Sunday 13 December 2020

वाशिंगटन में महात्मा गांधी की प्रतिमा को खालिस्तान के झंडे से ढका। आखिर किसान आंदोलन का यह कौन सा स्वरूप है?दिल्ली के बाहर किसान आंदोलन में नक्सली और माओवादी ताकतें सक्रिय-पीयूष गोयल।राजस्थान की शाहजहांपुर सीमा पर भी जाम के हालात।

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के लाखों प्रयासों के बाद भी देश की राजस्थानी दिल्ली के बाहर चल रहा किसान आंदोलन थम नहीं रहा है। इस बीच 13 दिसम्बर को एक डरावनी तस्वीर भी सामने आई। अमरीका स्थित वाशिंगटन में खालिस्तान से जुड़े लोगों ने किसान आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन किया और महात्मा गांधी की प्रतिमा को खालिस्तान के झंडे से ढक दिया। सवाल उठता है कि क्या किसान आंदोलन को खालिस्तान के समर्थकों का समर्थन है? क्या दिल्ली के बाहर विभिन्न सीमाओं पर जो किसान बैठे हैं उनमें खालिस्तान से जुडे लोग भी सक्रिय हैं? सब जानते हैं कि जब श्रीमती इंदिरा गांधी कांग्रेस सरकार की प्रधानमंत्री थीं, तब पंजाब में खालिस्तान की मांग ने जोर पकड़ा था, तब भारतीय सेना को सिक्खों के सर्वोच्च धार्मिक स्थल स्वर्ण मंदिर में जबरन प्रवेश करना पड़ा। बाद में इसकी कीमती श्रीमती गांधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। इसमे कोई दो राय नहीं कि खालिस्तान आंदोलन से श्रीमती गांधी ने सख्ती से निपटा और अब एक बार फिर किसानों के साथ  खालिस्तान के समर्थक भी नजर आ रहे हैं। ऐसे समर्थकों से किसानों को भी सवधान रहना चाहिए। कांग्रेस भी किसान आंदोलन का लगातार समर्थन कर रही है। खालिस्तान समर्थकों की सक्रियता के बाद कांग्रेस को भी अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए। महात्मा गांधी की प्रतिमा को खालिस्तान के झंड से ढकने की घटना को किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता। भारत सरकार ने तो अपनी नाराजगी अमरीकी विदेश मंत्रालय के समक्ष प्रकट कर दी है।
नक्सली ओर माओवादी ताकतें सक्रिय:
किसानों के प्रतिनिधियों से वार्ता में सक्रिय भूमिका निभाने वाले केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि किसान आंदोलन की आड़ में नक्सली और माओवादी ताकतें सक्रिय हैं, जिनका उद्देश्य सिर्फ नरेन्द्र मोदी की सरकार को परेशान करना है। गोयल ने बताया कि वार्ता में अनेक किसान प्रतिनिधि सरकार के प्रस्तावों से सहमत हो रहे थे, लेकिन प्रतिनिधि मंडल में शामिल कुछ लोगों ने डरा दिया। जब कभी वार्ता सकारात्मक दौर में होती है तो ऐसे नेता तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़ जाते। आप किसान भी मानता है कि मोदी सरकार के तीनों कृषि कानून किसानों के हित में है। कानूनों में एक भी प्रावधान ऐसा नहीं है जो किसान विरोधी हो। जब किसान को उसकी फसल का मूल्य एमएसपी से भी ज्यादा मिला जाएगा तो फिर वह अपनी फसल को बेचने के लिए मंडी क्यों जाएगा? असल में कुछ राजनीतिक दलों के नेता नहीं चाहते कि किसान मंडी में न आए, इसीलिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। जब सिर्फ फसल का अनुबंध होगा, तब जमीन पर कब्जे को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। आम किसान को उन ताकतों से सावधान रहना चाहिए जो देश में अराजकता फैलाना चाहते हैं। किसानों की मांगों में सरजीत इमाम, उमर खालिद जैसे लोगों को रिहा करने की बात भी है। जबकि ऐसे लोगों पर देशद्रोहे के आरोप हैं। ऐसे आरोपियों का किसान आंदोलन से क्या मतलब है? ऐसी मांगों से  आंदोलन के स्वरूप का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। कृषि कानूनों को लोकतांत्रिक तरीके से संसद के दोनों सदनों में स्वीकृत करवाया है, लेकिन अब कुछ लोग सड़कों पर आकर कानून को रद्द करवाना चाहते हैं। सरकार हर स्तर पर वार्ता को तैयार है, लेकिन किसी को भी कानून तोडऩे की इजाजत नहीं है।
शाहजहांपुर सीमा पर जाम:
13 दिसम्बर को राजस्थान और हरियाणा राज्य की शाहजहांपुर सीमा पर भी जाम के हालात उत्पन्न हो गए हैं। पिछले 18 दिनों से पंजाब,उत्तर प्रदेश आदि राज्यों ओर से आने वाली सड़कों पर तो किसान बैठे हुए थे, लेकिन अब राजस्थान से जाने वाली सड़क पर भी किसान डेरा डाल कर बैठे गए हैं। राजस्थान की सीमा पर आरएलपी के सांसद हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में किसान एकजुट हो रहे हैं। बेनीवाल भी कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। यह बात अलग है कि बेनीवाल की पार्टी ने केन्द्र में एनडीए की सरकार को समर्थन दे रखा है। बेनीवाल अपनी पार्टी के इकलौते सांसद हैं। दिल्ली चारों तरफ से जाम होने की वजह से अब  लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड रहा है। दिल्ली वासियों की खाद्य सामग्री तो बाधित हो रही है, लेकिन विभिन्न मार्गों से गुजरने वाले लाखों लोगों को भी परेशानी हो रही है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (13-12-2020)
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