Friday 18 December 2020

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने विधानसभा में कृषि कानून की प्रतियों को फाड़ा।क्या बातचीत तक कृषि कानूनों को रोका जा सकता है?-सुप्रीम कोर्ट।पश्चिम बंगाल में अर्द्धसैनिक बलों के दखल की जरुरत।देश के लिए अच्छी नहीं है ऐसी घटनाएं।

इन दिनों देश में जिस तरह की राजनीति हो रही है, उसे किसी भी स्थिति में अच्छा नहीं माना जा सकता। सब जानते हैं कि कृषि सुधार पर बनाए गए कानूनों को संसद के दोनों सदनों को मंजूरी मिली है। भारत के संविधान के मुताबिक कानूनों पर राष्ट्रपति की भी मुहर लगी है। लेकिन इसके बाद भी 17 दिसम्बर को दिल्ली विधानसभा में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कृषि कानून की प्रतियां को फाड़ा। जिस मुख्यमंत्री ने संविधान की शपथ ली है, उस मुख्यमंत्री को क्या ऐसा कृत्य करना चाहिए? केजरीवाल को कानून के प्रावधानों की धज्जियां उड़ाने का अधिकार किसी को भी नहीं है। केजरीवाल का यह कृत्य देशहित में नहीं माना जा सकता है। केजरीवाल के इस कृत्य से पता चलता है कि राजनेता अपने निहित स्वार्थों के खातिर किस तरह संघीय ढांचे का दुरुपयोग कर रहे हैं। यह भी सब जानते हैं कि संसद से कानून पास होने से पहले ही कृषि सुधार कानून का अध्यादेश जारी हो गया था। यानि देश में पिछले आठ माह से कृषि कानून के अंतर्गत ही काम काज हो रहा है। कई राज्यों में नए कानून के अनुरूप कान्ट्रेक्ट फ्रार्मिंग शुरू भी हो गई है। किसानों को लाभ भी मिलने लगा है। कोई दो करोड़ किसानों ने नए कानून के अंतर्गत अपना रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है। लेकिन अब 17 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट केन्द्र सरकार से पूछ रहा है कि क्या बातचीत होने तक कृषि कानून को रोका जा सकता है? सवाल उठता है कि मौजूदा हालातों में कृषि कानून की क्रियान्विति कैसे रुक सकती है? क्या कोई कानून ट्रेन है जिसे ब्रेक लगा कर रोक दिया जाए? यह माना कि दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के एक वर्ग का जो आंदोलन चल रहा है, उसमें सुप्रीम कोर्ट कोई बीच का रास्ता निकालना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट भी जानता है कि कृषि कानूनों को संसद ने स्वीकृत किया है। संसद में ही देश के कानून बनाए जाते हैं। लोकतंत्र में संसद को सर्वोपरि माना गया है। बातचीत तो सरकार ने भी बहुत की है, लेकिन किसानों का एक वर्ग कानूनों को वापस लेने की जिद पर अड़ा हुआ है। सवाल यह भी है कि जो लोग दिल्ली की सीमाओं पर रास्ता जाम करके बैठे हैं, क्या वे ही देशभर के किसान है? जितने किसान रास्ता जाम करके बैठे है, उससे कहीं ज्यादा किसान नए कृषि कानूनों के पक्ष में हैं। जो राजनीतिक दल कृषि कानूनों को रद्द करवाना चाहते हैं, उन्हें 2023 में होने वाले लोकसभा चुनाव का इंतजार करना चाहिए, क्योंकि यदि ऐसे दल विजयी होते हैं तो फिर संसद में ही कानूनों को बदल सकते हैं। यदि कुछ लोगों के रास्ता जाम कर देने से कानून रद्द कर दिया जाएगा तो फिर संसद का क्या महत्व है?
बंगाल में अर्द्ध सैनिकों की जरुरत:
पश्चिम बंगाल भी भारत का एक राज्य है, लेकिन राजनीति की वजह से बंगाल के हालात बहुत खराब हो गए हैं। यही वजह है कि अब बंगाल में अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की जरुरत हो गई है। बंगाल में पांच माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि बंगाल में एक ऐसा समूह तैयार हो गया है जो हर हालत में ममता बनर्जी की पार्टी को ही सत्ता दिलाना चाहता है। स्वभाविक है कि ऐसे समूह को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का संरक्षण होगा। यही वजह है कि अब बंगाल में अद्र्धसैनिक बलों की तैनाती की जरुरत जताई जा रही है। कहा जा रहा है कि निष्पक्ष चुनाव के लिए अद्र्धसैनिक बल तैनात किए जाएं। यानि लोगों को अब ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री रहते पश्चिम बंगाल की पुलिस पर भरोसा नहीं है। बंगाल में ममता बनर्जी का जनाधार लगातार घट रहा है। गत लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा को 18 सीटें मिली हैं। जबकि ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को 22 सीटें मिली। पूर्व में टीएमसी के 38 सांसद थे। यदि किसी राज्य में निष्पक्ष चुनाव के लिए अद्र्धसैनिक बलों की जरुरत जताई जाए तो यह भी देश हित में नहीं है। असल में इन दिनों राजनीति की वजह से जो हालात हुए हैं, उन्हें देशहित में नहीं माना जा सकता। कोई माने या नहीं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में अनेक पुरानी समस्याओं का समाधान हुआ है। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त कर आतंकवाद पर अंकुश लगाया गया है तो अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बाधाएं हटाकर देश में सदभावना का माहौल बनाया गया। तीन तलाक जैसी प्रथा के विरुद्ध कानून बनाकर महिलाओं को सशक्त बनाया गया है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (18-12-2020)
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