Thursday 13 August 2015

संथारा पर रोक धर्म की अवमानना है। जैन संत विमद सागर महाराज ने कहा।

राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सुनील अंबवानी ने जैन धर्म की संथारा प्रथा को आत्महत्या मानते हुए गत 10 अगस्त को संथारा प्रथा पर रोक लगा दी थी। कोर्ट के इस फैसले पर दिगम्बर जैन संत विमद सागर महाराज ने कहा कि संथारा प्रथा पर रोक धर्म की अवमानना है। इसके लिए देश के साधुसंतों को एकजुट हो जाना चाहिए। हम धर्म की अवमानना को स्वीकार नहीं कर सकते हैं। जैन संत ने सवाल उठाया कि दिगम्बर समाज के साधुसंत जिस तप से जीवन जीते हैं, क्या वह समाधि की स्थिति नहीं है। उन्होंने कहा कि संथारा परंपरा में धर्म के साथ-साथ विज्ञान भी जुड़ा हुआ है जब विज्ञान और धर्म जुड़ता है, तो एक सुंदर समाज की रचना होती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हो यह रहा है कि हम विज्ञान का तो अनुसरण कर रहे हैं, लेकिन धर्म का नहीं। क्या यह अपने आप में चमत्कार नहीं है कि संथारा  लेने वाले व्यक्ति को बिना भोजन और पानी के जीवित रखा जाता है। मेरे पास ऐसे कई उदाहरण हैं, जब भीषण रूप से बीमार व्यक्ति को आनंदमयी स्थिति में महीनों तक जीवित रखा गया है। जो लोग संथारा ग्रहण करते हैं, अलस में वे मृत्यु पर विजय प्राप्त करते हैं। जैन धर्म में संथारा को आनंद की स्थिति माना गया है, इसलिए हम इसे उत्सव के रूप में स्वीकारते हैं। जिस आत्महत्या को पाप मानते हैं, उसे कैसे स्वीकार करें, क्या संथारा लेने वाले पानी है? उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति ऋषि मुनियों की संस्कृति है। हजारों वर्ष तक तपस्या में लीन रहने वाली संस्कृति सिर्फ भारत में ही मिलती है। इसलिए पश्चिमी देशों के लोग भारतीय संस्कृति को देखने और समझने के लिए आ रहे हैं। आज जिस संस्कृति का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है उस संस्कृति पर शंका  करना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह धर्म की अवमानना करें।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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