना।भारत में अनेक मुस्लिम धर्म गुरु समर्थन में आए। वैक्सीन को लेकर भ्रम नहीं फैलाने का अनुरोध।

मुम्बई की रजा एकेडमी के साथ साथ मौलाना मुफ्ती नदीमुद्दीन जैसे लोग भले ही कोरोना की वैक्सीन नापाक (नाजायज) बता रहे हों, लेकिन भारत में ऐसे अनेक मुस्लिम धर्मगुरु सामने आए हैं जो इंसान की जान बचाने के लिए कोरोना वैक्सीन को जरूरी बता रहे हैं। ऐसे धर्म गुरुओं का कहना है कि इस्लाम में इंसान की जिंदगी को अहमियत दी गई है। यह माना कि नापाक जानवर का माँस खाने की इस्लाम में मनाही है, लेकिन इंसान की जिंदगी बचाने के लिए कई मौकों पर छूट भी दी गई है। वैक्सीन लगाने का मतलब माँस खाना नहीं है। अभी यह भी पता नहीं है कि कोरोना वैक्सीन में नापाक जानवर के अंशों का कितना उपयोग किया है। वैक्सीन को सुरक्षित रखने के लिए जानवर की चर्बी से बनी जिलेटिन का कितना उपयोग होगा? वैक्सीन को लेकर जो बहस मुस्लिम देशों में शुरू हुई थी, वह अब भारत में भी पहुंच गई है। लेकिन भारत के लिए यह अच्छी बात है कि अधिकांश मुस्लिम धर्मगुरु वैक्सीन लगवाने के पक्ष में हैं। ऐसे धर्मगुुरुओं का कहना है कि वैक्सीन लगवाने को धार्मिक मान्यताओं से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। मौलाना बरकती का कहना है कि इस मुद्दे पर बेवजह का भ्रम फैलाया  जा रहा है। इस्लाम में ऐसे कई उदाहरण है, जब इंसान की जिंदगी बचाने में अहमियत दी गई है। कोरोना संक्रमण ने भारत में भी तबाही मचाई है। मुसलमान भी बड़ी संख्या में मरे हैं। लाख कोशिश के बाद भी लोगों को नहीं बचाया जा सका है। कोरेना ने न हिन्दू देखा न मुसलमान सभी को नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में धार्मिक मान्यताओं को आगे रखकर किसी को भी वैक्सीन लगवाने से नहीं रोका जा सकता है। जो चंद लोग आज वैक्सीन का विरोध कर रहे हैं उन्हें इंसान की जिंदगी की अहमियत पता नहीं है। जब इस्लाम में इंसान की जिंदगी को सबसे ज्यादा अहमियत दी गई है तो किस आधार पर वैक्सीन नहीं लगाने की सलाह दी जा रही है। वहीं चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा समय में भी अनेक दवाइयाँ ऐसी हैं, जिनमें जानवरों के अंशों का उपयोग होता है। ऐसी दवाइयों का सेवन भी किया जाता है। बीमार व्यक्ति के इलाज को कभी भी धार्मिक मान्यताओं से नहीं जोड़ा जा सकता है। हर धर्म में इंसान की जिंदगी का महत्व बताया गया है। कोरोना काल में वैक्सीन नहीं लगवाने की सलाह देना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। कोरोना जब जनलेवा साबित हो रहा है, तब वैक्सीन का महत्व और बढ़ जाता है। भारत के मुसलमानों को तो दुनियाभर में प्रगतिशील माना जाता है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (25-12-2020)
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