Monday 31 August 2015

संथारा पर हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक।

अजमेर के वकील माणक चंद जैन ने किया स्वागत।
जैन समाज की संथारा प्रथा पर रोक लगाने का जो आदेश राजस्थान होईकोर्ट ने दिया था उस पर 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का अजमेर के वरिष्ठ वकील मणकचंद जैन ने स्वागत किया है। जैन ने बताया कि 31 अगस्त को मुख्य न्यायाधीश एच.एल.दत्तु की खंडपीठ में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान जस्टिस दत्तु ने हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाई, जिसमें संथारा प्रथा को आत्महत्या करार देते हुए रोक लगा दी थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका लगाने वाले निखिल सोनी, राजस्थान सरकार और केन्द्र सरकार को भी नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने को कहा है। जैन ने कहा कि हाईकोर्ट ने गत 10 अगस्त को रोक का जो आदेश दिया उसे उचित नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि संथारा न तो आत्महत्या है और न ही इच्छामृत्यु। असल में इस प्रथा में मृत्यु को स्वीकारा जाता है। आचार्य अमृतचंद के अनुसार संथारा के माध्यम से ही साधक आत्म को साथ ले जाने में समर्थ होता है।
संथारा कोई धार्मिक प्रथा नहीं, बल्कि जैन धर्म के मूल सिद्धांतों में है। जैन धर्म का उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति है। एक ही कार्य के संयुक्त रूप से एक से अधिक कारण होते हैं। संथारा में अनशन के अलावा किसी भी अन्य पहलू पर विचार नहीं किया गया है। इस कारण अनशन के पहलू पर ही मुख्य रूप से स्पष्ट किया जाता है। जैन धर्म आत्मवादी धर्म है। चेतना तत्व जीव या आत्मा का अचेतन देह या शरीर से संबंध कर्म बंधन के कारण होता है। कर्म बंधन या बुरे कार्य, विचार के अनुसार होता है और कर्मानुसार मरण के बाद नए देह यानी पशु देह, पक्षी देह, कीड़े-मकौड़े की देह, देव देह, मनुष्य देह मिलती है। मोक्ष में आत्मा देह रहित हो जाता है। नवीन कर्म का रुकना संवर और पूर्वोपार्जित कर्मों की समप्ति निर्जरा कहलाती है। कर्मों के निर्जरा होने पर मोक्ष होता है। संथारा में जो अनशन रूपी तप है, वह स्वयं धर्म संज्ञा को प्राप्त है और मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक साधना है। स्वयं तीर्थंकरों को भी मोक्ष प्राप्ति के लिए यही साधना अपनानी पड़ती है। जैन धर्म में खाते-पीते, भोग भोगते कोई मोक्ष नहीं जाता। तीर्थंकर भी क्षुधा तृषा (यानि भूख प्यास) 22 परीषह सहन कर स्थित प्रज्ञ यानि आत्मलीन होकर मोक्ष जाते हैं।  उन्होंने उम्मीद जताई कि अब जैन समाज के प्रतिनिधि सुप्रीम कोर्ट में जैन धर्म के अनुरूप संथारा प्रथा की जानकारी देंगे।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511


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