Sunday 20 December 2020

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के रकाब गंज गुरुद्वारे में अरदास की।किसान आंदोलन के मद्देनजर प्रधानमंत्री की ईमानदार कोशिश। आंदोलन में सिक्ख समुदाय के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा।

20 दिसम्बर को देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर 25वें दिन भी किसानों का आंदोलन जारी रहा। इस बीच 20 दिसम्बर को सुबह सुबह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दिल्ली के रकाबगंज गुरुद्वारे पहुंचे और सिक्ख धर्म की परंपरा
 के अनुरूप माथा टेक कर अरदास की। इस गुरुद्वारे का धार्मिक महत्व इसलिए भी है कि यहां सिक्खों के 9वें धर्मगुरु तेग बहादुर सिंह जी के पवित्र शरीर का अंतिम संस्कार हुआ था। 19 दिसम्बर को ही गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस मनाया गया था। प्रधानमंत्री के गुरुद्वारे जाकर अरदास करने का किसान आंदोलन से जोड़ कर देखा जा रहा है। इसमें कोई दो राय  नहीं कि आंदोलन को समाप्त करवने के लिए प्रधानमंत्री ने एक ईमानदार कोशिश की है। सब जानते हैं कि आंदोलन में सबसे ज्यादा सिक्ख समुदाय के लोगों ही हैं। सड़कों पर बैठे हजारों लोगों को भोजन, सुरक्षा आदि की सुविधा भी गुरुद्वारों के माध्यम से हो रही है। सिक्ख धर्म में सेवा का बहुत महत्व है, इसलिए देश दुनिया के गुरुद्वारों में दोनों समय नि:शुल्क भोजन करवाया जाता है। भोजन (लंगर) के लिए कोई हिसाब किताब भी नहीं होता। चूंकि लंगर की व्यवस्था धार्मिक भावनाओं से जुड़ी हुई है, इसलिए किसान आंदोलन में भोजन की कोई कमी नहीं है। विभिन्न गुरुद्वारों से जुड़े हजारों धर्मपेे्रमी रात और दिन मेहनत कर भोजन उपलब्ध करवा रहे हैं। कहा जा सकता है कि किसान अंादोलन में हजारों लोगों की धार्मिक भावनाएं भी जुड़ी हुई है। ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री का रकाब गंज गुरुद्वारे में जाना भी बहुत महत्व रखता है। नरेन्द्र मोदी ने गुरुद्वारे में अरदास कर यह बताया कि प्रधानमंत्री का भी भरोसा सिक्ख धर्म में हैं। प्रधानमंत्री को भी सड़कों पर बैठे लोगों की पूरी चिंता है। दो दिन पहले देश के प्रमुख उद्यमियों से संवाद करते हुए भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाथ जोड़कर अपील की थी कि आंदोलन समाप्त किया जाए। किसान संगठनों की मांग पर सरकार अब एमएसपी पर लिखित में देने को तैयार हैं। किसानों को कृषि कानूनों के जिन प्रावधानों पर शंका है, उन पर लिखित आदेश जारी करने को भी सरकार तैयार हैं। सरकार और अनेक किसान संगठनों का बार बार कहना है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ नहीं है, उल्टे इससे किसानों की आय कई गुना बढ़ जाएगी, लेकिन इसके बावजूद भी कई राजनीतिक दल किसानों को गुमराह कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि कान्ट्रेक्ट फार्मिंग से किसानों की जमीन पर बड़े कारोबारियों का कब्जा हो जाएगा, जबकि किसान की जमीन पर कान्ट्रेक्ट का कोई प्रावधान नहीं है। कान्ट्रेक्ट सिर्फ जमीन पर उगी फसल का होगा। कानून में कान्ट्रेक्ट फार्मिंग की कोई अनिर्वायता भी नहीं है। किसान चाहे तो कान्ट्रेक्ट फार्मिंग नहीं करे। किसान अपने पुराने तौर तरीकों से खेती कर फसल को न्यूनतम समर्थन पर भी बेच सकता है। पूरी छूट होने के बादजूद भी भ्रम फैलाया जा रहा है कि नए कृषि कानूनों से किसान की जमीन पर कारोबारियों का कब्जा हो जाएगा। 
S.P.MITTAL BLOGGER (20-12-2020)
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