राजस्थान के वरिष्ठ आईएएस समित शर्मा इन दिनों जयपुर के संभागीय आयुक्त हैं। शर्मा ने विगत दिनों संभाग के दौसा जिले के जिला अस्पताल का आकस्मिक निरीक्षण किया। पड़ताल में पता चला कि सरकारी अस्पताल के चिकित्सक मरीजों को बाजार से दवा लाने के लिए पर्चियां लिख रहे हैं। शर्मा ने जब संबंधित चिकित्सकों से जवाब तलब किया तो उसके पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था। शर्मा ने जानना चाहा कि जब सरकार की ओर से नि:शुल्क दवा का प्रावधान है तो फिर मरीजों से बाहर से दवाएं क्यों मंगवाई जा रही है? शर्मा ने इस बात पर भी नाराज़गी जताई कि अस्पताल की ओपीडी में एक भी डॉक्टर उपस्थित नहीं है और मरीज इधर उधर भटक रहे हैं। शर्मा का कहना रहा कि जब डॉक्टरों को डेढ़ से दो लाख रुपए प्रतिमाह वेतन मिल रहा है तब भी अनेक डॉक्टर अपना दायित्व नहीं निभा रहे हैं। संभागीय आयुक्त शर्मा ने माना कि कोरोना काल में विषम परिस्थितियों में अनेक चिकित्सा कर्मियों ने मेहनत के साथ कार्य किया है, लेकिन अनेक चिकित्सा कर्मी ऐसे हैं, जिनकी वजह से सरकार की योजनाओं का लाभ मरीजों को नहीं मिल रहा है। शर्मा ने दौसा के जिला अस्पताल में मिली अनियमितताओं की जांच के लिए कलेक्टर को आवश्यक निर्देश दिए। लेकिन अब अनेक चिकित्सक समित शर्मा के आकस्मिक निरीक्षण का विरोध कर रहे हैं। जिन चिकित्सकों को शर्मा ने बाहर से दवाएं मंगवाने के सबूतों के साथ पकड़ा, उन्हें अब अपमानित किए जाने की बात कही जा रही है। आरोप लगाया जा रहा है कि शर्मा ने निरीक्षण के दौरान डॉक्टरों को अपमानित किया, जबकि निरीक्षण के वीडियो को देखने से पता चलता है कि संभागीय आयुक्त ने अपनी सीमाओं में रह कर अस्पताल के चिकित्सकों से बात की है। शर्मा का मकसद सिर्फ सरकार की योजनाओं का मरीजों को लाभ दिलवाना था। क्या सरकार की योजनाओं का लाभ गरीब मरीज को दिलवाना गुनाह है? मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा भी चाहते हैं कि सरकारी अस्पतालों में गरीब को नि:शुल्क इलाज मिले। सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क दवा योजना को सीएम गहलोत अपनी बड़ी उपलब्धि मानते हैं। यानि समित शर्मा तो सरकार की मंशा के अनुरूप काम कर रहे हैं, लेकिन फिर भी कहा जा रहा है कि शर्मा की कार्यशैली सरकार के विरुद्ध है। क्या ऐसा आरोप उन लोगों को बचाने के लिए नहीं है जो मरीजों से बाहर से दवाएं मंगवा रहे हैं? सरकारी अस्पतालों को लेकर आम शिकायतें रहती है। जो मरीज भर्ती होते हैं, उनके परिजन से हालातों के बारे में पूछा जा सकता है। आए दिन समाचार पत्रों में अस्पतालों के बारे में छपता है। ऐसे माहौल में यदि एक आईएएस व्यवस्था को सुधारने का प्रयास कर रहा है तो उसकी सराहना ही होनी चाहिए। आईएएस समित शर्मा जिस भी पद पर रहे, वहां उन्होंने सक्रियता के साथ काम किया। अशोक गहलोत ने जब 2008 से 2013 तक के कार्यकाल में मुख्यमंत्री थे, तभी नि:शुल्क दवा योजना की शुरुआत हुई थी, तब कोई यह कल्पना नहीं कर सकता था कि सरकारी अस्पतालों में दवाएं मुफ्त में मिलेंगी। ऐसी बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना को सफल बनाने में तब भी समित शर्मा की ही महत्वपूर्ण भूमिका थी। एनएचआरएम के एमडी के पद पर रहते हुए शर्मा ने जो ईमानदार सक्रियता दिखाई, उसकी प्रशंसा खुद मुख्यमंत्री गहलोत कई बार सार्वजनिक तौर पर कर चुके हैं। सवाल यह भी कि समित शर्मा की ईमानदार सक्रियता पर कुछ कार्मिक नाराज़ क्यों हो जाते हैं? इससे पहले शर्मा जब जोधपुर के संभागीय आयुक्त के पद पर कार्यरत थे, तब उन्होंने पाली जिले के एक स्कूल का आकस्मिक निरीक्षण कर अनेक अव्यवस्थाओं को उजागर किया। तब भी अनेक शिक्षक शर्मा से खफा हो गए। दौसा के सरकारी अस्पताल के निरीक्षण का वीडियो मेरे फेसबुक
www.facebook.com/SPMittalblog पर देखा जा सकता है।
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